मैदान में उतरने के पहले ही रवि शास्त्री ने दिखा दिया रंग, दादा की दादागीरी भी नहीं है कम

एक साल पहले कोच पद के लिए ठुकराए गए रवि शास्त्री की कहानी भी किसी फ़िल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है। जिस शख़्स की वजह से शास्त्री कोच की कुर्सी पर बैठते बैठते रह गए गए थे, ठीक एक साल बाद वह कुर्सी भी हासिल कर ली और उसे भी ख़ूबसूरती से दरकिनार कर दिया जिसकी वजह से उन्हें एक साल का इंतज़ार करना पड़ा था। टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और क्रिकेट के भगवान का दर्जा हासिल रखने वाले सचिन तेंदुलकर का समर्थन प्राप्त शास्त्री कोच तो बन गए। लेकिन खेल में रणनीति क्या होती है और कैसे सामने वाले को उसी के वार से चित किया जाए, ये पूर्व कप्तान सौरव गांगुली से बेहतर शायद ही कोई जानता है। पिछले साल दादा और शास्त्री के बीच किस तरह तू तू मैं मैं और शब्दों के तीर चले थे वह किसी से नहीं छिपा। और इस बार भी दादा रवि शास्त्री को नहीं चाहते थे बल्कि उनकी पहली पसंद वीरेंदर सहवाग थे। सलाहकार समिति में दादा के एक और साथी वीवीएस लक्ष्मण चाहते थे टॉम मूडी को कोच बनाना। दादा और वीवीएस दोनों को तब चुप हो जाना पड़ा जब भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली और सचिन तेंदुलकर का शासत्री को समर्थन उन्हें कोच की कुर्सी दिला गया। यहां दादा ने वह चाल चली जो सिर्फ़ सौरव ही सोच सकते थे। कोच तो शास्त्री बन गए लेकिन उनके पर कतर दिए गए, क्योंकि राहुल द्रविड़ और ज़हीर ख़ान जैसे दो दिग्गजों को भी टीम इंडिया का बल्लेबाज़ी सलाहकार और गेंदबाज़ी सलाहकार बनाकर दादा ने शास्त्री का पॉवर कम कर दिया। रवि शास्त्री को ये बात नागवार गुज़री और उन्होंने तुरंत इसके ख़िलाफ़ बीसीसीआई और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित समिति को इसकी शिक़ायत कर डाली। शास्त्री के मुताबिक़ टीम में सपोर्ट स्टाफ़ कौन होगा इसका फ़ैसला बिना कोच के परामर्श के नहीं होता है, लेकिन दादा भी कहां चुप रहने वाले थे। सचिन, सौरव और लक्ष्मण के रुप में तीन सदस्यीय सलाहकार समिति की अध्यक्षता कर रहे सौरव गांगुली ने भी CoA को जवाब देते हुए कहा कि हमने राहुल द्रविड़ और ज़हीर ख़ान का बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी सलाहकार के रूप में चुनाव करने से पहले शास्त्री को लिखित और मौखिक दोनों ही तरीक़ों से बताया था। दादा के इस दांव का तोड़ शास्त्री के पास था भी नहीं, ज़ाहिर है द्रविड़ और ज़हीर को नकार देना उनके बूते से बाहर की बात थी। हालांकि रवि शास्त्री ने अपना तर्क कुछ इस तरह दिया कि क्या ज़हीर 250 दिन टीम के साथ जुड़ सकते हैं ? और उन्हें कोचिंग का कोई अनुभव भी नहीं है। तो इस पर बीसीसीआई की ओर से प्रतिक्रिया भी आई है कि ज़हीर हर विदेशी दौरे पर टीम के साथ जाएंगे और वह टीम को सलाह देते रहेंगे। यानी यहां सौरव गांगुली की फ़िलहाल जीत ज़रूर कही जा सकती है क्योंकि द्रविड़ और ज़हीर के रहते हुए शास्त्री की भूमिका कोच की नहीं बल्कि एक मैनेजर की ही रह जाएगी। शास्त्री अभी भी अपने बात पर अडिग हैं और अगर वह भरत अरुण को गेंदबाज़ी कोच बनाते हुए टीम के साथ जोड़ ले आएं तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी। क्योंकि तकनीकी तौर पर गेंदबाज़ी कोच की जगह अभी भी ख़ाली ही है, ज़हीर गेंदबाज़ी सलाहकार हैं कोच नहीं। लेकिन ज़हीर के रहते हुए गेंदबाज़ी कोच की क्या ज़रूरत है ये भी एक बड़ा सवाल है ? पर दादा से एक और दांव हारने के मूड में इस बार शास्त्री नहीं है और वह यही चाहेंगे कि दादा को करारा जवाब दिया जाए। सौरव गांगुली और रवि शास्त्री के बीच चल रहे इस शीत युद्ध का असर एक बार फिर टीम पर पड़ सकता है। सवाल ये भी है कि आख़िर 610 विकेट लेने वाले ज़हीर ख़ान से ऊपर 5 विकेट लेने वाले भरत अरुण कैसे हो सकते हैं ? अरुण ने भारत के लिए 2 टेस्ट मैचों में 4 विकेट और 4 वनडे मैचों में सिर्फ़ 1 विकेट हासिल किए हैं। लेकिन शास्त्री और अरुण के बीच नज़दीकियां आज की नहीं है, बल्कि तब की है जब ये दोनों ही भारतीय क्रिकेट टीम में भी नहीं आए थे। थोड़ा पीछे चलते हैं और आपको बताते हैं शास्त्री और अरुण के बीच का पुराना नाता।

  • 1979 भारतीय अंडर-19 क्रिकेट टीम के जब कप्तान थे रवि शास्त्री तब उसी टीम में गेंदबाज़ के तौर पर खेल रहे थे भरत अरुण
  • रवि शास्त्री ने 1981 में राष्ट्रीय टीम में जगह बना ली थी, जबकि भरत अरुण ने 1986 में टीम इंडिया के लिए डेब्यू किया।
  • अरुण इससे पहले 2014 में टीम इंडिया के गेंदबाज़ी कोच रह चुके हैं, और वह भी तब जब उस वक़्त रवि शास्त्री टीम डायरेक्टर थे।
  • रवि शास्त्री के ही कहने पर ई श्रीनिवासन ने भरत अरुण को टीम का गेंदबाज़ी कोच बनाया था।
  • जब तक रवि शास्त्री टीम इंडिया से मैनेजर और डायरेक्टर के तौर पर जुड़े रहे तब तक भरत अरुण भी टीम के साथ थे।

मतलब साफ़ है, जैसे ही शास्त्री एक बार फिर भारतीय क्रिकेट टीम के साथ जुड़े हैं तो वह अपने पुराने दोस्त भरत अरुण को भी लाना चाहते हैं। लेकिन दादा के इस दांव ने रवि शास्त्री की राहें थोड़ी मुश्किल कर दी हैं। अब देखना है कि अरुण के लिए कैसे शास्त्री बीसीसीआई और CoA को मनाते हैं, लेकिन सौरव गांगुली और रवि शास्त्री के बीच शुरू हो चुकी तनातनी न भारतीय क्रिकेट के लिए शुभ संकेत है और न ही खेल भावना के लिए अच्छा।

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