क्या हार्दिक पांडया कपिल देव के उत्तराधिकारी साबित हो सकते हैं?

आजकल हमारे देश में ये चर्चा जोर-शोर से जारी है कि क्या हार्दिक पांडया के रूप में भारत को महान ऑलराउंडर कपिल देव का उत्तराधिकारी मिल गया है? क्रिकेट विशेषज्ञों से लेकर आम क्रिकेट प्रेमी तक हर कोई अपने-अपने ढंग से दोनों की तुलना करके निष्कर्ष निकालने में लगा हुआ है, कि क्या दशकों से चले आ रहे एक अदद क्वालिटी ऑलराउंडर का सूखा अब खत्म हो जाएगा? कपिल देव के समय में तो रोजर बिन्नी, मदनलाल, मोहिंदर अमरनाथ, संदीप पाटिल, मनोज प्रभाकर आदि कई ऑलराउंडर उभरे थे, जो मध्यम तेज गति से गेंदबाजी के अलावा बल्लेबाजी में भी सक्षम थे। लेकिन उसके बाद जो भी ऑलराउंडर खिलाडी आये और लम्बे समय तक टीम का हिस्सा रहे, वो सभी स्पिन गेंदबाजी करने में ही माहिर थे। तेज गेंदबाजी के साथ बल्लेबाजी करने वाले कुछ ऑलराउंडर टीम में आये तो जरूर, लेकिन उनमें से कोई भी लम्बे समय तक टीम में टिक नहीं पाया। वर्तमान टीम में भी रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा जैसे खिलाडी ऑलराउंडर के तौर पर अपनी धाक जमा रहे हैं, लेकिन तेज गेंदबाजी के साथ-साथ अच्छी बल्लेबाजी करने वाले ऑलराउंडर खिलाडी की भारतीय टीम की तलाश अभी भी जारी है। हार्दिक पांडया की कपिल देव से तुलना की जो वजह है, वो है हालिया मैचों में किया गया उनका शानदार प्रदर्शन। दोनों की तुलना करने से पूर्व हमें ये समझना होगा किसी भी टीम में एक अच्छे ऑलराउंडर का क्या महत्व होता है? एक अच्छा ऑलराउंडर किसी भी टीम की सफलता की कुंजी है, और यदि वो ऑलराउंडर बढ़िया क्वालिटी का हो तो सोने पे सुहागा। हरेक टीम की इच्छा होती है कि वो खेल के प्रत्येक प्रारूप में लगातार जीतती रहे। लेकिन ये तभी सम्भव हो सकता है, जब उस टीम के पास कम से कम एक या दो क्वालिटी ऑलराउंडर हों, क्योंकि विशेषज्ञ बल्लेबाज या गेंदबाज हर मैच में लगातार अच्छा करें ये सम्भव नहीं है, यदि दिन अच्छा न हो तो बड़े से बड़ा बल्लेबाज या गेंदबाज उस दिन अपने प्रदर्शन से निराश करता है, बड़े खिलाडी की नाकामी का असर ये होता है कि पूरी टीम की रणनीति ही गड़बड़ा जाती है। जबकि टीम में ऑलराउंडर खिलाडी होने का फायदा ये होता है कि यदि खिलाडी एक विभाग में असफल हो भी जाए तो दूसरे विभाग में उसकी भरपाई कर सकता है। यही कारण है कि हर टीम अपने प्लेइंग 11 में ज्यादा से ज्यादा ऑलराउंडर को शामिल करने पर जोर देती है, खासतौर पर खेल के छोटे प्रारूप में। कपिल देव और हार्दिक पांडया के बीच तुलना करने के लिए हमें दोनों खिलाडियों के आंकड़ों पर निगाह डालनी होगी, आंकड़ों के आइने में देखें तो दोनों खिलाडियों का प्रदर्शन इस प्रकार हैं- कपिल देव का प्रदर्शन टेस्ट मैच में: कुल मैच खेले- 131, कुल रन बनाये- 5248 रन, बल्लेबाजी औसत- 31.05, शतक- 8, अर्धशतक- 27, उच्चतम स्कोर- 163 रन कुल विकेट- 434 विकेट, गेंदबाजी औसत-29.64, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- 9/83, मैच में 5 विकेट- 23, मैच में 10 विकेट- 2, कैच- 64 वनडे में: कुल मैच खेले- 225, कुल रन बनाये- 3783 रन, बल्लेबाजी औसत- 23.79, शतक- 1, अर्धशतक-14, उच्चतम स्कोर- 175* कुल विकेट- 253 विकेट, गेंदबाजी औसत- 27.45, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- 5/43, मैच में 5 विकेट- 1, कैच- 71 फर्स्ट क्लास मैचों में: कुल मैच खेले- 275, कुल रन बनाये- 11,356 रन, बल्लेबाजी औसत- 32.91, शतक- 18, अर्धशतक- 56, उच्चतम स्कोर- 193 रन कुल विकेट- 835 विकेट, गेंदबाजी औसत- 27.09, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- 9/83, मैच में 5 विकेट- 39, मैच में 10 विकेट- 3, कैच- 192 हार्दिक पांडया का प्रदर्शन टेस्ट मैच में: कुल मैच खेले- 3, कुल रन बनाये- 178 रन, बल्लेबाजी औसत- 59.33, शतक-1, अर्धशतक- 1, उच्चतम स्कोर- 108 रन कुल विकेट- 4 विकेट, गेंदबाजी औसत- 23.75, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- 2/31, मैच में 5 विकेट- 0, मैच में 10 विकेट-0, कैच- 4 वनडे में: कुल मैच खेले- 29, कुल रन बनाये- 584 रन, बल्लेबाजी औसत- 36.50, शतक- 0, अर्धशतक- 4, उच्चतम स्कोर- 83 रन कुल विकेट- 31 विकेट, गेंदबाजी औसत- 35.97, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- 3/31, मैच में 5 विकेट-0, कैच- 10 टी-20 में: कुल मैच खेले- 24, कुल रन बनाये- 140 रन, बल्लेबाजी औसत- 10.77, शतक- 0, अर्धशतक- 0, उच्चतम स्कोर- 31 रन कुल विकेट- 17 विकेट, गेंदबाजी औसत- 27.71, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन- 3/8, मैच में 5 विकेट- 0, कैच- 13 फर्स्ट क्लास मैचों में: कुल मैच खेले- 20, कुल रन बनाये- 924 रन, बल्लेबाजी औसत- 30.80, शतक-1, अर्धशतक- 6, उच्चतम स्कोर- 108 रन कुल विकेट- 28 विकेट, गेंदबाजी औसत- 33.96, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन-5/61, मैच में 5 विकेट- 1, कैच- 11 दोनों खिलाडियों के आंकड़ों के आधार पर उनकी तुलना करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचना अभी जल्दबाजी ही होगी, क्योकि जहाँ एक ओर अनुभव की खान कपिल देव अपना गौरवशाली करियर 23 साल पहले ही समाप्त कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर अनुभवहीन हार्दिक पांडया के करियर की अभी शुरुआत ही हुई है। इन दोनों खिलाडियों की तुलना को लेकर मेरा ये मानना है कि अभी इनकी तुलना करने का सही समय नहीं है, किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें अभी और प्रतीक्षा करनी चाहिए। इसकी एक वजह ये है कि दोनों अलग-अलग दौर के खिलाडी हैं, दो विभिन्न दौर के खिलाडियों की आपस में तुलना आसान नहीं होती। दोनों खिलाडियों के दौर में काफी अंतर भी है, ये अंतर खिलाडियों की मानसिकता से लेकर खेल के नियमों, इस्तमाल की जाने वाली खेल सामग्री तक सभी में आया है। कपिल देव एक ऐसे दौर में उभरकर सामने आये थे, जब खिलाडी प्रोफेशनल नहीं होते थे, भारत में उस समय तेज गेंदबाज बनने की सोचना भी दिवास्वप्न जैसा ही था, उस समय भारतीय टीम में स्पिनरों का ही बोलबाला था, गेंदबाजी में भारतीय टीम पूरी तरह अपने स्पिनरों बिशन सिंह बेदी, वेंकटराघवन, इरापल्ली प्रसन्ना, भागवत चंद्रशेखर, सुभाष गुप्ते आदि पर निर्भर थी। जबकि हार्दिक पांडया जिस दौर में खेल रहे हैं हालात बिलकुल बदल चुके हैं। इसके अलावा दूसरी वजह है एक नए अनुभवहीन खिलाडी की किसी अनुभवी खिलाडी से तुलना करना न्यायसंगत नहीं है। फिर भी यदि हम दोनों खिलाडियों की तुलना करें तो पाएंगें कि अभीतक के प्रदर्शन को देखते हुए हार्दिक पांडया बल्लेबाजी में कपिल देव जैसा या उनसे बेहतर प्रदर्शन जरूर कर सकते हैं, लेकिन गेंदबाजी में अभी वो कपिल देव से कोसों दूर हैं, हार्दिक पांडया को कपिल देव के बराबर तो दूर उनके आसपास भी पहुँचना है, तो एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा, खासतौर पर टेस्ट प्रारूप में। अभी तो बेहतर यही होगा कि हम इस चर्चा को विराम लगा दें! कहीं ऐसा न हो अपेक्षों के बोझ तले हार्दिक पांडया जैसी प्रतिभा बिखर जाए? क्योंकि किसी खिलाडी पर अपेक्षाओं का अतिरिक्त बोझ डालने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं ये हम अतीत में इरफ़ान पठान और अजीत अगरकर के रूप में देख चुके हैं। हमने देखा है कि कैसे इरफ़ान पठान जैसी विलक्षण प्रतिभा ऐसी अपेक्षाओं के बोझ तले दब के रह गई। दबाव ने उनकी गेंदबाजी पर बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव डाला था। बल्लेबाजी में अपना प्रदर्शन सुधारने के प्रयास में तो इरफ़ान जरूर सफल रहे थे, लेकिन जो इरफ़ान एक समय स्विंग का किंग कहे जाते थे, बाद में उनकी गेंदों से स्विंग एकदम गायब हो गई। और ऐसी गायब हुई कि उसकी वजह से एक समय टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे इरफ़ान स्वयं भी टीम से गायब हो गए। लिहाज़ा बेहतर यही होगा कि हमें अभी से हार्दिक पांडया पर अपेक्षाओं का बोझ नहीं लादना चाहिए, हमें हार्दिक पांडया को अपने खेल को निखारने का और मौका देना चाहिए। जिससे वो लम्बे समय तक भारतीय टीम की सेवा कर सकें। वैसे मेरी राय में एक और खिलाडी भी है, जो इस स्थान को भरने में सक्षम है और जिसे अभीतक सभी ने नजरअंदाज कर रखा है। वो खिलाडी हैं भुवनेश्वर कुमार, यदि वो अपनी बल्लेबाजी में थोड़ा सा सुधार और निरंतरता ले आयें तो वो भी कपिल देव के उत्तराधिकारी साबित हो सकते हैं।