सौरव गांगुली की आत्मकथा ''ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ़'' जो लॉन्च हो चुकी है और अब दादा के दीवानों की पहली पसंद बनती जा रही है, इस किताब में अगर क्रिकेट फ़ैंस को सबसे ज़्यादा उत्सुक्ता किसी चीज़ की थी तो वह थी दादा और ग्रेग चैपल विवाद। गांगुली और चैपल विवाद किसी से छिपा नहीं है, और सभी जानते हैं कि जिस चैपल को दादा ने ही टीम इंडिया का कोच बनाया था उसी चैपल ने दादा और टीम इंडिया के ख़िलाफ़ बहुत कुछ किया। क्रिकेट जानकार के साथ साथ मास्टर ब्लास्टर भी 2007 वर्ल्डकप में पहले ही दौर में टीम इंडिया का वर्ल्डकप से बाहर होने का ज़िम्मेदार चैपल को बता चुके हैं। ‘’A Century Is Not Enough’’ पढ़ते हुए पाठक के तौर पर मुझे भी उत्सुकता थी, दादा ने भी चैपल प्रकरण को कुल 3 चैप्टर में बांटा है। पहले चैप्टर में वह चैपल के साथ ऑस्ट्रेलिया में बिताए उन 7 दिनों की याद ताज़ा कराते हैं जहां चैपल से दादा ने बल्लेबाज़ी टिप्स के लिए समय मांगा था। हालांकि ये तो बस एक बहाना था, इसके पीछे का मक़सद काफ़ी बड़ा था। दादा 2003-04 में होने वाले भारत के ऑस्ट्रेलियाई दौरे से पहले वहां पहुंचकर पिच की रेकी करना चाहते थे। दादा ने ये बात बीसीसीआई तक को नहीं बताई थी और इसे बस अपने व्यक्तिगत सुधार के लिए चैपल से मुलाक़ात की बात कही थी। चैपल ने दादा की बल्लेबाज़ी में भी मदद की और इस दौरान दादा ने मैदान का मुयाना करने के साथ साथ ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में गेंदबाज़ कहां गेंद को पिच करते हैं ? एडिलेड के आयताकार मैदानों पर फ़िल्डर्स को कहां रखना सही रहता है ? ब्रिसबेन के गाबा पर क्या मुश्किलें आ सकती हैं, इन सारे सवालों का जवाब लेने और अपनी बल्लेबाज़ी में सुधार के साथ दादा भारत लौटे और बीसीसीआई से गुज़ारिश की ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पहले टेस्ट मैच के 3 हफ़्ते पहले ही टीम को वहां भेज दिया जाए ताकि पूरी तरह से अनुकूल होने का मौक़ा मिले, और वैसा ही हुआ। दादा ने ये भी बताया कि जब तब के कोच जॉन राइट को चैपल के साथ उनकी इस मुलाक़ात की बात पता चली थी उन्होंने पहले नाराज़गी भी ज़ाहिर की थी, हालांकि फिर कहा था कि आप कप्तान हैं और टीम की भलाई के लिए जो क्या होगा अच्छा ही होगा। और फिर 2003-04 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर जो हुआ वह आज भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज है, टीम इंडिया 1-1 से सीरीज़ बराबर करने में क़ामयाब रही थी जिसकी शुरुआत दादा ने गाबा में खेले पहले टेस्ट में शतक के साथ की थी। इसके बाद जब जॉन राइट का कोच अनुबंध समाप्त हो गया तो दादा ने बीसीसीआई से ग्रेग चैपल को अगला कोच बनाने की गुज़ारिश की। हालांकि सुनील गावस्कर ने मना भी किया और दादा को समझाया था कि बतौर कोच उनका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। उनका रवैया काफ़ी तानाशाही भरा होता है जो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा, पर सौरव गांगुली अपने फ़ैसले पर डटे रहे। इसके बाद बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने भी दादा को कहा कि इयान चैपल जो ग्रेग के भाई हैं और डालमिया के साथ उनके संबंध अच्छे थे, उन्होंने भी ग्रेग चैपल को कोच नहीं बनाने की सलाह दी। लेकिन किसी की बातों का भी दादा पर असर नहीं पड़ा और उन्होंने ग्रेग चैपल को ही अगला कोच बनने की ख़्वाहिश जताई। जब बीसीसीआई ने चैपल को कोच पद के लिए चुन लिया और उन्हें आधिकारिक तौर पर बताया गया तब दादा इंग्लैंड में थे जहां वह काउंटी क्रिकेट में व्यस्त थे। दादा ने काफ़ी देर चैपल से फ़ोन पर बात की और उन्हें बधाई दी, चैपल भी काफ़ी ख़ुश थे। बतौर कोच चैपल का कार्यकाल भारत के ज़िम्बाब्वे दौरे से शुरू हुआ था। गांगुली का कहना है कि जब वह काउंटी के बाद टीम से जुड़े तभी उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि कुछ गड़बड़ है, कोच का रवैया दादा के लिए बिल्कुल उल्टा था। और फिर वही हुआ चैपल की तरफ़ से बीसीसीआई को शिक़ायतों से भरा एक मेल मिला जिसमें मुख्यतौर पर ये था कि सौरव गांगुली के रहते हुए टीम के खिलाड़ी उनसे डरते हैं और सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। टीम को अगर 2007 वर्ल्डकप के लिए तैयार करना है तो फिर दादा की जगह दूसरा कप्तान बनाना ज़रूरी है। ये बात बंगाल के बड़े अख़बार में भी प्रकाशित हुई और फिर देखते ही देखते पूरे देश में आग की तरह फैल गई। बोर्ड ने सौरव गांगुली और ग्रेग चैपल के साथ एक बैठक भी की जिसके बाद चैपल ने बोर्ड से गुज़ारिश की थी कि वह दादा के साथ एक वन टू वन सेशन रखना चाहते हैं लेकिन सौरव गांगुली ने इंकार कर दिया। इसका ख़ामियाज़ा ये हुआ कि दादा को कप्तानी के साथ साथ टीम से भी बाहर कर दिया गया था। उस वक़्त के मुख्य चयनकर्ता किरण मोरे ने राहुल द्रविड़ को नया कप्तान बना दिया था और गांगुली को बाहर करने का कारण उनकी फ़िट्नेस और ख़राब फ़ॉर्म बताया था। जबकि दादा लिखते हैं कि मुझे आजतक इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि मेरा क़सूर क्या था ? मैंने पिछली सीरीज़ में शतक जड़ा था, फिर ख़राब फ़ॉर्म कैसे ? मुझे जब ये बताया गया कि चयन के लिए फ़िट्नेस और फ़ॉर्म साबित करना ज़रूरी है और इसके लिए दिलीप ट्रॉफ़ी में खेलना होगा तो मैंने वह भी किया और जिस शाम टीम चुनी जा रही थी उसी सुबह शतक जड़ते हुए, उस कप्तान को ख़ुद को साबित करना पड़ रहा था जिसने पिछले कुछ सालों में भारत को जीत की आदत दिलाई थी। लेकिन मोरे के पास इन किसी सवालों का जवाब नहीं था, क्योंकि तब तक सुपरपॉवर ‘’गुरू ग्रेग’’ हो चुके थे। दादा के एक क़रीबी पत्रकार दोस्त ने दादा को बताया कि चैपल के दिमाग़ में उनके के ख़िलाफ़ ज़हर घोला गया है, और ये किसी और ने नहीं बल्कि पूर्व कोच जॉन राइट ने ही किया है तभी वह इस तरह कर रहे हैं। हालांकि दादा ने साफ़ किया है कि उन्हें ये न कभी विश्वास था, न है और न होगा कि राइट कभी ऐसा कर सकते हैं क्योंकि वह उनके परिवार का एक हिस्सा हैं और आज भी राइट और दादा बहुत अच्छे दोस्त हैं। चैपल और दादा के बीच विवाद कैसे हुआ और किस तरह चैपल अचानक उनके ख़िलाफ़ हो गए ये सवाल दादा को अब परेशान नहीं करता क्योंकि वह कहते हैं कि चैपल के चैप्टर को ही वह भूल चुके हैं। पर ये आसान नहीं, वरना ख़ुद दादा अपनी इस आत्मकथा ‘’ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ़’’ में इसे तीन-तीन चैप्टर में नहीं रखते।