भारतीय महिला टीम ने करो या मरो के मुक़ाबले में अपने से कहीं मज़बूत न्यूज़ीलैंड को 186 रनों से शिकस्त देकर साबित कर दिया है कि इस बार वह इतिहास बनाने से चूकने नहीं बल्कि रचने गईं हैं। मिताली राज की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने इस जीत के साथ ही सेमीफ़ाइनल में जगह बना लही है, जहां उनका सामना दुनिया की नंबर-1 टीम ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ होगा। ये पहला मौक़ा नहीं है जब टीम इंडिया ने सेमीफ़ाइनल में जगह बनाई हो, इससे पहले 1997, 2000 और 2005 में भारतीय टीम अंतिम-4 में पहुंची थी जिसमें 2005 में तो फ़ाइनल तक का सफ़र विमेंस इन ब्लू ने तय कर लिया था। जहां ऑस्ट्रेलिया के हाथों शिकस्त झेलने के बाद उन्हें रनर अप से संतोष करन पड़ा था। 2009 में सेमीफ़ाइनल की जगह प्ले-ऑफ़ ने ली थी और तब भारत का सफ़र नंबर-3 पर रहते हुए ख़त्म हुआ था। लेकिन इस बार भारतीय महिला क्रिकेट टीम के इरादे अलग और लक्ष्य साफ़ है, पहले 4 मैचों में इंग्लैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका और वेस्टइंडीज़ को हराकर शानदार शुरुआत करने वाली टीम की लय दक्षिण अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ भटक गई थी। लिहाज़ा न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ करो या मरो की स्थिति पैदा हो गई थी, जहां टॉस हारने के बाद बादल से घिरे आसमान और पिच पर मौजूद नमी पर बल्लेबाज़ी करते हुए 21 रनों पर भारत के 2 विकेट गिर गए थे। यहां से विश्व क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज़ और भारतीय महिला टीम की कप्तान मिताली राज ने मोर्चा संभाला और उनका शानदार साथ निभाया अनुभवी हरमनप्रीत कौर ने, दोनों के बीच हुई शतकीय साझेदारी ने भारत को मैच में वापस लाया। मिताली का मैजिक यहीं ख़त्म नहीं हुआ बल्कि उन्होंने वनडे करियर का 6ठा शतक लगाते हुए भारत को एक चुनौतीपूर्ण स्कोर तक पहुंचा दिया। मिताली की मेहनत और उनके लक्ष्य को साकार किया विश्वकप में अपना पहला मैच खेल रही राजेश्वरी गायकवाड़ ने जिन्होंने 5 विकेट लेते हुए कीवियो की पूरी टीम को 79 रनों पर ढेर कर दिया और भारत को 186 रनों से विशाल जीत दिला दी। विमेंस इन ब्लू की ख़ासियत है एक या दो नहीं बल्कि कई मैच विनर, और यही वजह है कि टूर्नामेंट में अंडरडॉग्स के तौर पर शुरुआत करने वाली मिताली एंड कंपनी अब ख़िताब के प्रबल दावेदारों में से एक हो गई है। भारतीय महिलाओं के सामने अब बस दो जीत का लक्ष्य है, पहले सेमीफ़ाइनल और फिर फ़ाइनल। हालांकि ये इतना आसान नहीं होने वाला क्योंकि ऑस्ट्रेलिया का फ़ॉर्म शानदार चल रहा है और बड़े मैचों में कंगारू टीम और भी ख़ूंख़ार हो जाती है। मिताली के लिए अब बात अपने मक़सद को पूरा करना है, विश्व क्रिकेट में अपनी बल्लेबाज़ी का लोहा मनवाने वाली मिताली राज एक बेहतरीन कप्तान भी हैं। और जब भी ज़रूरत पड़ती है वह टीम को सामने से लीड करती हैं, उनकी आंखों में भी वह चमक दिखाई दे रही है जिस मक़सद के साथ वह इंग्लैंड आईं हैं। 1978 वर्ल्डकप से शिरकत कर रही भारतीय महिला क्रिकेट टीम अब एक ऐसे मुक़ाम के नज़दीक पहुंची हुई है जहां से वह पीछे नहीं मुड़ना चाहेंगी। मिताली के साथ साथ पूरी टीम की आंखों में इन दो मैचों की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, उन्हें पता है कि यहां से अगर दोनों मैचों में जीत मिल गई और हाथ में कप और वर्ल्ड चैंपियन के साथ वह वतन वापस लौटीं तो फिर क्रिकेट को धर्म की तरह पूजने वाला ये देश कैसे उन्हें सिर आंखों पर बैठाएगा और इतिहास के पन्नों में हमेशा हमेशा के लिए सभी के सभी अमर हो जाएंगी। लेकिन अगले दोनों में से एक मुक़ाबले में भी उन्हें हार मिली तो फिर इसके लिए अगले 4 साल का इंतज़ार करना होगा और तब शायद तस्वीर और इरादे बदल भी सकते हैं। बीसीसीआई से लेकर भारतीय सरकार, मीडिया और क्रिकेट फ़ैन्स की नज़र अगले कुछ दिन भारतीय महिला क्रिकेट टीम पर होंगी। अगर उन्हें अपने मक़सद में क़ामयाब होना है और सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ साथ भारतीय महिलाओं की प्रेरणा बनते हुए उनके सपनों को सच करना है तो बस मिताली एंड कंपनी को अगले दो मैचों में भी इस मैजिक को बरक़रार रखना है। इसमें अगर वे क़ामयाब हो गईं तो भारतीय महिला क्रिकेट का इतिहास तो बदलेगा ही साथ ही साथ वर्तमान ही नहीं भविष्य भी सुनहरा हो जाएगा।