3 जुलाई 2002 को लंदन में इंग्लैंड के खिलाफ हुए नेटवेस्ट सीरीज के फाइनल को कभी कोई नहीं भूल सकता है। 325 रनों के लक्ष्य के जवाब में 146 रन के अंदर भारतीय टीम के पांच बल्लेबाज आउट हो गए थे। उसके बाद युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ ने 100 रनों से ज्यादा की साझेदारी की थी और युवराज के आउट होने के बाद मैच अकेले दम पर कैफ जिताकर लाए थे। उस अद्भुत क्षण को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। इसी मैच में गांगुली ने फ्लिंटॉफ को जवाब देने के लिए अपनी टी-शर्ट उतार दी थी। इसके बाद मोहम्मद कैफ की भारतीय क्रिकेट में एक अलग पहचान बन गई। हाल ही में उन्होंने अपने क्रिकेट करियर और नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल मुकाबले को लेकर दिलचस्प खुलासे किए हैं।
थिएटर में बधाई देने पहुंच गए थे मोहल्ले वाले
नेटवेस्ट का फाइनल मुकाबला मेरे लिए एक मौका था, जिसे मुझे भुनाना था। दरअसल, मैंने बचपन से हार्ड वर्क किया था तो वो मौका था, जहां मुझे खुद को साबित करना था। पहले था कि सचिन आउट हुए मतलब भारत मैच हार गया। उनके आउट होते ही सारे लोग मैदान से जाने लगे थे। उधर से सचिन पवेलियन लौट रहे थे, इधर से मैं मैदान में जा रहा था। वो मंजर बहुत खराब था। खैर, दर्शकों को तो छोड़िए मेरे घरवाले खुद टीवी बंद कर और घर पर ताला लगाकर पास के एक थिएटर में शाहरुख खान की देवदास फिल्म देखने चले गए थे। मैच जीत गए तो मोहल्ले वाले बधाई देने आए। बाहर ताला देखकर उन्हें लगा कि कैफ ने मैच जिता दिया है इसलिए घरवालों ने बाहर से ताला बंद कर दिया है। मोहल्लेवालों ने खूब दरवाजा पीटा। उन्हें जब बाद में मालूम पड़ा कि सब थिएटर में मूवी देख रहे हैं तो वहां चले गए। फिल्म छुड़वाकर मेरे घरवालों को थिएटर से बाहर बुलाया गया और बधाई दी गई।
बार-बार ऐसा मौका नहीं मिलने वाला था
मुझे नहीं पता था कि उस मैच में मैं इतना लंबा खेलूंगा। मेरे लिए वो सुनहरे मौके से कम नहीं था। नंबर सात पर मैं खेलता था। मुझे मालूम था कि बार-बार सचिन, सहवाग, गांगुली जल्दी आउट नहीं होगे और न मुझे कभी 25 ओवर खेलने को मिलेंगे। युवराज सिंह अच्छी फॉर्म में थे। बस उन्हें देखकर मैं खेलता गया। अगर हमारे बीच अच्छी दोस्ती न होती तो हमारी पार्टनरशिप भी ज्यादा देर टिक न पाती। हम शुरू से साथ में खेले हैं। कई बार हमने आंखों के इशारों में ही रन चुरा लिए थे। उसे और मुझे दोनों को पता था कि हम कैसा खेलते हैं। कुंबले और हरभजन के आउट होने के बाद मैच फंस गया था। हालांकि, वो मौका मैंने हाथ से जाने नहीं दिया।
पापा ने कहा था कि जिंदगी में हमेशा नॉट आउट रहना
मैं उस मैच में नॉट आउट रहा था। इसकी भी एक वजह है। पापा ने बचपन में कहा था कि चाहे रन कम बनाना पर आउट न होना। जिंदगी में हमेशा नॉट आउट रहना। उस वक्त के लोग नाट आउट रहने को बहुत बड़ी तोप मानते थे। मेरे पापा रणजी के 62 फर्स्ट क्लास मैच खेले हैं। 17 साल लगातार क्रिकेट खेला है। घर में क्रिकेट का माहौल था। मेरे ऊपर पहले से ही दबाव था कि मुझे भी क्रिकेटर बनना है। बचपन से घर में पापा की ट्रॉफियां लगी हुई थीं। मुझे घर के माहौल से काफी मदद मिल गई थी कि किस तरह खेलना है।
सचिन जैसा स्ट्रेट शॉट कभी नहीं मार सका
भज्जी और युवराज सिंह से मैं 1996 में ट्रेन में मिला। हम सब ट्रेन से गोवा जा रहे थे। उसके बाद हमारी गहरी दोस्ती हो गई। युवराज और मैंने कई मैच भारत के लिए खेले हैं। वो पॉइंट्स पर फील्डिंग करते थे और मैं कवर पर। वहां हमारे बीच सीनियर्स की परफॉर्मेंस को लेकर अक्सर वार्तालाप होती रहती थी। जवागल श्रीनाथ, अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर को हमने टीवी पर देखा था। जब पहली बार इनके साथ खेला तो लगा कि सच में मैं इनके साथ खेल रहा हूं कि यह कोई सपना है। हम लोग लकी हैं कि ऐसे सीनियर्स के साथ खेलने का मौका मिला, जिन्होंने क्रिकेट के साथ जिंदगी के बारे में भी सिखाया है। मैं सचिन का बड़ा फैन था। मैं उनकी तरह शारजाह वाला स्ट्रेट छक्का मारना चाहता था, जो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डेजर्ट स्टॉर्म कहे जाने वाले मैच में लगाया था पर मैं कभी वैसा शॉट मार नहीं सका। द्रविड़ के साथ मैंने काफी टाइम बिताया। वह बहुत ज्यादा टैलंटेड नहीं थे पर हार्ड वर्कर थे। उन्होंने बुलंदियों पर पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है।
मैं डेब्यू के वक्त तैयार नहीं था
मेरा डेब्यू एलन डोनाल्ड, लांस क्लूसनर, कैलिस, पोलाक, हैवर्ड के सामने हुआ था। मुझे तो हैवर्ड पागल लगते थे। टीवी पर जो गुडलेंथ, फुल लेंथ, शॉर्ट ऑफ लेंथ दिखाते हैं, उन्हें उस पर भरोसा ही नहीं था। उन्हें तो बैक ऑफ लेंथ पर भरोसा था कि बस बल्लेबाज के सिर पर मारना है बाउंसर। उन्होंने मुझे एक भी बॉल कवर ड्राइव नहीं दी। जिस स्पीड और पैशन के साथ वो लोग गेंदबाजी कर रहे थे, तब मुझे लगा कि मैं तैयार नहीं था। मैंने श्रीलंका में अंड-19 वर्ल्डकप जिताया था। डोमेस्टिक में अच्छा खेल रहा था लेकिन उनके तरह के गेंदबाजों को कभी खेलने का अनुभव ही नहीं था। उसके बाद मेरी जिंदगी में काफी बदलाव आए।
आईपीएल में टेक्निक की जरूरत नहीं होती
आईपीएल के लिए जो लोग बोलते हैं कि टेक्निक की जरूरत होती है, वो सब बेकार की बातें हैं। आईपीएल मैन मैनेजमेंट का गेम है। यह एक स्किल बेस गेम है, जिसमें जो खिलाड़ी तैयार हो बस उसे मौका दे दो। इस मामले में धोनी बहुत स्मार्ट हैं। पंत को देखकर लगता है कि वह कम उम्र में ही काफी कुछ सीख गए हैं कि उन्हें क्या करना है। कब प्रैक्टिस करनी है। कितने अभ्यास के दौरान कैच लेने हैं, बैटिंग के दौरान हिट करने हैं, कब जिम जाना है। सब उन्हें मालूम है। मुझे नहीं लगता है कि उन्हें किसी तरह के गाइडेंस की जरूरत है।
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