महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट में एक बेजोड़ नाम है। हालांकि उनकी आलोचना भी काफी होती रही। उनकी बल्लेबाजी तकनीक पर हमेशा सवाल उठते रहे। विदेशी दौरों में उनकी कप्तानी पर सवाल उठे। मगर इस समय तो हद ही पार हो चुकी थी। इंग्लैंड के हाथों भारत को अपने घर में टेस्ट सीरीज में शिकस्त झेलना पड़ी थी। अचानक ही 'कैप्टन कूल' अपना आपा खो बैठे थे। उनकी शानदार बल्लेबाजी पर दीमक लगी प्रतीत हुई और महेंद्र सिंह धोनी आलोचनाओं का केंद्र बन चुके थे। फिर 23 फरवरी 2013 को धोनी बल्लेबाजी करने उतरे। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चेन्नई में सीरीज का पहला टेस्ट खेला जा रहा था। तेंदुलकर आउट ही हुए थे और भारत का स्कोर 4 विकेट पर 196 रन था। तब ऑस्ट्रेलिया का पहली पारी में बनाया 380 रन का स्कोर विशाल नजर आ रहा था और एक बार फिर संकेत मिलने लगे कि इंग्लैंड के हाथों सीरीज गंवाने वाली भारतीय टीम फिर हार की तरफ बढ़ रही है। मगर कप्तान धोनी एक योजना और प्रतिबद्धता के साथ क्रीज पर आए। नाथन लायन द्वारा ऑफ़स्टंप के बाहर डाली पहली ही गेंद पर धोनी ने असफल स्वीप शॉट खेलने का प्रयास किया। यह धोनी का अलग अंदाज है। यह क्लासिक धोनी थे। यह सिर्फ शुरुआत थी। धोनी ने फिर पहली बाउंड्री 22वीं गेंद पर जमाई जब लायन की गेंद को उन्होंने मिड ऑन के ऊपर से खेला। एक गेंद के बाद उन्होंने मिड विकेट की दिशा में शॉट खेलकर एक और बाउंड्री हासिल की। फिर कुछ और शॉट खेले और धोनी ने अपने कंधों पर टीम की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी उठा ली। क्लार्क ने धोनी को रोकने के लिए तेज गेंदबाजों का सहारा लिया, लेकिन बल्लेबाज ने आसानी से सभी गेंदबाजों का मुकाबला किया। उन्होंने पैटिनसन की गेंद पर पॉइंट के ऊपर से शॉट जमाया तो स्टार्क के एक ओवर में तीन बाउंड्री निकाली। धोनी ने सिर्फ 59 गेंदों में अर्धशतक पूरा किया। धोनी का ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को यह जवाबी हमला नहीं था, बल्कि उनकी आक्रमकता का दृश्य भर था। हेनरिक्स की गेंद पर आगे बढ़कर धोनी ने एक्स्ट्रा कवर के ऊपर से छक्का जमाया। छक्का वो भी तेज गेंदबाज को। यह दर्शनीय शॉट था। एक गेंद के बाद वह फिर आगे बढ़े और मिड ऑन के ऊपर से फिर छक्का जमा दिया। हेनरिक्स तो धोनी के सामने क्लब स्तर के गेंदबाज लगे। यह धोनी का बयान था कि वह अपनी टीम को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने देंगे। कोहली के साथ धोनी ने 158 गेंदों में 128 रन की शतकीय साझेदारी की। यह सफ़ेद गेंद का क्रिसक्त नहीं बल्कि लाल गेंद का क्रिकेट था, जिसे टेस्ट क्रिकेट कहते हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने की दमदार वापसी ऑस्ट्रेलिया ने वापसी की जब लगने लगा कि यह जोड़ी उनसे मैच दूर ले जाएगी और जल्द ही भारत का निचलाक्रम भी ढहने लगा। जडेजा, हरभजन और अश्विन बिना किसी उपयोगी योगदान के पवेलियन लौट गए। दूसरे छोर पर धोनी इन सभी चिंताओं से मुक्त नजर आए। उन्होंने आक्रामक पारी खेलना जारी रखा और अपना नैसर्गिक खेल खेला, जिसके लिए वह मशहूर हैं। उन्होंने सिडल की अंदर आती गेंद को कवर्स की दिशा में खूबसूरती से खेला। इसके बाद पिच पर आगे बढ़कर धोनी ने स्क्वायर लेग की दिशा में चौका जमकर अपना शतक पूरा किया। उल्लेखनीय है कि धोनी ने सैकड़ा केवल 119 गेंदों में पूरा कर लिया। ऑस्ट्रेलिया ने कुछ विकेट लिए और जब हरभजन आउट हुए तो प्रतीत हुआ कि भारत अपनी बढ़त को गंवा देगा।
गेंदबाजों ने जीत दिलाई और सीरीज में भारत ने किया वाइटवॉश फिर अश्विन और जडेजा ने जिम्मेदारी उठाते हुए ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी क्रम को तहस-नहस कर दिया। पुजारा और विजय ने अगले मैचों में शानदार शतक जमाए और ऑस्ट्रेलिया को बैकफुट पर धकेल दिया। भारत ने आगे चलकर ऑस्ट्रेलिया का 4-0 से वाइटवॉश किया। यह भारत की घर में हावी होने की दमदार शुरुआत थी जो आज तक जारी है। इसी वहज से 224 रन की यह पारी क्रिकेट के इतिहास में विशेष स्थान रखती है। कप्तानी की आलोचना पर भी विराम लगा और देश अपने कैप्टन कूल से प्यार करने लगा।