बीसीसीआई में हुए एक बड़े प्रशासनिक विकास में मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन की पूर्ण सदस्यता ले ली गई है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा मनोनीत कमिटी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेटर्स ने नियमों के मेमोरेंडम में बदलाव किया और उसी के परिणाम स्वरुप न सिर्फ मुंबई, बल्कि विदर्भ, बड़ौदा और सौराष्ट्र की भी पूर्ण सदस्यता चली गई है और अब ये सभी बीसीसीआई के एसोसिएट सदस्य हैं। इसकी वजह से अब इन सभी एसोसिएशन के पास वोट देने का अधिकार नहीं होगा। बीसीसीआई के अनुसार," हर राज्य का प्रतिनिधित्व उनकी राज्य क्रिकेट एसोसिएशन करेगी, जिन्हें बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त हो। एक राज्य से एक समय में एक से ज्यादा पूर्ण सदस्य नहीं हो सकते। हालांकि ये भी तय किया गया कि जिस राज्य में एक से ज्यादा क्रिकेट एसोसिएशन है, उनमें से हर साल किसी एक को जिम्मेदारी मिलेगी। एक समय में उस राज्य का सिर्फ एक एसोसिएशन ही बीसीसीआई के अधिकारों का फायदा उठा पाएगा। रेलवे, सेना और यूनिवर्सिटीज को भी सदस्यता नहीं मिल पाई। वहीं दूसरी तरफ बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को एक बार बीसीसीआई की पूर्ण सदस्यता मिल गई है। बिहार के साथ-साथ उत्तराखंड, तेलंगाना और पूर्वोत्तर के राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम को भी पूर्ण सदस्यता दी गई है और अब इनके पास वोट देने का अधिकार होगा। लोढ़ा पैनल के एक राज्य एक एसोसिएशन वाले सुझाव के तहत अब बीसीसीआई के 30 पूर्ण सदस्यों के रूप में 30 एसोसिएशन को ही घरेलू क्रिकेट का कार्यभार दिया गया है। बीसीसीआई के नए नियमों के मुताबिक़ एक व्यक्ति 9 साल से ज्यादा ऑफिस में नहीं रह सकता। ये 9 साल तीन-तीन साल के तीन टर्म वाले हो सकते हैं। साथ ही 70 साल से ऊपर के व्यक्ति क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर नहीं हो सकते और इसके अलावा वो कोई नेता और सरकारी कर्मचारी भी नहीं हो सकते। अब अगर बिहार की बात करें, तो उन्हें एक अरसे बाद वोट देने का अधिकार तो मिल गया लेकिन ये तभी कार्य में आएगा जब सारे निलंबित केस खत्म हों। इसके बावजूद बिहार के युवा क्रिकेटरों के लिए ये एक बहुत ही बड़ी खबर है। झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन को पूर्ण सदस्यता मिलने के बाद से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन बीसीसीआई का पूर्ण सदस्य बनने की जद्दोजेहद में लगा हुआ था लेकिन आंतरिक कलह की वजह से चीज़ें सुधरने की बजाए और बिगड़ते चली गईं। बिहार को पूर्ण सदस्यता मिलने पर आदित्य वर्मा, कीर्ति आज़ाद, राजू वाल्स और सुनील कुमार ने ख़ुशी जताई है। हालांकि इस सुधारों के बीच ये भी देखना है कि क्या इतने बड़े फैसले से इस सीजन की रणजी ट्रॉफी पर कोई असर पड़ेगा या नहीं? आखिर मुंबई 41 बार की रणजी चैंपियन है और उनका पूर्ण सदस्य से एसोसिएट सदस्य बनना काफी चौंकाने वाला है।