अच्छे और सबसे अच्छे के बीच में एक खाई होती है । जो अच्छे होते हैं वो खिलने के बाद मुरझा जाते हैं, लेकिन जो सबसे अच्छे होते हैं वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने लिए रास्ता निकाल लेते हैं । कुछ क्रिकेटर लंबे समय तक खेलने के लिए गॉड गिफ्टेड होते हैं, लेकिन कुछ खिलाड़ियों को काफी मेहनत करनी पड़ती है ।
कुछ क्रिकेटर अपना करियर शुरु करते हैं और एक समय के बाद लगने लगता है कि वो हमेशा के लिए खेलें । ये उस विशेष खिलाड़ी की अपनी क्लास और पहचान होती है जो उसे औरों से अलग करती है । वहीं ऐसे क्रिकेटरों से फैंस को उम्मीदें भी काफी होती हैं ।
वहीं इंटरनेशनल क्रिकेट में चुनौतियों को देखते हुए खिलाड़ियों को लंबे समय तक खुद को लय में बनाए रखना आसान नहीं होता है । क्योंकि कभी-कभी जब किसी खिलाड़ी का बुरा दौर चल रहा होता है तो उसके फॉर्म को लेकर काफी सवाल उठाए जाने लगते हैं । फिर उसके लिए वापसी करना आसान नहीं होता है । इसलिए इंटरनेशनल क्रिकेट में खेलना ही काफी बड़ी बात होती है ।
कुछ खिलाड़ी हमेशा टीम में बने रहते हैं, जबकि कुछ खिलाड़ी अंदर-बाहर चलते रहते हैं । यहां हम आपको बता रहे हैं उन खिलाड़ियों के बारे में जिन्होंने 2003 के आस-पास डेब्यू किया था और वो अब भी क्रिकेट खेल रहे हैं ।
आशीष नेहरा-
चोट की वजह से आशीष नेहरा हमेशा भारतीय टीम से अंदर-बाहर होते रहे । फिर भी इंटरनेशनल क्रिकेट में उन्होंने भारत को कई मैच जिताए हैं । खराब फॉर्म के कारण आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद नेहरा ने हार नहीं मानी ।
नेहरा कभी रुके नहीं । उन्होंने अपनी फिटनेस और गेंदबाजी पर दिन-रात मेहनत की । यही वजह रही कि 36 साल की उम्र में भी वो चेन्नई सुपर किंग्स के सबसे फिट खिलाड़ियों में से एक साबित हुए । आईपीएल इंटरनेशनल क्रिकेट में उनकी वापसी का रास्ता भी बना और भारत में हुए टी-20 वर्ल्ड कप में उन्हें टीम में जगह दी गई ।
37 साल की उम्र में भले ही इंटरनेशनल क्रिकेट में उनकी वापसी मुश्किल हो लेकिन नेहरा हमेशा से ही वर्ल्ड क्लास गेंदबाज रहे हैं । इसकी एक बानगी 2003 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ मैच में देखने को मिली । यकीन ही नहीं होता कि ऐसा शानदार गेंदबाज अपने 17 साल के करियर में भारत की तरफ से ज्यादा मैच नहीं खेला पाया ।
क्रिकेट करियर- फरवरी 1999 से अब तक (17 साल 9 महीने)
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टेस्ट: 17
वनडे: 120
टी-20: 23
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यूनिस खान -
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यूनिस खान पाकिस्तानी टीम के अहम खिलाड़ी हैं । फिर भी उन्हें वो सबकुछ नहीं मिला जिसके वो हकदार थे । इंटरनेशनल क्रिकेट में उन्होंने काफी रन बनाए हैं । उनके साथ खेलने वाले ज्यादातर खिलाड़ियों ने संन्यास ले लिया है लेकिन यूनिस खान अभी भी बेहतरीन क्रिकेट खेल रहे हैं ।
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यूनिस खान किसी की परवाह नहीं करते हैं । खराब फॉर्म के कारण उन्हें 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज में ड्रॉप कर दिया गया था । लेकिन उसी दौरे पर टेस्ट सीरीज में उन्होंने अपने बल्ले से सभी का मुंह बंद कर दिया । यूनिस ने टेस्ट सीरीज में 156 की शानदार औसत से 468 रन बनाए । इस दौरान उनका बेस्ट स्कोर 213 रन रहा । वहीं 2009 के टी-वर्ल्ड कप में उन्होंने पाकिस्तानी टीम की कप्तानी भी की ।
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यूनिस खान अब 39 साल के हो चुके हैं, लेकिन आज भी उनका वो जुझारुपन बरकरार है । टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वालों की सूची में यूनिस खान 13वें नंबर पर हैं । जबकि पाकिस्तान की तरफ से टेस्ट मैचों में सबसे ज्यादा रन बनाने के मामले में वो टॉप पर हैं ।
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इसके अलावा टेस्ट क्रिकेट में 10000 रन बनाने वाले वो पहले पाकिस्तानी क्रिकेटर हैं, वहीं यूनिस एक शानदार फील्डर भी हैं ।
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क्रिकेट करियर- फरवरी 2000 से अब तक (16 साल 8 महीने)
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टेस्ट-111
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वनडे-265
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टी-20-25
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मार्लोन सैमुअल्स-
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मैच फिक्सिंग और कई ऐसे ही विवादों के कारण मार्लोन सैमुअल्स का क्रिकेट करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा । 19 साल की उम्र में जब उन्होंने टेस्ट मैचों में डेब्यू किया था, तो सबको लगा था कि वो वेस्टइंडीज के लिए एक बहुत स्पेशल साबित होंगे । लेकिन सैमुअल्स का करियर कभी सामान्य तरीके से नहीं चला ।
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क्रिकेट के खेल की छवि को नुकसान पहुंचाए जाने के आरोप में उन पर 2 साल का बैन लगा दिया गया । जिसकी वजह से सैमुअल्स का वेस्टइंडीज टीम में बने रहना काफी मुश्किल हो गया ।जैसे ही उनके करियर का ग्रॉफ थोड़ा आगे जाता थ अगले ही पल उससे ज्यादा नीचे आ जाता था ।
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लेकिन बात अगर वर्तमान की करें तो 35 साल की उम्र में भी सैमुअल्स तीनों फॉर्मेट में वेस्टइंडीज टीम का अहम हिस्सा हैं । टेस्ट क्रिकेट में वेस्टइंडीज की टीम अभी संघर्ष कर रही है ऐसे में सैमुअल्स के अनुभव को देखते हुए उनकी उपयोगिता काफी बढ़ जाती है ।
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क्रिकेट करियर- अक्तूबर 2000 से अब तक (16 साल एक महीना )
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टेस्ट- 71
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वनडे- 187
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टी-20- 51
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युवराज सिंह-
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भारतीय क्रिकेट टीम के हीरो युवराज सिंह की कहानी बहुत ही दिलचस्प है । क्रिकेट से ज्यादा युवराज का एट्टीट्यूड उन्हें अन्य क्रिकेटरों से काफी अलग करता है । जब भी उन पर उंगली उठी है, उन्होंने बड़े गुरुर के साथ सभी को करारा जवाब देते हुए भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई है ।
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युवराज सिंह काफी जुझारु क्रिकेटर और इंसान हैं । कैंसर होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और कैंसर को हराकर भारतीय क्रिकेट टीम में वापसी की । 2000 में डेब्यू करने के साथ ही वो भारतीय टीम का अहम हिस्सा रहे हैं ।
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युवराज की बल्लेबाजी, उनका वो छक्के लगाने का अंदाज काफी बेहतरीन है । कई बार उन्होंने विस्फोटक पारियां खेलकर भारत को मैच जितवाया है । हालांकि बहुत सारे टैंलेंटेड युवाओं को पछाड़कर भारतीय टीम में वापसी करना युवराज के लिए थोड़ा मुश्किल लगता है, लेकिन फिर भी अपने एट्टीट्यूड की वजह से उन्हें क्रिकेट में हमेशा याद रखा जाएगा ।
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क्रिकेट करियर- अक्टूबर 2000 से अब तक (16 साल 1 महीना)
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टेस्ट- 40
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वनडे- 293
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टी-20- 55
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मोहम्मद सामी-
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मोहम्मद सामी कभी-कभी उपयोगी बल्लेबाजी भी करते थे, लेकिन गेंदबाज वो बड़े ही खतरनाक थे । उन्होंने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में हैट्रिक लिया है, इसलिए उनके लिए गेंदबाजी कभी चिंता का विषय रही ही नहीं । हालांकि बल्लेबाजी में वो जरुर फ्लॉप रहे ।
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लेकिन कहीं ना कहीं ये प्रतिभावान गेंदबाज मैदान पर अपना लय नहीं बनाए रख सका । पाकिस्तानी टीम में एक के बाद एक कई तेज गेंदबाजों के आने के बाद टीम में उनकी जगह मुश्किल हो गई । प्रदर्शन में निरंतरता की कमी उनका सबसे बड़ा दुश्मन बन गई ।
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एक अर्से के बाद उन्होंने पाकिस्तानी टीम में वापसी जरुर की लेकिन फिर टीम में जगह खो बैठे । उन्होंने भारत में हुए टी-20 वर्ल्ड कप में अच्छी गेंदबाजी की, लेकिन इसके बाद उनका प्रदर्शन गिरता गया । इंटरनेशनल क्रिकेट में शमी को 16 साल हो गए हैं, शमी अब यही चाहेंगे कि अपने चरम पर पहुंचने के बाद ही उनके क्रिकेट करियर का अंत हो ।
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क्रिकेट करियर- मार्च 2001 से अब तक (15 साल 8 महीने)
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टेस्ट- 36
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वनडे- 87
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टी-20-13
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मिस्बाह-उल-हक-
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घने अंधेरे के बाद हमेशा उजाला ही आता है, ये कहावत मिस्बाह-उल-हक ने साबित करके दिखा दिया है । मिस्बाह-उल-हक ने 27 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत की थी ।
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2007 में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने उन्हें सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट के लिए अनुबंधित किया । 2007 का टी-20 वर्ल्ड कप उनके लिए यादगार साबित हुआ । 2007 के वर्ल्ड कप में मिस्बाह ने शानदार प्रदर्शन किया और इंटरनेशनल क्रिकेट में धमाकेदार वापसी की ।
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मिस्बाह की उम्र अब 42 साल हो गई है । लेकिन उम्र कभी उनके शानदार करियर में बाधा नहीं बनी । हालांकि 2015 वर्ल्ड कप के बाद उन्होंने वनडे क्रिकेट से संन्यास जरुर ले लिया, लेकिन टेस्ट मैचों में अब भी वो पाकिस्तानी टीम का अहम हिस्सा हैं ।
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क्रिकेट करियर- मार्च 2001 से अब तक (15 साल, 8 महीने)
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टेस्ट-69
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वनडे- 162
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टी-20-39
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हैमिल्टन मासाकाद्ज़ा
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हैमिल्टन मासाकाद्ज़ा ने महज 17 साल की उम्र में ही अपना टेस्ट डेब्यू किया था । 17 साल की उम्र में डेब्यू करके उन्होंने ज़िम्बाब्वे क्रिकेट में भूचाल ला दिया । सबको ये सब कुछ असाधारण सा लगा । लेकिन दुर्भाग्यवश मस्काद्जा का करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा । लेकिन फिर भी बिना किसी शक के वो जिम्बॉब्वे के लीजेंड खिलाड़ियों में से एक हैं ।
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एक अलग तरह की बैटिंग स्टाइल और चतुराई भरी मध्यम तेज गेंदबाजी के कारण वो अपनी टीम के लिए काफी उपयोगी साबित हुए । अब इसे उनका गुडलक कहें या बैडलक उन्हें अपना पहला विश्व कप खेलने का मौका 2015 में ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में हुए वर्ल्ड कप में मिला ।
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धीमी गति से रन बनाने के कारण उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा । हालांकि अपने आलोचकों को उन्होंने करारा जवाब दिया और साल 2009 में 88.08 की औसत से 1000 रन बनाया । 33 साल की उम्र में भी मस्काद्जा के अंदर बहुत क्रिकेट बाकी है । अभी उन्होंने श्रीलंका और वेस्टइंडीज के साथ हुए ट्राई सीरीज में खेला है ।
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क्रिकेट करियर- जुलाई 2001 से अब तक (15 साल 4 महीने)
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टेस्ट-32
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वनडे-169
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टी-20-50
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मशरफे मुर्तजा-
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मशरफे मुर्तजा को सही मायनों में बांग्लादेश का पहला तेज गेंदबाज माना जाता है । मुर्तजा बड़े ही खतरनाक ढंग से गेंदबाजी करते हैं और बल्लेबाज के मन में एक खौफ पैदा करते हैं । वहीं एक बल्लेबाज के तौर पर वो बैट को हैंडल के एकदम ऊपर से पकड़ते हैं ताकि स्ट्रोक में जोर लगा सकें । मुर्तजा एक साहसिक खिलाड़ी हैं और समय के साथ परिपक्कव हो गए हैं । यही वजह है कि वो तीनों फॉर्मेट में बांग्लादेश टीम की कमान संभाल रहे हैं ।
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हालांकि तेज गेंदबाजी उनके लिए घातक भी साबित हुई, क्योंकि चोट की वजह से उनके पेस में कमी आ गई । घुटनों और टखनों में कई बार चोट लगने की वजह से उनकी रफ्तार धीमी पड़ गई । पहले जहां वो 145 की औसत से गेंदबाजी करते थे, वहीं अब वो मीडियम पेस गेंदबाजी करने लगे हैं ।
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एक कप्तान के तौर पर भी वो सफल रहे हैं । 33 साल की उम्र में भी वो बांग्लादेशी टीम का अहम हिस्सा हैं । अभी वो बांग्लादेश प्रीमियर लीग में कोमिला विक्टोरियंस की कप्तानी कर रहे हैं । इन सबको देखते हुए हम कह सकते हैं कि उनके अंदर अब भी बहुत क्रिकेट बाकी है
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क्रिकेट करियर- नवंबर 2001 से अब तक (15 साल)
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टेस्ट- 36
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वनडे- 166
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टी-20- 49
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मोहम्मद हफीज-
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मोहम्मद हफीज को पाकिस्तानी टीम में उनके साथी प्यार से 'प्रोफेसर' कहकर बुलाते हैं । चाहे ओपनिंग बल्लेबाजी हो या ऑफ ब्रेक गेंदबाजी या फिर टीम की कप्तानी मोहम्मद हफीज ने हर एक पोजिशन पर खुद को साबित किया है ।
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डेब्यू करने के साथ ही मोहम्मद हफीज का करियर भी धूप-छांव भरा रहा। यही वजह रही कि वो पाकिस्तानी टीम से अंदर-बाहर होते रहे । मोहम्मज हफीज ने साल 2011 में 10 बार मैन ऑफ द् मैच का खिताब अपने नाम किया । ठीक उसी साल सनथ जयसूर्या और जैक कैलिस के बाद वनडे मैचों में एक कैलेंडर साल में 1000 रन और 30 विकेट लेने वाले वो तीसरे खिलाड़ी बने ।
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2015 में संदिग्ध गेंदबाजी एक्शन के कारण उन पर 12 महीने के लिए गेंदबाजी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया । 36 साल की उम्र में अभी उनकी वापसी थोड़ी मुश्किल लगती है, लेकिन जिस तरह के वो खिलाड़ी रहे हैं उसे देखकर कुछ कहा भी नहीं जा सकता है ।
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About the author
सावन गुप्ता
I have keen interest in Sports. I Like Cricket, Football, Hockey, Badminton, Kabaddi Most. Fan of LSG In IPL and UP Yoddhas in PKL. Favourite player PV Sindhu. I have started my journey in Sports Journalism with Sportskeeda in 2017 and since then i am working for them.