आईसीसी के सभी प्रमुख टूर्नामेंट (विश्व कप, वर्ल्ड टी20 और चैंपियंस ट्रॉफी) जीतने वाले खिलाड़ी

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खेल कोई भी हो, उसे खेलने वाले खिलाड़ी के लिए वर्ल्ड कप जीतना हमेशा बेहद खास होता है। हर खिलाड़ी के नसीब में अपने देश के लिए विश्व कप जीतने का गौरव नहीं लिखा होता। क्रिकेट के खेल में एक होता है आईसीसी वर्ल्ड कप, जो पहले 60 ओवरों का हुआ करता था और बाद में 1987 के एडिशन से इसे घटाकर 50 ओवरों का कर दिया गया। इसके अलावा क्रिकेट में दो और बड़े टूर्नामेंट्स होते हैं, आईसीसी टी-20 वर्ल्ड कप और आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी, जिसे मिनी वर्ल्ड कप भी कहा जाता है। किसी भी क्रिकेटर के लिए इन तीनों टूर्नामेंट्स को जीतने वाली टीम का हिस्सा होना गौरव की बात है। कई खिलाड़ी तो ऐसे होंगे, जो इनमें से एक भी टूर्नामेंट में अपनी प्रतिभागिता तक दर्ज न करा सके होंगे। जबकि सचिन तेंदुलकर, रोहित शर्मा, सनथ जयसूर्या, पीयूष चावला, रिकी पोंटिंग, एडम गिलक्रिस्ट, ग्लेन मैक्ग्रा और क्रिस गेल जैसे कई दिग्गज खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्होंने इनमें से दो टूर्नामेंट जीते हैं। सिर्फ चार ही खिलाड़ी ऐसे हैं, जो इन तीनों टूर्नामेंट्स को जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं और ये सभी भारतीय खिलाड़ी हैं: वीरेंदर सहवाग 2002 आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी: इस टूर्नामेंट में सहवाग सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी थे। उन्होंने 5 पारियों में 91 के औसत और 120 के स्ट्राइक रेट के साथ 271 रन बनाए थे। इनमें एक शतक और एक अर्धशतक शामिल है। इतना ही नहीं, उन्होंने 38 के औसत के साथ टूर्नामेंट में 3 विकेट भी लिए थे। 2007 वर्ल्ड टी-20: पूरे टूर्नामेंट में सहवाग ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उन्होंने पिच या गेंदबाज की परवाह किए बगैर लगभग हर मैच में भारत को तेजतर्रार शुरूआत दी। दुर्भाग्यवश, चोटिल होने की वजह से वह फाइनल मुकाबले में नहीं खेल सके। 2011 वर्ल्ड कपः 2011 विश्व कप के दौरान, सहवाग ने लगभग हर मैच में अपना बेखौफ खेल दिखाते हुए पहली गेंद पर चौका मारने का ट्रेंड सा बना दिया था। टूर्नामेंट में सहवाग ने 47.5 के औसत और 122 के स्ट्राइक रेट के साथ 380 रन बनाए। युवराज सिंह 7e016-1510752273-800 2002 आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफीः युवराज को इस टूर्नामेंट में अधिक बल्लेबाजी करने का मौका नहीं मिला। इसमें योगदान रहा भारत के ऊपरी बल्लेबाजी क्रम का। टूर्नामेंट में युवराज ने 2 पारियों में 65 रन बनाए, जिनमें एक अर्धशतक भी शामिल रहा। हालांकि, पूरे टूर्नामेंट में युवराज ने अपनी फील्डिंग से शानदार खेल दिखाया। सेमीफाइनल मुकाबले में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में युवराज ने ग्रेम स्मिथ और जॉन्टी रोड्स के शानदार कैच लपके थे और इन्हें किसी भी भारतीय खिलाड़ी द्वारा लिए सबसे बेहतरीन कैचों में से एक कहा जा सकता है। 2007 वर्ल्ड टी-20: युवराज ने इस विश्व कप टूर्नामेंट में दो ही अच्छी पारियां खेलीं, लेकिन इन दोनों ही का भारत को फाइनल तक पहुंचाने में खास योगदान रहा। इंग्लैंड के खिलाफ 16 गेंदों में उनकी 58 रनों की पारी, जिसमें उन्होंने 6 छक्कों का कारनाम कर दिखाया था, उसे कोई भी क्रिकेट फैन कभी भुला नहीं सकेगा। सेमीफाइनल मैच में वर्ल्ड चैंपियन्स ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी 30 गेंदों में 70 रनों की पारी, एक मंझे हुए खिलाड़ी का सबूत देती है। 2011 वर्ल्ड कपः 2011 विश्व कप में भारत की जीत के हीरो थे युवराज। उन्होंने न सिर्फ बैट से बल्कि गेंदबाजी में भी अपने जौहर खूब दिखाए। उन्होंने 8 पारियों में 4 अर्धशतकों और 1 शतक की मदद से कुल 362 रन अपने खाते में जोड़े। युवराज का औसत 90.5 और स्ट्राइक रेट 87 का रहा। युवराज ने अपने पार्ट टाइम बोलर होने की भूमिका को भी बखूबी निभाया। उन्होंने 25 के औसत और 5 की इकॉनमी के साथ कुल 15 विकेट झटके। उनके इस ऑलराउंड प्रदर्शन के बल पर उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। हरभजन सिंह 6f1ba-1510752465-800 2002 आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफीः हरभजन ने टूर्नामेंट में 5 मैचों में 30 के औसत और 3.7 की इकॉनमी के साथ 6 विकेट लिए। हरभजन ने बीच के ओवरों में विरोधी टीम के रनों की गति पर लगाम लगाई। 2007 वर्ल्ड टी-20: इस विश्व कप में भारत के गेंदबाजी आक्रमण का नेतृत्व कर रहे थे, आरपी सिंह और इरफान पठान। हरभजन को स्पिन डिपार्टमेंट संभालना था और भारतीय गेंदबाजी को बैकअप देना था। भज्जी ने यह काम बखूबी किया। 2011 वर्ल्ड कपः हरभजन ने एक बार फिर सीनियर खिलाड़ी होने की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाई। टूर्नामेंट में भज्जी के खाते में 9 विकेट आए। उनका औसत 43 का और इकॉनमी 4.48 की रही। भज्जी ने बीच के ओवरों में विरोधी बल्लेबाजों पर नकेल लगा कर रखी। महेंद्र सिंह धोनी 88db9-1510752652-800 2013 आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफीः भारत ने टूर्नामेंट में कुल 5 मैच खेल। इनमें से धोनी को सिर्फ 2 बार बल्लेबाजी करने का मौका मिला। वह एक पारी में 27 रन बना सके और एक में वह अपना खाता तक नहीं खोल सके, लेकिन बतौर कप्तान धोनी ने शानदार खेल दिखाया। 2007 वर्ल्ड टी-20: धोनी के हाथों में पहली बार कप्तानी की जिम्मेदारी थी और धोनी ने इस मौके को खूब भुनाया। भारत को पहले टी-20 विश्व कप में जीत दिलाकर धोनी ने चयनकर्ताओं का भरोसा जीता और फैन्स का भी। टूर्नामेंट में वह भारत की ओर दूसरे सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज बने। धोनी ने 6 पारियों में 31 के औसत और 130 के स्ट्राइक रेट के साथ 154 रन बनाए। 2011 वर्ल्ड कपः टूर्नामेंट के शुरूआती 8 मैचों में धोनी ने 30 के औसत के साथ सिर्फ 150 रन बनाए। लेकिन धोनी ने टीम के लिए सबसे बेहतरीन खेल का प्रदर्शन तब किया, जब भारत को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। फाइनल मुकाबले में धोनी ने युवराज के साथ मिलकर भारत को जीत तक पहुंचाया और भारत 1983 के इतिहास को दोहरा सका। धोनी ने फाइनल में 91 रनों की शानदार पारी खेली। बतौर कप्तान धोनी एकमात्र खिलाड़ी हैं, जिन्होंने तीनों टूर्नामेंट्स में जीत हासिल की है। लेखकः विग्नेश अनंतसुब्रमण्यन, अनुवादकः देवान्श अवस्थी

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