मुंबई के तेज गेंदबाज तुषार देशपांडे (Tushar Deshpande) ने रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) के क्वार्टरफाइनल मैच के दौरान बड़ा कारनामा कर दिखाया। उन्होंने बड़ौदा के खिलाफ मैच में 11वें नंबर पर बैटिंग करते हुए शतक जड़ दिया। उनके इस कारनामे से हर कोई हैरान है। वहीं तुषार देशपांडे का कहना है कि वो हमेशा से ही ये साबित करना चाहते थे कि वो बैटिंग कर सकते हैं। तुषार के मुताबिक उनके पिता उन्हें एक अच्छा ऑलराउंडर मानते हैं और आज उन्होंने ये साबित भी कर दिया।
रणजी ट्रॉफी के क्वार्टरफाइनल मैच में मुंबई के ऑलराउंडर खिलाड़ी तनुश कोटियन (120) और तेज गेंदबाज तुषार देशपांडे (123*) ने इतिहास रच दिया। इन दोनों ने बड़ौदा के खिलाफ खेले गए मुकाबले में बेहतरीन शतक लगाया। फर्स्ट क्लास इतिहास में ये कारनामा करने वाली ये दूसरी नंबर 10 और 11 की जोड़ी है। इससे पहले चंदू सरवटे और शुते बनर्जी ने ये रिकॉर्ड बनाया था। सरवटे और बनर्जी ने 1946 में ओवल में सरे बनाम इंडियंस मैच में यह उपलब्धि हासिल की थी। कोटियन और देशपांडे ने 232 रनों की साझेदारी की। यह तीसरी बार है जब किसी भारतीय जोड़ी ने आखिरी विकेट के लिए 200 से ज्यादा रनों की साझेदारी की हो।
मुझे अपनी बल्लेबाजी पर हमेशा से भरोसा था - तुषार देशपांडे
तुषार देशपांडे नंबर 11 पर बल्लेबाजी करते हुए फर्स्ट क्लास क्रिकेट में शतक बनाने वाले तीसरे भारतीय बल्लेबाज बने। उन्होंने अपनी इस ऐतिहासिक पारी के बाद बड़ा बयान दिया। तुषार देशपांडे ने पीटीआई से बातचीत के दौरान कहा,
मैं अपनी इस पारी से काफी संतुष्ट हूं, क्योंकि 11वें नंबर पर बैटिंग करते हुए मैंने ये शतक लगाया। मैं हमेशा से ही ये साबित करना चाहता था कि मैं बल्लेबाजी कर सकता हूं। मेरे पिता का हमेशा से ये मानना था कि मैं काफी अच्छा ऑलराउंडर साबित हो सकता हूं और ये पारी उनके लिए है। मैं बड़े शॉट लगा सकता हूं। मैंने रबर बॉल से काफी ज्यादा क्रिकेट खेली है और अंडर-14 के दिनों से ही मैं बड़े शॉट्स लगाता था।