आख़िरकार वही हुआ जिसका अंदाज़ा हम सभी को था, रवि शास्त्री की मांगों के सामने बीसीसीआई को झुकना पड़ा और भरत अरुण के गेंदबाज़ी कोच पर मुहर लग ही गई। जिसकी औपचारिक घोषणा भी बस होने ही वाली है, श्रीलंका दौरे के साथ ही 54 वर्षीय भरत अरुण गेंदबाज़ी कोच के तौर पर अपनी दूसरी पारी शूरू करने जा रहे हैं। रवि शास्त्री का समय और उनका भविष्य सुनहरे दौर में है, आप ही सोचिए जिसके लिए वक़्त की सुई और कैलेंडर की तारीख़ों को रोक और बढ़ा दिया जाता है वह कितना ख़ुशक़िस्मत होगा। रवि शास्त्री के लिए सब कुछ मानो उनके मुताबिक़ चल रहा है, पॉवर का एक छोटा सा नमूना तो उन्होंने दे ही दिया। ख़बरें ये भी हैं कि उन्हें एक मोटी रक़म भी मिलने वाली है, कोच के तौर पर टीम इंडिया की सेवा करने के लिए शास्त्री के साथ बीसीसीआई ने सालाना 7 से 7.5 करोड़ रुपये का क़रार किया है। ख़ैर पॉवर और पैसों का खेल तो बीसीसीआई में कैसे चलता है ये हम सभी जानते हैं, लेकिन जिन्हें ये लग रहा है कि सौरव गांगुली के ख़िलाफ़ शास्त्री की ये पहली जीत है। उन्हें इसके लिए अभी थोड़ा इंतज़ार करना होगा, क्योंकि ये भले ही रवि शास्त्री की जीत या दबदबदा हो सकता है पर भारतीय क्रिकेट के लिए ये एक बड़ी हार है। बीसीसीआई ने रवि शास्त्री के लिए जो फ़ैसला किया है, उसके बाद तो ऐसा लगता है कि उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड नहीं बल्कि भारतीय क्रिकेट ‘कंन्फ़ूज़न’ बोर्ड कहा जाए तो शायद ग़लत नहीं होगा। ऐसा इसलिए कि पहले वह एक समिति बनाते हैं जिसमें भारतीय क्रिकेट के तीन बड़े दिग्ग्जों को शामिल किया जाता है। क्रिकेट एडवाइज़री कमिटी (CAC) यानी क्रिकेट सलाहकार समिति में सचिन रमेश तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीवएस लक्ष्मण शामिल हैं। इन तीनों को इस मक़सद के साथ रखा गया है कि भारतीय क्रिकेट और उसके भविष्य के लिए ये शानदार सलाह दे सकें और फिर उसपर अमल करते हुए बीसीसीआई बेहतर फ़ैसले लेगी। इस समिति ने अपने पहले चरण में तो अनिल कुंबले को बतौर कोच रखने की सलाह दी जिसे बीसीसीआई ने स्वीकार किया। और फिर तमाम क्रिकेट जगत ने इसका स्वागत किया। एक बार लगा कि सचिन, सौरव और लक्ष्मण जैसे महान खिलाड़ियों की ये समिति भारतीय क्रिकेट की दिशा और दशा बदल देगी। हालांकि कुंबले और कोहली के बीच में तालमेल न बैठ पाया और फिर एक साल के बाद ही नए कोच के लिए इस समिति ने रवि शास्त्री के नाम को आगे किया। कुंबले प्रकरण देखने के बाद दादा ने इस बार रवि शास्त्री की मदद के लिए रहुल द्रविड़ और ज़हीर ख़ान जैसे दिग्गजों को भी सलाहकार के तौर पर टीम इंडिया के साथ जोड़ा। लेकिन शास्त्री को ये बात पसंद नहीं आई और उन्होंने ये कह कर ज़हीर और द्रविड़ के शामिल होने को चुनौती दे दी कि ये काम सलाहकार समिति का नहीं बल्कि एक कोच का है कि वह किसको सपोर्ट स्टाफ़ रखें और किसको नहीं। यानी दूसरे अल्फ़ाज़ों में कहें तो सलाहकार समिति के इस फ़ैसले को शास्त्री ने ख़ारिज कर दिया। इसकी वजह है उनके अंडर-19 के साथी भरत अरुण जिन्हें वे गेंदबाज़ी कोच के तौर पर जोड़ना चाह रहे थे और बीसीसीआई ने उनकी बात को मान भी लिया। इतना ही नहीं बीसीसआई ने ज़हीर ख़ान और राहुल द्रविड़ के सलाहकार के तौर पर टीम इंडिया से जुड़ने के CAC के फ़ैसले पर फ़िलहाल रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित CoA ने ये कहा है कि 22 जुलाई को रवि शास्त्री से मिलने के बाद वह इसका फ़ैसला करेंगे कि ज़हीर ख़ान और राहुल द्रविड़ का रोल क्या होगा। ख़बरें ये भी हैं कि अगर वे (ज़हीर और द्रविड़) टीम के साथ जुड़े तब भी उनका इस्तेमाल कैसे और कब करना है इसका फ़ैसला भी शास्त्री करेंगे। ऐसे में सवाल ये उठता है: • इस सलाहकार समिति को बनाने का मक़सद क्या था ? जब उनके फ़ैसले और उनकी सलाह का कोई महत्व ही नहीं है तो फिर इस समिति को बनाया ही क्यों गया ? • गेंदबाज़ी कोच की भूमिका अगर भरत अरुण निभाएंगे तो ज़हीर का क्या काम रह जाएगा ? • बल्लेबाज़ी कोच के तौर पर अगर संजय बांगर ही फ़िट हैं तो फिर राहुल द्रविड़ का क्या रोल होगा ? इन सवालों का जवाब न बीसीसीआई के पास है और न ही सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण समझ पा रहे हैं कि ये हो क्या रहा है। रवि शास्त्री को ज़रूरत से ज़्यादा समर्थन करना और उन्हें अधिकार देना न सिर्फ़ सौरव गांगुली या सचिन तेंदुलकर या लक्ष्मण के क़द का अपमान है बल्कि इतनी छूट टीम इंडिया के भविष्य के लिए ख़तरनाक है। हमें ये नहीं भूलना चाहिए ग्रेग चैपल को भी कोच के तौर पर बीसीसीआई ने ज़रूरत से ज़्यादा आज़ादी और पॉवर दिए थे, जिसका इस्तेमाल उन्होंने उस समय पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के ख़िलाफ़ ही किया था और ख़ामियाज़ा पूरी टीम को भुगतना पड़ा था। एक बार फिर वक़्त ने करवट ली है और हम उसी दिशा में जा रहे हैं इत्तेफ़ाक देखिए इस बार भी विवाद कोच और सौरव गांगुली के बीच ही है। फ़र्क सिर्फ़ इतना है तब दादा एक खिलाड़ी और कप्तान के तौर पर मैदान के अंदर थे और अब वह एक अधिकारी और पूर्व खिलाड़ी के तौर पर मैदान से बाहर हैं। लेकिन दादा और कोच की लड़ाई में जीत कोच की हो या दादा की, पर हार भारतीय क्रिकेट की ही हो रही है।