भारतीय क्रिकेट इतिहास के अब तक के सफलतम कप्तानों की फ़ेहरिस्त तैयार की जाए तो उसमें सौरव गांगुली का नाम शीर्ष-3 में ज़रूर रहेगा। गांगुली ने ही टीम इंडिया को जीत की आदत दिलाई और उन्होंने ही भारतीय क्रिकेट इतिहास में कुछ ऐसे क्रिकेटर्स को खोज निकाला जिन्होंने भारत को गौरान्वित किया, उनमें से एक एम एस धोनी भी हैं। दादा के नाम से मशहूर गांगुली की ज़िंदगी कई उतार चढ़ाव से होकर गुज़री है, जिसे प्रिंस ऑफ़ कोलकाता ने कई बार बताया भी है और कई बार महसूस भी किया है। लेकिन उनकी ज़िंदगी और करियर से जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी हैं जो आजतक सिर्फ़ दादा के दिल में ही थी, लेकिन अब उन्होंने सभी के साथ अपनी आत्मकथा के ज़रिए साझा की है। जिसका नाम है ‘ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ’, दादा की ये आत्मकथा को लिखने में उनके ख़ास दोस्तों में से एक गौतम भट्टाचार्या ने भी सहयोग किया है। दादा ने इस किताब को पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को भी समर्पित किया, जो सौरव गांगुली के बहुत क़रीब थे और दादा ने भी अपनी इस किताब में माना है कि अगर वह नहीं होते तो शायद मैं भी आज इस मुक़ाम पर नहीं होता। दादा ने ‘ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ़’ को कुल 17 चैप्टर में बांटा है, और इसके भी तीन भाग किए हैं। जिसमें उन्होंने अपने करियर की शुरुआत, कप्तानी और फिर अपनी वापसी की कहानियों को काफ़ी बारीकी से बताया है। जिस तरह दादा बल्लेबाज़ी के दौरान शुरू से ही गेंदबाज़ों पर हावी होना पसंद करते थे और उनका पसंदीदा शॉट था आगे निकलकर स्टैंड्स में छक्का लगाना। ठीक उसी तरह इस किताब की शुरुआत भी दादा ने काफ़ी आक्रामक अंदाज़ में करते हुए अपने पहले रुममेट और टीम इंडिया के महानतम बल्लेबाज़ों में शुमार दिलीप वेंगसरकर के साथ उनकी पहली हतोत्साहित करने वाली मुलाक़ात के बारे में बताया है, साथ ही कर्नल ने कैसे उन्हें बिना कप्तान से पूछे हुए ड्रॉप तक कर दिया था इसका भी ज़िक्र किया है। दादा का नाम आते ही ग्रेग चैपल का दौर भी भारतीय क्रिकेट फ़ैंस के ज़ेहन में आ जाता है, वह दौर जो चाहकर भी कोई नहीं भूल पाता। दादा ने अपनी इस आत्मकथा में चैपल के बारे में भी खुलकर लिखा है और ये भी बताया है कि जिस चैपल ने उनकी बल्लेबाज़ी में निखार लाया था और जो चैपल टीम इंडिया के कोच बनकर आए थे दोनों में आसमान ज़मीन का फ़र्क़ था, और इसकी वजह जो दादा के क़रीबी दोस्त ने बताई थी उसका भी इस किताब में ज़िक्र है। इन सबके अलावा सौरव गांगुली ने अपने क़रीबी दोस्तों के बारे में भी बताया है जिसमें अनिल कुंबले, हरभजन सिंह, सचिन तेंदुलकर, वीरेंदर सहवाग और ज़हीर ख़ान शामिल हैं। सचिन के साथ तो दादा का लगाव कुछ ज़्यादा ही था, जो इस किताब में कई बार ज़ाहिर भी होता है। क्रिकेट के सबसे छोटे फ़ॉर्मेट का लगाव भी दादा अपनी आत्मकथा में लिखने से नहीं बच पाए, उन्होंने तो यहां तक बताया है कि उनका दिल था कि वह 2007 में होने वाला पहला टी20 वर्ल्डकप खेलते पर राहुल द्रविड़ ने उन्हें और सचिन को न खेलने के लिए मना लिया था। ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ़ में एक ख़ास बात ये रही है कि दादा जिसे पसंद नहीं करते थे या जिसने उनके करियर में बाधा पहुंचाई उसका नाम उन्होंने इशारों में नहीं बल्कि साफ़ तौर पर लिया है। अज़हरउद्दीन की कप्तानी पर सवाल उठाना हो, सचिन की कमियों के बारे में बोलना हो या फिर ज़रूरत पड़ने पर द्रविड़ का चुप रहना और चैपल का साथ देना हो, दादा ने हर बात बिल्कुल बिंदास शब्दों में लिखी है। 2003 वर्ल्डकप के फ़ाइनल तक पहुंच कर न जीत पाने का मलाल भी गांगुली ने ज़ाहिर किया है तो ये भी कहा कि अगर धोनी होते तो बात कुछ और होती। साथ ही साथ धोनी, सहवाग, हरभजन और ज़हीर जैसे खिलाड़ियों को चयनकर्ताओं से लड़कर टीम में लाने का ज़िक्र भी आपको इस किताब में मिल जाएगा तो किस तरह पहले क्षेत्रवाद भरा होता था और कैसे दादा को भी इसका शिकार होना पड़ा, अगर इसको तफ़्सील में जानना है तो ‘ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ़’ पढ़ना ज़रूरी है। आक्रामक और बिंदास बातों के अलावा दादा के कई ऐसे भी अनकहे क़िस्से हैं जिन्हें पढ़कर आपके चेहरे पर मुस्कान आ जाएगी। और एक जोशिले कप्तान के अंदर ऐसा बच्चा भी छिपा हो सकता है ये आपको हैरान कर देगा। कभी सरदार बनकर दादा कोलकाता में दुर्गा पूजा के पंडालों में पहुंच गए तो कभी लाहौर में आधी रात को कबाब खाने के लिए बिना बताए निकल पड़े। शाहरुख़ ख़ान से दोस्ती और आईपीएल में भी अपने उतार चढ़ाव से लेकर एक टीम में 4 कप्तान होने पर हैरानी की बात भी दादा ने लिखी है। हालांकि, एक फ़ैन के नाते मुझे कुछ चीज़ें जानने की जिज्ञासा थी जो इस किताब में अधूरी रह गई, जिनमें 2008 में सिडनी टेस्ट में हुआ मंकीगेट विवाद और उसी सीरीज़ के बाद सीबी सीरीज़ में दादा और द्रविड़ का वनडे सीरीज़ से ड्रॉप होना शामिल है। साथ ही साथ मैच फ़िक्सिंग विवाद पर भी सौरव गांगुली ने कुछ ज़्यादा लिखने से परहेज़ किया है। अंत में मैं यही कहूंगा कि अगर आप भी सौरव गांगुली और भारतीय क्रिकेट के फ़ैन हैं तो इस किताब को ज़रूर पढ़ें। 90 और 2000 के दशक की बातों के साथ साथ कई ऐसी अनकही बातें दादा की आत्मकथा से मालूम चलेगी जो हैरान तो करेंगी साथ ही आपके अंदर भी एक जोश भर देंगी। मैं अपनी बात दादा के उसी कथन से ख़त्म करना चाहता हूं जो अपनी आत्मकथा में भी दादा ने लिखी है और ये उनकी ज़िंदगी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। ‘’ऐसा लगता है एक दिन मैं रॉल्स रॉयस पर सफ़र कर रहा हूं और दूसरे दिन फ़ुटपाथ पर सो रहा हूं।‘’