वनडे क्रिकेट इतिहास में नियमों में बदलाव के बाद वे नियम जो अब मान्य नहीं

साल 1983 तक एकदिवसीय क्रिकेट फॉर्मेट 120 ओवर का हुआ करता था। इसमें 60-60 ओवर प्रति पारी निर्धारित किए गए थे। लेकिन बाद में इसे घटाकर 50 ओवर प्रति पारी कर दिया गया। वनडे क्रिकेट को ज्यादा लोकप्रिय बनाने के लिए इसमें कई बदलाव भी किए गए। जिसके कारण समय-समय पर वनडे क्रिकेट के नियमों को भी बदला गया। वनडे क्रिकेट का लोगों में आकर्षण बनाए रखने के लिए मैदान में फील्डिंग संबंधित कई प्रतिबंध भी लगाए गए। इसके अलावा आईसीसी की होने वाली बैठकों में भी इस प्रारूप के नियमों से संबंधित बहुत चर्चाएं भी हुई। वर्तमान में क्रिकेट के 50 ओवर के फॉर्मेट में पहला पॉवर प्ले 10 ओवरों की शुरुआती अवधि में लेना होता है। इस दौरान आंतरिक क्षेत्र के बाहर अधिकतम 2 फील्डर रखे जाने की अनुमति होती हैं। इसके बाद दूसरा पॉवर प्ले 11वें ओवर से लेकर 40वें ओवर तक लेना होता है, जिसमें अधिकतम 4 फील्डर्स को सर्कल से बाहर रखे जाने की अनुमति दी जाती है। तीसरा और अंतिम पॉवर प्ले मैच के 41वें ओवर से लेकर 50 वें ओवर तक लेना होता है, जिसमें अधिकतम 5 फील्डर्स को सर्कल से बाहर रखे जाने की अनुमति होती है। वनडे क्रिकेट में कई बदलाव हो चुके हैं और कई बदलाव वर्तमान में भी हो रहे हैं। जिस तरह से बदलाव हो रहे हैं उसे देखते हुए ये कहना भी गलत नहीं होगा कि वर्तमान के नियम भी ज्यादा लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे। वनडे में इन नियमों के कारण फील्डिंग कर रहे कप्तान को बहुत से निर्देशों का पालन भी करना होता है, जिसके चलते कई बार कप्तान को निर्णय लेने में भी कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि आईसीसी एक विशेष पैटर्न के तहत ही वनडे मैच को खिलवाना चाहता है। वनडे क्रिकेट में कई नियम ऐसे भी जो अब रद्द किए जा चुके हैं और अब उन नियमों को किसी प्रकार की कोई मान्यता नहीं है। जान लीजिए उन नियमों के बारे में जो अब एकदिवसीय मैचों में अब मान्य नहीं हैं।

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#1 सुपर-सब नियम

सुपर-सब नियम की शुरुआत साल 2005 में हुई थी। सुपर-सब नियम की अवधारणा यह थी कि प्रत्येक टीम एक सब्सिट्यूट खिलाड़ी चुन सकती थी। इसका निर्णय कप्तान टॉस से पहले लेता था। सब्सिट्यूट खिलाड़ी या फिर कहें की टीम का 12वां खिलाड़ी बल्लेबाजी, गेंदबाजी और विकेटकीपिंग सब कुछ कर सकता था। हालांकि, जिस खिलाड़ी के जगह पर सब्सिट्यूट खिलाड़ी आता था, वो दोबारा मैच में शामिल नहीं हो सकता था। उदाहरण के तौर पर, यदि प्रतिस्थापित खिलाड़ी को बदलने से पहले वो बल्लेबाजी कर चुका है तो उसका सब्सिट्यूट खिलाड़ी सिर्फ गेंदबाजी ही कर सकता था। वहीं अगर प्रतिस्थापित खिलाड़ी 2 ओवर की गेंदबाजी कर चुका है तो सब्सिट्यूट खिलाड़ी बाकि के बचे 8 ओवर की गेंदबाजी ही कर सकता था। यह नियम बहुत कम समय के लिए लागू रहा क्योंकि टॉस जीतने वाली टीम के लिए ये नियम काफी फायदेमंद साबित होता था। बाद में इस नियम को रद्द कर दिया गया। ये नियम काफी हद तक फुटबाल और हॉकी से प्रभावित था। इस नियम के तहत विक्रम सोलंकी क्रिकेट में पहले सुपर-सब बने थे।

#2 पहले 15 ओवर फील्डिंग प्रतिबंध

वनडे क्रिकेट में शुरुआती 15 ओवर फील्ड प्रतिबंध का नियम काफी लंबे समय तक चला था। इस नियम के तहत शुरुआती 15 ओवर तक फील्डिंग करने वाली टीम को आंतरिक सर्कल से बाहर अधिकतम 2 खिलाड़ी रखने की अनुमति मिलती थी। इस नियम से बल्लेबाजों को पारी की शुरुआत में ही लंबे शॉट खेलने के आसान मौके मिल जाते थे। वहीं इस दौरान बल्लेबाज गेंदबाजों पर भी हावी होने का भरपूर प्रयास करता था। लेकिन साल 2005 में पॉवर प्ले के आने के बाद इस नियम को खत्म कर दिया गया।

#3 बैटिंग पॉवर प्ले

बैटिंग पॉवर प्ले के दौरान 5 ओवर तक अधिकतम 3 फील्डर्स को आंतरिक सर्कल से बाहर रखे जाने की अनुमति होती थी। इस पॉवर प्ले को बल्लेबाजी करने वाली टीम शुरुआती 10 ओवर हो जाने के बाद या अनिवार्य पॉवर प्ले होने का बाद ले सकती थी। इस नियम को साल 2005 में लागू किया गया था। बैटिंग पॉवर प्ले की अवधारणा थी कि वनडे मैचों में मध्य ओवरों में पारी को और भी ज्यादा रोमांचक बनाया जा सके। लेकिन समय के साथ चीजें नीरस होती चली गई। बैटिंग पॉवर प्ले लेने के बावजूद भी बल्लेबाज जोखिम नहीं लेता और एक ओवर में 5 सिंगल्स तक लेने लगा, जबकि बल्लेबाज के पास पूरी फील्ड खाली होती थी। जिसके कारण बैटिंग पॉवर प्ले लेने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता था। वहीं बैटिंग पॉवर प्ले के कारण स्पिन गेंदबाजों की गेंदों पर ज्यादा रन लगने लगे। सर्कल से बाहर सिर्फ तीन फील्डर्स होने के कारण स्पिन गेंदबाज गेंद को थोड़ा सा भी हवा में नहीं जाने देता था क्योंकि जहां थोड़ी सी भी गेंद बल्लेबाज को हवा में मिलती तो बल्लेबाज उसे सीमा पार भेजने के लिए बल्ला उठा के शॉट लगा देता था। आखिर में साल 2015 में इस नियम को समाप्त कर दिया गया।

#4 बॉलिंग पॉवर प्ले

बॉलिंग पॉवर प्ले के दौरान 5 ओवर तक अधिकतम 3 फील्डर्स को आंतरिक सर्कल से बाहर रखे जाने की अनुमति होती थी। इस पॉवर प्ले को गेंदबाजी करने वाली टीम शुरुआती 10 ओवर हो जाने के बाद ले सकती थी। इस नियम को साल 2005 में बैटिंग पॉवर प्ले के साथ ही लागू किया गया था। हालांकि, इसको साल 2012 में ही खत्म कर दिया, जबकि बैटिंग पॉवर प्ले को साल 2015 में रद्द किया गया। हालांकि, ये पॉवर प्ले फील्डिंग करने वाली टीम के लिए किसी भी प्रकार से न्यायपूर्ण नहीं था क्योंकि फील्डिंग करने वाली टीम को सर्कल से बाहर अधिकतम 3 खिलाड़ी रखने की अनुमति ही होती थी, जिसका सीधा फायदा बल्लेबाजी करने वाली टीम को मिलता था। इस नियम से गेंदबाजी करने वाली टीम के कप्तान की मुश्किलें बढ़ जाती थी।

#5 कैच लेने के लिए 10 ओवर के अनिवार्य पॉवर प्ले के दौरान दो फील्डर्स की तैनाती

पहले दस ओवरों के अनिवार्य पॉवर प्ले के दौरान फील्डिंग करने वाली टीम को अनिवार्य रूप से दो खिलाड़ियों को कैचिंग पोजिशन में तैनात करना पड़ता था। यह एकदिवसीय क्रिकेट के सबसे खराब नियमों से एक था। भले ही टीम के कप्तान का आक्रामक होने का कोई इरादा न हो लेकिन इस नियम का उद्देश्य फील्डिंग करने वाले टीम के कप्तान को आक्रामक बनाना था। हालांकि बाद में इस नियम को हटा दिया गया।

#6 35 ओवर के बाद नई गेंद

साल 2007 में वनडे क्रिकेट में एक नया नियम लाया गया। जिसके मुताबिक 35 ओवरों के बाद पुरानी गेंद की जगह नई गेंद का इस्तेमाल किया जाएगा। 35 ओवर के बाद नई गेंद लाने के इस नियम का सीधा फायदा बल्लेबाजी करने वाली टीम को पहुंचता था। 35 ओवर के बाद नई गेंद के इस्तेमाल से गेंदबाज को रिवर्स स्विंग और स्पिन कराने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। जिसके चलते डेथ ओवरों में बाउंड्रियों की झड़ी लग जाती थी। हालांकि, बाद में इस नियम को बदलकर नया नियम लाया गया। जिसके मुताबिक पारी की शुरुआत से ही दोनों छोरों से दो नई गेंद का इस्तेमाल किया जाता है। लेखक: प्राट्टे ख़ान अनुवादक: हिमांशु कोठारी

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