"ओए सचिन और उसके पापा भी जा रहे हैं भाई, ये बनेगा तेंदुलकर?" - संजू सैमसन ने बताया उनके परिवार पर किस तरह के ताने मारे जाते थे

संजू सैमसन ने अपनी कामयाबी का श्रेय अपने परिवार को दिया
संजू सैमसन ने अपनी कामयाबी का श्रेय अपने परिवार को दिया

हर खिलाड़ी की अपनी एक कहानी होती है कि किस तरह से कठिनाइयों का सामना करते हुए उसे कामयाबी मिलती है। कुछ ऐसी ही कहानी भारतीय खिलाड़ी संजू सैमसन (Sanju Samson) की है, जिनका मानना है कि उन्होंने जो भी हासिल किया है उसका काफी श्रेय उनके परिवार को जाता है। खिलाड़ी को उनके परिवार ने पूरी तरह से सपोर्ट किया और उनके क्रिकेट के सफर में अहम भूमिका निभाई।

दिल्ली में बड़े हुए संजू सैमसन को निरंतर क्रिकेट खेलने के संघर्ष करना पड़ा था। उन्होंने बताया कि किस तरह बचपन में उनके पिता बस स्टैंड तक किट बैग रखने जाते थे, वहां लोग उनका मजाक उड़ाते थे।

यूट्यूब शो 'ब्रेकफास्ट विद चैंपियंस' पर बोलते हुए, संजू सैमसन ने अपने माता-पिता के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में बात की, ताकि उन्हें पेशेवर रूप से क्रिकेट खेलने के अपने सपनों को पूरा करने का मौका मिले। उन्होंने कहा,

मेरे माता-पिता मेरा किट बैग बस स्टैंड तक उठाते थे, जो बहुत भारी होता था। पीछे से लोग कहते थे 'ओए सचिन और उसके पापा भी जा रहे हैं भाई, ये बनेगा तेंदुलकर?' तो उन्होंने भी बहुत ताने सहे हैं।

भारतीय टीम के लिए खेलने में अपने भाई के योगदान का जिक्र करते हुए सैमसन ने आगे कहा,

लेकिन वे और मुख्य रूप से मेरे भाई को भरोसा था कि मैं भारत के लिए खेलूंगा। मेरे भाई ने मुझसे कहा कि यह उनका अंधविश्वास था कि मुझे यह नहीं बताया कि मैं भारत के लिए खेलूंगा लेकिन वह हमेशा से जानते थे कि मैं सक्षम हूं।

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मेरे पिता ने मेरे लिए दिल्ली से केरल शिफ्ट होने का फैसला लिया - संजू सैमसन

संजू सैमसन ने बताया कि जब उनके पिता को पता चला कि मुझे दिल्ली से घरेलू क्रिकेट में खेलने के लिए मौके नहीं मिल रहे थे तो उन्होंने मुझे केरल की तरफ से खेलने के लिए कहा।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि संजू सैमसन नियमित रूप से अभ्यास करें, उनके पिता ने दिल्ली पुलिस से स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया और अपने बेटे के भविष्य पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित किया। इस बारे में सैमसन ने कहा,

मेरे पिता दिल्ली पुलिस में थे। हमने 1-2 ट्रायल किए लेकिन असफल रहे और फिर उन्होंने फैसला किया कि मैं और मेरा भाई केरल से खेलने की कोशिश करेंगे। दो साल बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस से स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया और केरल आकर मुझे प्रैक्टिस के लिए ले गए। यह एक चुनौतीपूर्ण दौर था लेकिन हमारे माता-पिता ने मुझे इस बात का अहसास नहीं कराया कि वे मेरे लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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