18 जून 2017, रविवार का ये दिन पाकिस्तान के क्रिकेट इतिहास के सबसे सुनहरे दिनों में से एक में शुमार हो गया। 65 साल के पाकिस्तान क्रिकेट इतिहास में ये पहला मौक़ा था जब भारत को हराकर पाकिस्तान ने किसी आईसीसी टूर्नामेंट पर कब्ज़ा जमाया हो। शायद ही किसी ने सपने में भी सोचा हो कि जिस टीम को आख़िरी लम्हों में वेस्टइंडीज़ की जगह इंग्लैंड में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफ़ी का टिकट मिला वही विजेता बन जाएगी। आईसीसी की वनडे रैंकिंग में नंबर-8 पर रहते हुए पाकिस्तान ने चैंपियंस ट्रॉफ़ी के लिए क्वालीफ़ाई किया लेकिन इसके बाद जो हुआ वह इतिहास बन गया। पाकिस्तान के लिए ये जीत सिर्फ़ एक उलटफेर नहीं बल्कि पाकिस्तान के लड़ाकू जज़्बे को एक बार फिर क्रिकेट मैप पर ला चुकी है। चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीतना पाकिस्तान के लिए इसलिए भी बेहद मायने रखती है क्योंकि इस टीम का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में बेहद निराशाजनक रहा था। पाकिस्तान में हुए घरेलू टी20 लीग में शरजील ख़ान और मोहम्मद इरफ़ान जैसे खिलाड़ियों के स्पॉट फ़िक्सिंग में फंसने के बाद तो एक बार फिर पाकिस्तान ग़लत चीज़ों के लिए चर्चा में आ चुका था। क्रिकेट पंडितों और आलोचकों ने तो इस टीम का बहिष्कार तक करने की वक़ालत कर दी थी। लेकिन जिस तरह अंधेरे के बाद उजाला आता है ठीक वैसे ही पाकिस्तान क्रिकेट में भी मानो करवट बदलने की स्क्रिप्ट तैयार की जा रही थी। जिसके लिए चैंपियंस ट्रॉफ़ी से अच्छा कोई लॉन्चिंग पैड हो ही नहीं सकता था और इस स्क्रिप्ट में नायक तो कई थे लेकिन पोस्टर बॉय बनकर सामने आए पाकिस्तान के कप्तान सरफ़राज़ अहमद। भारत के ख़िलाफ़ पहले मैच में करारी हार झेलने के बाद सरफ़राज़ ने कड़ा फ़ैसला लेते हुए अहमद शहज़ाद को बाहर का रास्ता दिखाया और उनकी जगह टीम में युवा फ़ख़र ज़मान को प्रोटियाज़ के ख़िलाफ़ पहली बार मैदान में उतारा। सरफ़राज़ अहमद और पाकिस्तान के लिए ज़मान लकी चार्म बन कर आए और फ़ाइनल में फ़ख़र ने शतक लगाते हुए पूरे पाकिस्तान को फ़क्र करने का मौक़ा दे दिया। ज़मान के अलावा पाकिस्तान की जीत के हीरो तो कई रहे जिसमें मोहम्मद आमिर, गोल्डेन बॉल के विजेता एक और युवा गेंदबाज़ हसन अली और लेग स्पिनर शदाब ख़ान। लेकिन इनकी प्रतिभाओं को किसी ने पहचाना और तराशा तो वह थे विकेट के पीछे रहते हुए भविष्य की रणनीति बनाने वाले कप्तान सरफ़राज़ अहमद। सरफ़राज़ ने इस युवा टीम में एक जोश भर दिया, और ख़ुद भी श्रीलंका के ख़िलाफ़ हारी बाज़ी जीतते हुए टीम और साथियों का हौसला बुलंद कर दिया था। ये हौसला ही था जिसने सेमीफ़ाइनल में मेज़बान इंग्लैंड के विजय रथ को भी रोक डाला और शान से फ़ाइनल में जगह बनाई। इस युवा टीम को चैंपियंस ट्रॉफ़ी दिलाने के साथ साथ सरफ़राज़ ठीक वैसे ही खिलाड़ियों में जीत की आदत डाल रहे हैं जो 2007 टी वर्ल्डकप में भारतीय कप्तान मेहंद्र सिंह धोनी ने किया था। सरफ़राज़ भी पाकिस्तान के धोनी बनने की राह पर नज़र आ रहे हैं, वह भी धोनी ही की तरह विकेटकीपर हैं और एक शानदार फ़िनिशर। जिसका नमूना उन्होंने चैंपियंस ट्रॉफ़ी में एक बार दिखा दिया। पाकिस्तान क्रिकेट को भी अर्से से एक धोनी जैसे कप्तान की तलाश थी, जो युवा खिलाड़ियों को तराश सकें और उनपर भरोसा करने के साथ साथ विपरित हालातों में समर्थन कर सकें। सरफ़राज़ बिल्कुल ऐसा ही कर रहे हैं और भविष्य में भी पाकिस्तान को उनसे यही उम्मीद है। जिस तरह 2007 टी20 वर्ल्डकप के बाद धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने नई ऊंचाइयों को छुआ, अब कुछ ऐसी ही ज़िम्मेदारी सरफ़राज़ अहमद के कंधों पर भी है। देखना यही है कि धोनी ने जिस तरह कभी जीत को अपने ऊपर और टीम पर हावी नहीं होने देते थे क्या उसी तरह सरफ़राज़ भी ख़ुद को शांत रख पाएंगे। अगर माही की तरह सरफ़राज़ भी कैप्टेन कूल बन गए तो फिर पाकिस्तान क्रिकेट को भी इस तरह के मैजिक की आदत डाल लेनी होगी।