शिखर धवन ने तब सुर्खियां बंटोरी जब 2004 आईसीसी अंडर 19 विश्व कप में उन्होंने 84.16 की औसत से 505 रन बनाए और टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ स्कोरर रहे। हालांकि भारतीय टीम में दिग्गजों की मौजूदगी के कारण धवन को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के लिए 2010 तक इंतज़ार करना पड़ा। उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ विशाखपट्टनम में वन-डे मैच में खेलने का मौका मिला। मगर पहले ही मैच में वह बिना खाता खोले आउट हो गए जिससे उनकी मुश्किलें बढ़ गई। असल में बाएं हाथ के बल्लेबाज ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट में पदार्पण करते हुए 187 रन की धुआंधार परी खेली थी। धवन ने इसके बाद भारतीय टीम में अपने पर जमाए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि अंडर-19 वर्ल्ड कप में धमाकेदार प्रदर्शन करने के बावजूद धवन घरेलू क्रिकेट में खेलने के लगातार मौके हासिल नहीं कर सके। धवन लंबे समय तक टीम में जगह नहीं हासिल कर सके थे और उनके बचपन के कोच तारक सिन्हा ने भी खुलासा किया की खब्बू बल्लेबाज ने एक समय क्रिकेट छोड़ने का मन बना लिया था। धवन ने क्रिकेट छोड़ने का मन बना लिया था सिन्हा के हवाले से खेल वेबसाइट क्रिकबज़ ने कहा, 'दिल्ली एक उच्च स्तरीय टीम हैं। उस समय, विरेंदर सहवाग, गौतम गंभीर और अकाश चोपड़ा जैसे स्थापित बल्लेबाज टीम में मौजूद थे। ऐसे में धवन को बहुत कम मौके मिले। उसने क्रिकेट छोड़ने का विचार बनाया था क्योंकि उसका मानना था की उसे मौका नहीं मिलेगा।' शिखर धवन का समय अभी सही नहीं चल रहा है और टीम इंडिया को अगले साल 13 टेस्ट मैच खेलना हैं। लोकेश राहुल के उदय के कारण धवन के पास अपनी पिछली उपलब्धियों पर गौर करने का मौका नहीं बचा है और उनके बारे में बात करते हुए सिन्हा ने कहा, 'एक समय के बाद, एक खिलाड़ी सोचता है कि वह अच्छा कर रहा है और उसके साथ कुछ भी गलत नहीं हो रहा है, धवन जल्द ही इस स्थिति से उबर जाएगा। यह मनोवैज्ञानिक चीज़ है। जब आप कुछ पारियों में विफल हो जाते हैं तो आप निराश हो जाते हैं और ऐसे में आपके हाथ और पर जगह से हिलते नहीं हैं। सिन्हा ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि उन्हें इस बात का कतई पछतावा नहीं है कि उनका शिष्य इन दिनों उनसे ज्यादा सलाह नहीं ले रहा है। धवन जब 12 वर्ष के थे तब उन्हें कोचिंग देने वाले सिन्हा का मानना है कि खब्बू बल्लेबाज कि ताकत उसके विश्वास में टिकी है। धवन की तारीफ करते हुए सिन्हा ने कहा, 'वह (धवन) हमेशा जोश से लबरेज रहा है। वह बहुत प्रतिभाशाली था और खेल के नाजुक फर्क को जल्दी से भांप लेता था। जब वह सोनेट के लिए अंडर-14 का टूर्नामेंट खेल रहा था तब सेमीफ़ाइनल में उसने शतक ठोंका था। वह मानसिक तौर पर काफी मजबूत था और ऐसे खिलाड़ी बहुत आगे तक जाते हैं। धवन ने अपनी ज़िंदगी में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन अंत में वह सफल रहा। बता दें कि सोनेट एक क्लब का नाम है, जिसे सिन्हा ने 1969 में राजधानी में शुरू किया था। बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए प्रतिभा कभी मसला नहीं रहा, लेकिन अनिरंतरता के कारण धवन अधिकांश परेशान दिखे।