क्या पार्थिव पटेल को भारत का नियमित विकेटकीपर होना चाहिए ?

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2002 में जब ट्रेंट ब्रिंज टेस्ट में पार्थिव पटेल पहली बार बल्लेबाजी करने के लिए उतरे तो उनकी उम्र महज 17 साल की थी। इसके साथ ही टेस्ट क्रिकेट में सबसे कम उम्र में डेब्यू करने वाले वो विकेटकीपर बन गए। वहीं भारत की तरफ से डेब्यू करने वाले चौथे सबसे युवा खिलाड़ी बने। इसके पिछले सीजन में पटेल ने अपना फर्स्ट क्लास डेब्यू किया। उस मैच से उन्हें थोड़ा बहुत अनुभव मिला। 17 साल की उम्र में डेब्यू करने के साथ ही पार्थिव सबके फेवरिट बन गए। आशीष नेहरा, जहीर खान, अजीत अगारकर और अनिल कुंबले और हरभजन सिंह जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने पार्थिव की जमकर तारीफ की। लेकिन तब उनकी तारीफ कुछ जल्दबाजी में कर दी गई। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में मोहाली टेस्ट से पहले जब रिद्धिमान साहा चोटिल हो गए, तब भारतीय चयनकर्ताओं ने फिर वही गलती नहीं दोहराई। यही वजह रही कि उन्होंने ऋषभ पंत जैसे युवा खिलाड़ी की बजाय पटेल के अनुभव को टीम में जगह दी।जबकि रणजी मैचों में ऋषभ पंत कमाल की बल्लेबाजी कर रहे थे। चयनकर्ताओं ने जल्दबाजी में ऋषभ पंत को टीम में लेने का रिस्क नहीं उठाया और इस वजह से पार्थिव पटेल को टीम में वापसी का मौका मिल गया। पटेल ने अपना आखिरी टेस्ट मैच 2008 में श्रीलंका के खिलाफ खेला था, वहीं उससे पहले उन्होंने 2004 में अपना आखिरी टेस्ट खेला था। धोनी फैक्टर 2000 के शुरुआत में भारत को एक अच्छे नियमित विकेटकीपर की तलाश थी। विजय दहिया, समीर दिग्हे, दीप दासगुप्ता और अजय रात्रा जैसे खिलाड़ियों को कई मौके मिले, लेकिन कोई भी टीम में अपनी नियमित जगह नहीं बना सका। लेकिन युवा पार्थिव पटेल ने दृढ़ जज्बा दिखाते हुए महज 17 साल की उम्र में टेस्ट डेब्यू किया। 2002 से 2004 के बीच पार्थिव पटेल भारतीय टीम का नियमित हिस्सा रहे, लेकिन दिनेश कार्तिक और महेंद्र सिंह धोनी के टीम में आने के बाद वो वापसी नहीं कर पाए। केवल पटेल ही नहीं उस वक्त के कई अच्छे विकेटकीपरों का करियर धोनी के आगे फीका पड़ गया। उनका करियर केवल घरेलू क्रिकेट और कुछ अंतर्राष्ट्रीय मैचों तक ही सिमट कर रह गया। दिनेश कार्तिन ने महेंद्र सिंह धोनी से पहले टेस्ट डेब्यू किया था, लेकिन अभी तक वो मात्र 23 टेस्ट मैच ही खेल सके हैं। अपना आखिरी टेस्ट मैच कार्तिक ने 6 साल पहले खेला था। वहीं साहा की जगह पर टीम में आए नमन ओझा मात्र एक टेस्ट मैच खेल सके हैं। एक स्पेशलिस्ट कीपर गोलमोल से चेहरे वाले पार्थिव पटेल का टेंपरामेंट काफी अच्छा है। अपनी बल्लेबाजी से उन्होंने सबको प्रभावित किया है। इसके साथ ही वो विकेटकीपर भी बहुत अच्छे हैं। उनकी शानदार विकेटकीपिंग की वजह से ही वो अब तक 20 टेस्ट मैचों का हिस्सा रहे हैं। छोटे कद के बावजूद पार्थिव पटेल किसी भी कैच को पकड़ने या फिर स्टंपिंग करने के लिए खुद को झोंक देते हैं। पटेल कीपिंग में अपना 100 प्रतिशत देते हैं। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में बेन स्टोक्ट और एलिस्टेयर कुक को उन्होंने जिस तरह से स्टंप आउट किया उससे धोनी की याद आ गई। गुजरात का ये खिलाड़ी स्पेशलिस्ट विकेटकीपर है, लेकिन कभी-कभार उनसे गलती हो जाती है। साहा ज्यादा तड़क-भड़क वाले खिलाड़ी नहीं है उनकी अपनी स्टाइल है, लेकिन पार्थिव पटेल ने खुद को एडम गिलक्रिस्ट और महेंद्र सिंह धोनी की स्टाइल में ढाल लिया है। घरेलू क्रिकेट में पार्थिव पटेल ने विकेट के पीछे साहा से ज्यादा शिकार किए हैं।

पटेल और साहा के प्रथम श्रेणी मैचों की तुलना
मैच पारी कैच कैच/पारी स्टंपिंग स्टंपिंग/पारी
पार्थिव पटेल 164 242 406 1.67 65 0.26
रिद्धिमान साहा 91 142 212 1.49 30 0.21

रिद्धिमान साहा के विकल्प के तौर पर चयनकर्ताओं ने पार्थिव पटेल को केवल उनकी विकेटकीपिंग स्किल को देखते हुए नहीं चुना बल्कि उनके चयन में उनकी शानदार बल्लेबाजी का भी बड़ा रोल है। 2003-04 में पटेल ने कई मौकों पर टीम के लिए ओपनिंग भी की थी। इसके बाद घरेलू क्रिकेट में भी उन्होंने अपने आपको साबित किया। तीसरे टेस्ट में के एल राहुल के फिटनेस पर संशय होने के बाद पार्थिव पटेल को ओपनिंग का मौका दिया गया। उसी टेस्ट मैच की दूसरी पारी में सलामी बल्लेबाज के तौर पर पार्थिव पटेल ने 67 रनों की तेज तर्रार पारी खेलकर भारतीय टीम को जीत दिलाई। बेहतरीन बल्लेबाज पटेल ओपनिंग भी कर लेते हैं और निचले क्रम में भी बल्लेबाजी कर लेते हैं इस वजह से टीम के बल्लेबाजी क्रम को ज्यादा फ्लेक्सबिलिटी मिलती है। जबकि साहा केवल निचले क्रम में ही बल्लेबाजी कर सकते हैं। पटेल ने बल्लेबाजी में कई नंबरों पर बल्लेबाजी की है। वो घरेलू क्रिकेट से लेकर कई प्रतियोगिताओं और सीरीज का हिस्सा रहे हैं। मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में पटेल बल्लेबाजी कर चुके हैं। इसी वजह से उनके पास बहुत ज्यादा अनुभव है जो भारतीय टीम के बल्लेबाजी क्रम को मजबूती प्रदान करता है। इसके अलावा पार्थिव पटेल नई गेंद को भी काफी अच्छे तरीके से खेल लेते हैं। कई बार ऐसा होता है कि नियमित ओपनर के अचानक चोटिल होने के बाद किसी बल्लेबाज को ओपनिंग की जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन हर किसी खिलाड़ी के बस में अच्छी ओपनिंग करने की क्षमता नहीं होती है। श्रीलंका के खिलाफ सीरीज में पुजारा के साथ ऐसा ही हुआ था। ऐसे में पटेल अगर टीम का नियमित हिस्सा होते हैं तो आपातकाल स्थिति में वे भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाजी की टेंशन को दूर कर सकते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ पार्थिव पटेल ने ही घरेलू क्रिकेट में रन बनाए हैं, बल्कि रिद्धिमान साहा, दिनेश कार्तिक और नमन ओझा का भी घरेलू रिकॉर्ड काफी शानदार रहा है। इससे इन खिलाड़ियों के बीच में काफी प्रतिस्पर्धा है। लेकिन इन सबका चुनाव काफी कुछ इनकी विकेटकीपिंग पर निर्भर है। बिना किसी शक के भारत निचले क्रम में ऐसे विकेटकीपर बल्लेबाज को चाहेगा जो बल्लेबाजी क्रम को स्थिरता प्रदान कर सके। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस चक्कर में भारतीय चयनकर्ता अच्छी विकेटकीपिंग को नहीं तरजीह देंगे। साहा ने इंग्लैंड के खिलाफ पहले और दूसरे टेस्ट मैच में विकेट के पीछे कुछ छोड़े जिससे उनके प्रदर्शन पर सवाल भी उठने लगे। parthiv-story_647_112916040339-1481818320-800 एक सफल वापसी इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में 2 टेस्ट मैचों में पार्थिव ने हिस्सा लिया है तो 2 टेस्ट मैचों में साहा ने हिस्सा लिया है। साहा ने 2 मैचों की 4 पारियों में 49 रन बनाए हैं और विकेट के पीछे 6 शिकार किए। वहीं पार्थिव पटेल ने 3 पारियों में 124 रन बनाए और 9 शिकार किए, जिसमें 2 स्टंपिंग भी शामिल है। हालांकि सिर्फ 2 मैचों के आधार पर किसी का आकलन करना सही नहीं है, लेकिन पार्थिव ने अपने अनुभव का पूरा फायदा उठाया है। ये जानते हुए भी कि उन्हें किसी की जगह टीम में शामिल किया गया है पटेल ने अपने ऊपर दबाव को कभी हावी नहीं होने दिया। 2002 के अपरिपक्कव साहा अब पूरी तरह से परिपक्कव हो गए हैं जो अपने खेल को पूरी तरह से जानता है। इसके अलावा अब उन्हें माइंड गेम भी खेलना आ गया है। मीडिया से बातचीत में इसकी झलक भी देखने को मिली। इंग्लिश स्पिनर ने पटेल को 15 रन पर पवेलियन भेजकर भले ही अपने विकेटों में एक और विकेट जोड़ लिया हो। लेकिन पटेल की पिच और गेंदबाजी की समझ उन्हें और विकेटकीपर बल्लेबाजों से अलग करती है। जिसकी वजह से वे आगे की पारियों में क्रीज पर डटे रहे। इसके अलावा डीआरएस लेने के फैसले में भी उन्होंने कप्तान की बहुत मदद की। चौथे टेस्ट में एक विकेट के लिए जाडेजा और कप्तान कोहली जहां डीआरएस लेने के पक्ष में थे वहीं पटेल डीआरएस लेने के पक्ष में नहीं थे और आखिर में भारत ने वो डीआरएस खो दिया। घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन 2008 में अपने आखिरी टेस्ट और 2016 में कमबैक के 8 सालों के बीच पार्थिव पटेल ने घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 51.31 की शानदार औसत से 16 शतक और 29 अर्धशतक लगाते हुए 5234 रन बनाए। इससे साबित होता है कि 2004 से 2016 के बीच मात्र एक टेस्ट मैच खेलने के बावजूद उनके अंदर रनों की भूख कम नहीं हुई। घरेलू क्रिकेट में अपनी बल्लेबाजी और विकेटकीपिंग से पार्थिव ने सबको प्रभावित किया, जिसकी वजह से उन्हें भारतीय टीम में वापसी का मौका मिला। पटेल की अंतर्राष्ट्रीय मैचों में वापसी पटेल के लिए काफी मायने रखती है, क्योंकि उन्होंने 8 साल के लंबे संघर्ष के बाद टीम में वापसी की। लेकिन कहीं ना कहीं विकेटकीपिंग भी काफी मायने रखती है। अंत में तुलना जरुर होती है कि बेस्ट विकेटकीपर कौन था। लेकिन पटेल ने विकेटकीपिंग में भी शानदार प्रदर्शन किया है। इस रणजी सीजन में पटेल ने 59.28 की औसत से 415 रन तो बनाए ही, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने विकेट के पीछे 17 शिकार भी किए। उनके आक्रामक बल्लेबाजी की तारीफ कप्तान विराट कोहली ने भी की। चेन्नई टेस्ट में पार्थिव पटेल को अपने आपको साबित करने का एक और मौका मिला। कुल मिलाकर कहें तो पार्थिव पटेल एक परिपूर्ण क्रिकेटर हैं। अब देखना ये है कि अगले सीजन के लिए उन्हें टीम में चुना जाता है कि नहीं।