क्रिकेट में अगर किसी बल्लेबाज को आउट दिया जाता है और उसे लगता है कि वो आउट नहीं है तो फिर वो डीआरएस यानि डिसीजन रिव्यू सिस्टम का प्रयोग कर सकता है। इसके बाद थर्ड अंपायर रीप्ले में देखकर अंतिम फैसला लेते हैं। डीआरएस का प्रयोग ज्यादातर एलबीडब्ल्यू के संदर्भ में होता है। यही अधिकार फील्डिंग करने वाली टीम को भी होता है कि अंपायर अगर किसी बल्लेबाज को नॉट आउट करार देता है और फील्डिंग करने वाली टीम को लगता है कि बल्लेबाज आउट है तो वो रिव्यू ले सकते हैं। लेकिन क्या नो बॉल के लिए भी रिव्यू सिस्टम होना चाहिए।
दरअसल ये चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि 21 दिसंबर को बांग्लादेश और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए तीसरे टी20 मैच में एक ऐसा वाकया हुआ, जिसने इसको लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है। वेस्टइंडीज द्वारा निर्धारित 191 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए बांग्लादेश ने काफी तेज शुरुआत की। हालांकि पारी के चौथे ओवर में ओशेन थॉमस की गेंद पर बेहद आक्रामक बल्लेबाजी कर रहे लिटन दास कैच आउट हो गए लेकिन अंपायर तनवीर अहमद ने इसे नो बॉल करार दे दिया। रीप्ले में देखने पर साफ पता चल रहा था कि ये गेंद नो बॉल नहीं थी और ओशेन थॉमस का पैर लाइन के थोड़ा इधर था। इससे पहले वाली गेंद भी अंपायर ने नो बॉल करार दे दी थी लेकिन वो भी नो बॉल नहीं थी। अब लगातर 2 गलत नो बॉल दिए जाने की वजह से वेस्टइंडीज के कप्तान कार्लोस ब्रैथवेट नाराज हो गए।
वो मैदान पर मौजूद अंपायरों से बहस करने लगे। उन्होंने बड़ी स्क्रीन पर देख लिया था कि दोनों ही गेंद नो बॉल नहीं थी और अंपायर ने गलत फैसला दिया है। वो काफी देर तक बहस करते रहे और इस वजह से खेल भी रोकना पड़ा। नौबत यहां तक आ गई कि मैच रेफरी जेफ क्रो को मैदान पर आना पड़ा। उनके काफी देर समझाने के बाद ब्रैथवेट माने और खेल दोबारा शुरु हुआ। हालांकि वेस्टइंडीज ने ये मैच आसानी से 50 रन से जीत लिया।
लिटन दास नॉट आउट करार दिए गए और नियमों के हिसाब से ये सही भी था। क्योंकि आईसीसी के नियमों के मुताबिक नो बॉल को लेकर कोई रिव्यू सिस्टम नहीं है। अगर मैदान पर मौजूद अंपायर ने एक बार नो बॉल दे दिया तो उसको फिर बदला नहीं जा सकता है। सिर्फ बल्लेबाज के आउट होने पर ही नो बॉल चेक किया जाता है। लेकिन इस घटना ने एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है कि क्या नो बॉल के फैसलों के लिए भी रिव्यू सिस्टम होना चाहिए। अगर आउट होने पर रिव्यू लिया जा सकता है तो नो बॉल को लेकर क्यों नहीं। मैदान पर मौजूद अंपायरों से गलती हो सकती है लेकिन उसे रिव्यू करने का अधिकार भी होना चाहिए। क्योंकि एक नो बॉल की वजह से मैच का सारा रुख ही पलट सकता है।
इससे पहले साल 2016 में भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच वेलिंग्टन टेस्ट मैच के दौरान ऐसा ही वाकया हुआ था। डग ब्रेसवेल की गेंद पर ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज एडम वोग्स आउट हो गए थे लेकिन अंपायर ने उसे नो बॉल करार दे दिया। रीप्ले देखना पर पता चला कि ब्रेसवेल का पांव लाइन के इस पार था लेकिन फिर भी उनकी गेंद को नो बॉल करार दिया गया, क्योंकि आईसीसी का ऐसा कोई नियम नहीं है, जिससे नो बॉल के फैसले को बदला जा सके। इस घटना के बाद पूर्व खिलाड़ी क्रिस रोजर्स ने इसकी काफी आलोचना की थी।
वहीं हाल ही में श्रीलंका और इंग्लैंड टेस्ट मैच के दौरान लक्षन संदाकन ने बेन स्टोक्स को 2 बार आउट कर दिया लेकिन रीप्ले में दिखा कि दोनों ही बार गेंद नो बॉल थी और स्टोक्स को दो बार जीवनदान मिला। बाद में पता चला कि लंच से पहले लक्षण संदाकन ने कई नो बॉल फेंके थे लेकिन अंपायर की उस पर नजर ही नहीं गई थी। चुंकि स्टोक्स के मामले में रीप्ले देखा गया तो नो बॉल का पता चल पाया। यहां पर स्टोक्स तो बच गए लेकिन गेंदबाज के मामले में ऐसा नहीं है। अगर गेंदबाज की कोई गेंद नो बॉल करार दे दी जाती है तो उस फैसले को ना तो पलटा जा सकता है और ना ही रिव्यू किया जा सकता है। अब इस तरह के विवाद के बाद यही सवाल उठ रहे हैं कि क्या नो बॉल के लिए भी रिव्यू सिस्टम होना चाहिए। आईसीसी को इस पर सोचना होगा।
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