सौरव गांगुली निश्चित ही भारत से उभरे सर्वश्रेष्ठ बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। वह नैसर्गिक बाएं हाथ के बल्लेबाज नहीं थे। उनके बड़े भाई स्नेहाशीष थे। अपने भाई की किट का उपयोग करने के कारण सौरव बाएं हाथ से बल्लेबाजी करते थे। मार्च 1990 में गांगुली परिवार के सामने अजीब मुश्किल आई जब स्नेहाशीष को रणजी ट्रॉफी फाइनल के लिए टीम में नहीं चुना गया और उनके भाई सौरव गांगुली को बंगाल की तरफ से पहला प्रथम-श्रेणी मैच खेलने का मौका मिला। स्नेहाशीष स्थाई खिलाड़ी थे जबकि सौरव युवा थे जो अपने भाई की जगह को भरने की तैयारियों में जुटे थे। उनके पिता चंडीदास क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (सीएबी) के सचिव थे। क्रिकबज को दिए इंटरव्यू में स्नेहाशीष ने खुलासा किया कि प्रदर्शन करने के बावजूद राष्ट्रीय टीम के लिए चयन होने के कारण क्रिकेट में उनकी रूचि कम होती गई और वह जल्द ही अपने परिवार के बिज़नेस में शामिल हो गए। स्नेहाशीष ने 59 प्रथम-श्रेणी मैचों में 39।59 की औसत से 2,534 रन बनाए। उनका मानना है कि वह और उपलब्धि हासिल कर सकते थे, अगर लगातार उनकी अनदेखी नहीं की होती। अपने छोटे भाई के बारे में बात करते हुए स्नेहाशीष ने कहा कि सचिन तेंदुलकर के बाद सौरव दूसरा सबसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर है। स्नेहाशीष ने कहा, 'मेरे लिए सचिन के बाद दूसरे सबसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर सौरव ही हैं। वह टेस्ट क्रिकेट में करीब 2,000 रन और 5-6 शतक पिछड़ गए। कप्तानी के दबाव ने उनसे वह चीजें दूर खीच ली, लेकिन नेतृत्व करते हुए उन्होंने जो सफलता हासिल की वह लाजवाब है। उन्होंने उस युग से उठाकर टीम को खड़ा किया जब हम मैच फिक्सिंग के साएं में बुरी तरह फंसे हुए थे। सौरव के फैसले लेने के कौशल के बारे में बात करते हुए स्नेहाशीष ने कहा, 'वह बहुत गतिशील है। वह जो भी फैसला ले उस पर कायम रहता है। वह सभ्य भी है। वह बहुत केंद्रित है और खेल से इतना प्यार करता है जितना कोई और नहीं करता होगा।' गांगुली की प्रतिभा तलाशने की क्षमता से सभी वाकिफ हैं और महेंद्र सिंह धोनी भी उनकी खोज में से एक हैं। गांगुली और धोनी दोनों भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक रहे। 1989-90 के रणजी ट्रॉफी फाइनल, जहां पहली बार सौरव को लोगों ने देखा, के बारे में बात करते हुए स्नेहाशीष ने कहा कि कुछ खिलाड़ियों में गजब का आत्म-विश्वास होता है और इसकी बदौलत वह बहुत प्रगति करते हैं। स्नेहाशीष ने कहा, 'सौरव और धोनी जैसे खिलाड़ियों को कोई नहीं रोक सकता। भले ही फिर वह त्रिपुरा में क्यों ना जन्मे होते, वह भारत के लिए जरुर खेलते। इनमें गजब का आत्म-विश्वास है और ऐसे में उन्हें रोकना बहुत मुश्किल है। चाहे कुछ भी हो जाए वो आकर बहुत सफल होंगे।' इसके साथ ही स्नेहाशीष ने सौरव को एक बेहतर प्रशासनिक अधिकारी भी बताया और उम्मीद जताई कि बंगाल क्रिकेट को एक सही व्यक्ति मिला है।