भारतीय क्रिकेट इतिहास में सौरव गांगुली का योगदान किसी छिपा नहीं है, उनकी यादें आज भी सभी के ज़ेहन में ज़िंदा हैं। अगर हम ये कहें कि टीम इंडिया को लड़ने और जीतने की आदत दादा ने दिलाई तो ग़लत नहीं होगा। भारतीय क्रिकेट जब मैच फ़िक्सिंग के काले साय से गुज़र रही थी, जब दादा के हाथों में टीम इंडिया की कमान गई थी और कोलकाता के इस प्रिंस ने न सिर्फ़ उन दाग़ों को मिटाने की कोशिश की बल्कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान ही दिला दी, जहां से फिर टीम इंडिया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कप्तान बनने से पहले ही दादा ने अपने आपको दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज़ के तौर पर साबित कर दिया था। ऑफ़ साइड पर तो सौरव गांगुली के खेल की दुनिया ही क़ायल थी, जिसके बाद टीम इंडिया की दीवार कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ ने बाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ को ''God of OFF side'' का ख़िताब भी दिया था। आज हम दादा को उनके 44वें जन्मदिन के मौक़े पर उनकी ही कुछ यादों का तोहफ़ा उनके सामने ला रहे हैं, और ये हैं सौरव गागुंली की वे 5 यादगार पारियां जो उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में खेली हैं। #1 131 बनाम इंग्लैंड, लॉर्ड्स, जून 20-24 1996 प्रिंस ऑफ़ कोलकाता, सौरव गांगुली ने दुनिया को अपनी झलक पहले ही मैच में दिखा दी थी, जब इंग्लैंड के ख़िलाफ़ ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर उन्होंने 24 वर्ष की उम्र में अपने क्रिकेट जीवन की शुरुआत की थी। नंबर-3 पर खेलते हुए बाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ ने लाजवाब बल्लेबाज़ी करते हुए शतक बना डाला था। उस दौरे पर इंग्लैंड का गेंदबाज़ी आक्रमण भी बेहतरीन था, गांगुली के उस डेब्यू मैच को राहुल द्रविड़ के लिए भी याद किया जाता है, द्रविड़ का भी वह पहला मैच था लेकिन राहुल 5 रनों से अपना शतक चूक गए थे। #2 183 बनाम श्रीलंका, टॉंटन, 1999 वर्ल्डकप, मई 26 1999 अपने डेब्यू के तीन साल बाद ही सौरव गांगुली टीम इंडिया की बल्लेबाज़ी की रीढ़ बन गए थे, और दादा ने इंग्लैंड में खेले गए वर्ल्डकप 1999 में श्रीलंका के ख़िलाफ़ लाजवाब बल्लेबाज़ी की और 17 चौके और 7 छक्कों के साथ 183 रिकॉर्ड रन बनाए और टीम को एक बड़ी जीत भी दिलाई। गांगुली ने इस मैच में द्रविड़ के साथ मिलकर 318 रनों की साझेदारी भी निभाई, जो एक रिकॉर्ड भी है। #3 141* बनाम दक्षिण अफ़्रीका, नायरोबी, आईसीसी नॉक आउट 2000, अक्तूबर 13 2000 आईसीसी नॉक आउट (बाद में इसका नाम चैंपियंस ट्रॉफ़ी पड़ गया) का ये दूसरा सीज़न था, और भारत ने इस साल फ़ाइनल तक में जगह बना ली थी। जिसमें युवराज सिंह, ज़हीर ख़ान और सचिन तेंदुलकर ने शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन फ़ाइनल में पहुंचाने का श्रेय जाता है कप्तान सौरव गांगुली को जिन्होंने सामने से टीम को लीड किया और 141 रनों की पारी खेलते हुए भारत का स्कोर 295 रनों तक पहुंचा दिया, जिसके जवाब में दक्षिण अफ़्रीका 200 रनों पर ढेर हो गई। दादा ने इस मैच में 11 चौके और 6 छक्के लगाए थे। #4 117 बनाम न्यूज़ीलैंड, नायरोबी, आईसीसी नॉक आउट 2000, अक्तूबर 15 2000 जब कप्तान किसी टीम को अपने दम पर फ़ाइनल में ले जाता है, तो फिर उस पर ख़िताब दिलाने की ज़िम्मेदारी भी आ जाती है। और दादा ने दो दिन बाद फिर वही दोहराया जो उन्होंने सेमीफ़ाइनल में प्रोटियाज़ के ख़िलाफ़ किया था, फ़ाइनल में भारत के सामने न्यूज़ीलैंड थी और गांगुली ने एक बार फिर कमाल का प्रदर्शन किया और लगा डाला लगातार दूसरा शतक। दादा ने इस मैच में 9 चौकों और 4 छक्कों की मदद से 117 रन बनाए और भारत को 264 रनों के स्कोर तक पहुंचाया। हालांकि गांगुली की पारी पर क्रिस केर्न्स की पारी भारी पड़ गई, और भारत के हाथों से ये मैच और कप केर्न्स ने छीन लिया, पर दादा की दमदार पारी अभी भी सभी के ज़ेहन में ज़िंदा है। #5 102 बनाम ऑस्ट्रेलिया, मोंहाली, अक्तूबर 17-21 2008 दादा ने जिस तरह से धमाकेदार अंदाज़ में अपने क्रिकेट जीवन का आग़ाज़ किया, कुछ उसी तरह उन्होंने अपने करियर का अंत भी किया। दादा ने कई उतार चढ़ाव देखा और हमेशा बल्लों के साथ साथ ज़ुबां से भी जवाब दिया। अपनी आख़िरी अंतर्रष्ट्रीय सीरीज़ में भी सौरव गांगुली का बल्ला पूरे शबाब पर था, ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मोहाली में दादा ने एक ऐसी पारी खेली जिसके बाद हर तरफ़ से यही आवाज़ आ रही थी कि गांगुली को अभी संन्यास नहीं लेना चाहिए था। गांगुली ने मोहाली टेस्ट की पहली पारी में अपने करियर का आख़िरी शतक लगाया और भारत को बड़े स्कोर तक पहुंचाया, दादा के इस शतक ने भारत की जीत की नींव रखी और टीम इंडिया ने ये टेस्ट 320 रनों से जीता।