सौरव गांगुली वह नाम है जिसने भारतीय टीम को मुश्किल समय से निकालकर जीत की राह पर चलना सिखाया। देश-विदेश में भारतीय टीम को सफलता दिलाने में उनका बड़ा हाथ रहा है। 2003 विश्वकप में उनकी टीम ने फाइनल में जगह बनाई मगर 2011 विश्वकप में टीम की जीत में भी उनका योगदान नहीं नकारा जा सकता। भले ही कप्तान महेंद्र सिंह धोनी थे मगर टीम के ज्यादातर खिलाड़ी वही थे जो सौरव गांगुली की कप्तानी में खेले थे। वही गांगुली अब विश्व क्रिकेट की श्रेष्ठ संस्था बीसीसीआई के 39वें अध्यक्ष बन चुके हैं।
जब दादा ने 1996 में पहली बार लॉर्ड्स के मैदान पर खेलते हुए टेस्ट शतक जड़ा था, तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक दिन उसी टीम के क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष पद पर बैठेंगे। इंग्लैंड में नेटवेस्ट ट्रॉफी में फाइनल जीतने के बाद उन्होंने हवा में शर्ट लहराई जिसे आज भी लोग याद करते हैं, यह दादा की आक्रामकता का एक सबूत था। 2002 चैम्पियंस ट्रॉफी में टीम को उन्होंने संयुक्त विजेता बनाया और वहां से भारतीय क्रिकेट का एक नया युग शुरू हुआ। 2003 विश्वकप में उन्होंने टीम की कप्तानी करने के अलावा बल्ले से भी जबरदस्त प्रदर्शन कर टीम को फाइनल तक का सफर तय कराने में अहम योगदान दिया।
ग्रेग चैपल के साथ विवाद के बाद उन पर कई सवाल उठे लेकिन अपनी हिम्मत और सच बोलने के गुण के चलते उस दौर पर उन्होंने विजय प्राप्त की। हालांकि सफलता के बाद एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें टीम से बाहर होना पड़ा। हिम्मत के धनी गांगुली ने फिर टीम में जगह बनाई और वापसी के कुछ समय बाद 2007 में अपने करियर का पहला दोहरा शतक जड़ आलोचकों को करारा जवाब दिया। कप्तानी के सभी गुर जानने के कारण दादा को करियर के अंतिम टेस्ट मैच में धोनी ने कप्तानी करने का अवसर दिया और उन्होंने भी इसका जमकर आनंद उठाया। आईपीएल खेलने के बाद कमेंट्री करने वाले दादा के जीवन में ख़ास दिन तब आया जब उन्हें 2015 में बंगाल क्रिकेट संघ का अध्यक्ष बनाया गया।
पांच साल ईडन गार्डंस और बंगाल क्रिकेट के लिए बेहतरीन कार्य करने वाले गांगुली को दोबारा निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। यहाँ से गांगुली के जीवन में एक और नया मोड़ आता है और इस बार उनसे बीसीसीआई अध्यक्ष के रुप में पर्चा दाखिल करने का अनुरोध किया जाता है और वे इसे स्वीकार भी करते हैं। विश्व क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था के अध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चयनित होना काफी बड़ी बात होती है। गांगुली ने पदभार ग्रहण करने से पहले ही अपनी प्राथमिकताओं में घरेलू क्रिकेट और खिलाड़ियों के मानदेय को रखने की बात कही। उनका बीसीसीआई अध्यक्ष बनना भारतीय क्रिकेट के उज्ज्वल भविष्य की तरफ एक सकारात्मक कदम है।
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