क्रिकेट में दोबारा वापसी के बाद दक्षिण अफ्रीका की बेस्ट ऑल टाइम इलेवन

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दक्षिण अफ्रीका के अलावा शायद ही दुनिया की कोई ऐसी क्रिकेट टीम हो जिसके बारे में इतने ज्यादा राय रखी जाती रही है । दक्षिण अफ्रीका की टीम में कभी टैलेंट की कमी नहीं रही है, एक से बढ़कर एक खिलाड़ी दक्षिण अफ्रीका की टीम में रहे हैं, लेकिन फिर भी प्रोटीज टीम को क्रिकेट जगत में वो हासिल नहीं हुआ, जिसके लिए उन्हें जाना जाता है । राजनीतिक वजहों से रंगभेदी नीति के कारण 70 के दशक में अफ्रीका में क्रिकेट पर गहरा प्रभाव पड़ा । साल 1970 में आईसीसी ने उन टीमों पर बैन लगाने का फैसला किया, जो टीमें अपनी टीम में सिर्फ गोरे खिलाड़ियों को शामिल करती थीं और केवल व्हाइट टीम के खिलाफ ही मैच खेलती थीं । 1991 में दक्षिण अफ्रीका में फिर से क्रिकेट की वापसी हुई । तब से लेकर अब तक प्रोटीज टीम का सफर धूप-छांव भरा रहा है, लेकिन ICC का कोई बड़ा इवेंट अभी तक दक्षिण अफ्रीका नहीं जीत पाया है । दक्षिण अफ्रीका में क्रिकेट की वापसी हुए 25 साल हो गए हैं । इस दौरान कई दिग्गज खिलाड़ी सामने आए । आइए आपको बताते हैं 1991 से अब तक दक्षिण अफ्रीका के बेस्ट 11 खिलाड़ियों के बारे में : नोट- ये टीम किसी विशेष फॉर्मेट को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई है, बल्कि इसमें सिर्फ 1991 से अब तक के बेस्ट दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों को शामिल किया गया है ।


ग्रीम स्मिथ (कप्तान)-

शायद ही ग्रीम स्मिथ जैसा कोई बांये हाथ का इतना शानदार बल्लेबाज रहा हो । उनका संतुलन गजब का था । 2000 में वो दक्षिण अफ्रीकी टीम के केवल सलामी बल्लेबाज थे । दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट में वापसी के बाद वो अफ्रीकी क्रिकेट के बड़े चेहरे थे, हालांकि मैच फिक्सिंग प्रकरण के बाद उनके करियर में थोड़ा ठहराव आया, लेकिन उसके बाद उन्होंने जबरदस्त वापसी की । महज 22 साल की उम्र में ही उन्हें दक्षिण अफ्रीकी टीम की कप्तानी का मौका मिला । इस मौके का स्मिथ ने पूरा लाभ उठाया और अपनी लीडरशिप से दक्षिण अफ्रीका को क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में नबंर वन टीम बनाया । एक बल्लेबाज के तौर पर भी स्मिथ काफी सफल रहे । टेस्ट हो या वनडे हर फॉर्मेट में स्मिथ ने लाजवाब बल्लेबाजी की । पावरप्ले के दौरान उनमें गैप ढूंढने और गेदबाज के पेस का यूज करके बाउंड्री लगाने की गजब की क्षमता थी । हाशिम अमला-

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अमला के पास अब भी रन बनाने की गजब की क्षमता है । 2004 में डेब्यू के साथ ही जिस तरह से उन्होंने अब तक प्रदर्शन किया है वो काफी समय तक अफ्रीकी क्रिकेट जगत में याद रखा जाएगा । प्रोटीज के लिए टेस्ट में तिहरा शतक लगाने वाले हाशिम अमला पहले बल्लेबाज हैं । अमला की तकनीक काफी अच्छी है और फॉर्मेट चाहे कोई भी हो उनके पास हर तरह के शॉट हैं । उनकी रनों की भूख यहीं कम नहीं होती, अमला वनडे क्रिकेट में सबसे तेज 5000 रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज हैं । वहीं टेस्ट में भी उनकी बल्लेबाजी का कोई तोड़ नहीं । अपनी विशाल पारियों से अमला ने कई बार अफ्रीकी टीम को संकट से बाहर निकाला है । अमला का स्वभाव भी काफी शांत है, अमला काफी शांत तरीके से रन बनाते हैं, यही वजह है कि वो टीम के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज हैं । जैक कैलिस-

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दक्षिण अफ्रीकी टीम में कैलिस के योगदान को केवल आंकड़ों से नहीं बयां किया जा सकता है । जैक कैलिस ना केवल अफ्रीका बल्कि विश्व के दिग्गज खिलाड़ियों में से एक माने जाते हैं । यही वजह है कि उन्हें ऑल टाइम महान खिलाड़ियों की सूची में भी जगह मिली है । मजबूत तकनीक, अलग तरह के टेंपरामेंट के साथ कैलिस ने करीब 2 दशकों तक प्रोटियाज टीम की बल्लेबाजी की अगुवाई की । वहीं अपनी गेंदबाजी से भी उन्होंने दुनिया में अपना लोहा मनवाया । बल्लेबाजी और गेंदबाजी के अलावा कैलिस स्लिप के बहुत अच्छे फील्डर थे । कुल मिलाकर सर गारफील्ड सोबर्स के बाद कैलिस ही एक परिपूर्ण क्रिकेटर थे । एबी डीविलियर्स-

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एबी डीविलियर्स इस समय दुनिया के सबसे विस्फोटक बल्लेबाजों में से एक हैं । डीविलियर्स वर्ल्ड क्रिकेट को एक गिफ्ट हैं । मैदान पर अपने अलग-अलग तरह के शॉट से दर्शकों को रोमांचित कर देते हैं । छोटे फॉर्मेट में जहां वो तूफानी अंदाज में बल्लेबाजी करते हैं तो वहीं टेस्ट मैचों में बिल्कुल अलग तरह की बल्लेबाजी करते हैं । उनकी कवर ड्राइव तो देखने ही लायक होती है, वहीं उनका फाइन लेग का शॉट भी लाजवाब होता है । अपनी टीम के लिए डीविलियर्स हर तरह का योगदान देते हैं । मैदान के हर कोने में उनकी फील्डिंग का कोई जवाब नहीं है, वहीं टीम के लिए उन्होंने काफी समय तक विकेटकीपिंग भी की है । एक कप्तान के तौर पर वो अपनी टीम को हर एक खिलाड़ी का पूरा ध्यान रखते हैं । डीविलियर्स के पास सब कुछ है, सिवाय एक आईसीसी ट्रॉफी को छोड़कर । जोंटी रोड्स-

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दुनिया का शायद ही कोई ऐसा क्रिकेटर होगा जिसने बिना बल्लेबाजी और गेंदबाजी के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई हो । लेकिन जोंटी रोड्स पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपनी फील्डिंग के दम पर क्रिकेट जगत में एक नया मुकाम हासिल किया । जोंटी रोड्स बेहतरीन एथलीट थे और अपने ज्यादातर अपनी पंसदीदा पोजिशन बैकवर्ड प्वाइंट पर खड़े होते थे । उस समय बल्लेबाज को ये पता होता था कि अगर उसके बल्ले से लगकर शॉट जोंटी की दिशा में गई तो उसका बच निकलना मुश्किल है । हालांकि इन सबके बीच हम उनकी बैटिंग को एकदम से भी कम करके नहीं आंक सकते । जोंटी उस समय भी बिल्कुल टी-20 की तरह बल्लेबाजी करते थे । लॉन्स क्लूसनर-

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लॉन्स क्लूसनर पहले ऐसे ऑलराउंडर खिलाड़ी थे, जो टीम में कहीं भी फिट बैठ जाते थे । निचले क्रम में अपनी बल्लेबाजी से उन्होंने कई बार मैच का रुख पलट कर रख दिया । उनकी बैटिंग स्टाइल भी अलग तरह की थी । क्लूसनर ने अपने करियर की शुरुआत एक तेज गेंदबाज के तौर पर की थी, लेकिन जल्द ही आखिरी के ओवरो में अपनी बल्लेबाजी से भी उन्होंने सबका दिल जीत लिया । इनमें से एक पारी आज भी क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में ताजा है जो उन्होंने 1999 के विश्व कप सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली थी । हालांकि वो मैच दक्षिण अफ्रीका हार गया था । क्लूसनर गेंदबाजी भी अलग-अलग ढंग से करते थे । वो मीडियम पेस करते थे और कभी-कभी अपनी अंगुलियों का प्रयोग करके स्पिन भी डालते थे । हालांकि चोट की वजह से उनका पेस खत्म हो गया लेकिन फिर भी वो टीम का अहम हिस्सा रहे । मार्क बाउचर-

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बात अगर दक्षिण अफ्रीका की ऑल टाइम बेस्ट इलेवन की करें तो मार्क बाउचर को कौन भूल सकता है । अगर आंख में चोट के कारण उनका करियर खत्म नहीं हुआ होता तो शायद क्रिकेट इतिहास में 1000 से भी ज्यादा शिकार करने वाले वो पहले विकेटकीपर होते । 2012 में संन्यास लेने से पहले बाउचर ने स्टंप के पीछे 998 शिकार किए थे । अपने 15 सालों के करियर में बाउचर विश्व के बेहतरीन विकेटकीपरों में से एक रहे हैं । विकेटकीपिंग के साथ बाउचर बल्लेबाजी भी काफी खतरनाक करते थे, टीम की जरुरत के हिसाब से वो बहुत जल्द ही अपना गियर चेंज कर लेते थे । इसकी एक बानगी तब देखने को मिली जब जिम्बाब्वे के खिलाफ मैच में उन्होंने मात्र 44 गेंदों पर शतक जड़ दिया । तब ये वनडे इतिहास का सबसे तेज शतक था । 2006 में वांडरर्स के उस ऐतिहासिक मैच में जब दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया के 434 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत हासिल की, उस समय क्रीज पर बाउचर ही थे, जिन्होंने अपने नर्व पर काबू रखते हुए प्रोटीज को ऐतिहासिक जीत दिलाई । शान पोलॉक-

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मॉर्वल कॉमिक में हेवैके के रोल के लिए पोलॉक बिल्कुल फिट बैठते हैं । क्योंकि गेंद के साथ उनकी पिंन प्वॉइंट एक्यूरेसी एकदम लाजवाब थी जो एकदम सुपरहीरोज के धनुष-तीर की तरह होती थी । पोलॉक की गेंद में पेस बिल्कुल नहीं होती थी, लेकिन मूवमेंट काफी ज्यादा होती थी । और इसी लेंथ पर शानदार गेंदबाजी करके उन्होंने अन्य तेज गेंदबाजी के साथ खुद को खड़ा किया। उनकी बैटिंग करने की स्टाइल भी औरों से जुदा थी । पोलॉक लॉन्ग हैंडिल का प्रयोग करते थे ।हालांकि जिस तरह के वो बल्लेबाज थे, इससे ज्यादा रन वो बना सकते थे, जितना उन्होंने बनाया है । हेंसी क्रोनिए के बाद जब पोलॉक टीम के कप्तान बने तो उनके लिए वो दौर ठीक नहीं रहा, लेकिन फिर भी टीम में उनको काफी सम्मान दिया जाता था । युवा तेज गेंदबाजों के लिए वो बेहतरीन मेंटर थे । डेल स्टेन-

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डेल स्टेन आज के दौर में तेज गेंदबाजी का सबसे बड़ा नाम है । अपने रनअप से दौड़कर एंपायर के पास आकर जब वो गेंद छोड़ते हैं तो बिजली की स्पीड से गेंद निकलती है । अच्छे-अच्छे बल्लेबाजों के स्टेन की तेजी के सामने पसीने छूट जाते हैं । स्टेन की सबसे खास बात ये है कि बिना अपने पेस में कमी उन्हें काफी अच्छा मूवमेंट मिलता है । उनकी एक्यूरेसी उनका सबसे बड़ा हथियार है । लाल गेंद हो या सफेद गेंद, नई गेंद हो या पुरानी, स्टेन को कोई फर्क नहीं पड़ता । वो जब भी गेंद थामते हैं तूफानी गेंदबाजी करते हैं, भले ही पिच कैसी भी हो । मखाया नतिनी-

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मखाया नतिनी बहुत ही मेहनती तेज गेंदबाज थे । यहां तक कि बिना अपने तेजी में कमी लाए वो पूरे दिन गेंदबाजी कर सकते थे । अपने 13 साल के करियर में नतिनी ने प्रोटियाज टीम को कई मैच जितवाए । वो दक्षिण अफ्रीका के पहले ब्लैक क्रिकेटर थे । नतिनी ने केप प्रोविंस के एक छोटे से गांव से निकलकर दक्षिण अफ्रीका के नेशनल क्रिकेट टीम तक का सफर तय किया । उनका ये सफर उनकी उपलब्धियों में चार चांद लगा देता है । हालांकि उनकी तुलना एलन डोनाल्ड से तो नहीं की जा सकती है, लेकिन नतिनी हमेशा सही जगह पर गेंद डालते थे । इसी वजह से कई बार उन्होंने बल्लेबाजों को अपने चंगुल में फंसाया । एलन डोनाल्ड-

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बल्लेबाजों पर हमेशा तिरछी नजर रखने वाले एलन डोनाल्ड 90 के दशक के बेहतरीन तेज गेंदबाज थे । 70 और 80 के खतरनाक तेज गेंदबाजों का दौर गुजरने के बाद एक बार फिर से तेज गेंदबाजी में " दूधिया रोशनी' को खतरनाक माना जाने लगा । डोनाल्ड गेंद को अंदर और बाहर दोनों तरफ निकाल सकते थे वो भी पेस के साथ । साउथ अफ्रीका की क्रिकेट में वापसी के बाद डोनाल्ड उनके सबसे बड़े हथियार थे । डोनाल्ड ने कई बार जरुरत से ज्यादा गेंदबाजी को और चोटिल भी काफी हुआ । यही वजह है कि उनका करियर ज्यादा नहीं चला और मात्र 72 टेस्ट मैच खेलने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया । हालांकि इस छोटे से करियर में भी डोनाल्ड ने क्रिकेट जगत को कई यादें दीं । 1998 में माइकल एथेर्टन के साथ उनकी लड़ाई को कौन भूल सकता है ।

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