स्पोर्ट्सकीड़ा के 50 सर्वश्रेष्ठ भारतीय टेस्ट क्रिकेटर (1-10)

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पिछले महीने के दौरान कई शीर्ष-स्तरीय खिलाड़ियों को सम्मानित करने के बाद, हम अपनी इस सीरीज के अंतिम भाग पर आ गये हैं। पिछले हफ्ते 20-11 रैंकों पर खिलाड़ियों को उनके आंकड़े और प्रदर्शन के आधार पर नवाजा गया था और अब बारी है भारतीय क्रिकेट के दिग्गज और महानतम खिलाड़ियों को 10-1 की रैंकिंग देने की। आज हम टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले दस महानतम क्रिकेटरों पर नजर डालेंगे। इस श्रेणी में भारतीय क्रिकेट के उन सितारों को जगह दी गई है जो क्रिकेट को धर्म समझने वाले इस देश की जनता और इस खेल के सबसे बड़े प्रारूप के इतिहास पर अपनी गहरी व अमिट छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इन विशिष्ट खिलाड़ियों की गणना करने के लिए इन महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में रखा गया है- a) संपूर्ण करियर में निरंतरता b) जीते हुए मैच में प्रदर्शन c) भारत के बाहर टेस्ट मैच में प्रदर्शन d) भारतीय सरजमी पर मजबूत विरोधियों के खिलाफ बड़े मैचों में खेल को बदलने का प्रयास e) विश्व क्रिकेट में महानता, विरोधियों और विशेषज्ञों में राय f) पहले से मौजूद रूढ़िवादियों को तोड़कर नए ट्रेंड बनाना g) बल्लेबाजों के लिए 1000 रनों का न्यूनतम कट ऑफ / गेंदबाजों के लिए 100 विकेट/ विकेटकीपर के लिए 50 डिसमिसल अर्थपूर्ण नमूना आकार तैयार करने के लिए h) आंकड़ों को किसी खिलाड़ी के महत्व को दर्शाने के लिए ना आखिरी है और ना ही इन्हें अंतिम रूप कभी माना जायेगा। प्रत्येक क्रिकेटर के करियर के हर पहलू को जोडने के बाद एक आम सहमति बनाई गई है।

#10 हरभजन सिंह

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1998 में बैंगलोर टेस्ट के दौरान अंतरराष्ट्रीय टीम में आने के बाद हरभजन सिंह शुरूआत में उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। आलोचनाओं को झेलने के बाद हरभजन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज से अपना शानदार कमबैक किया। भारत को 'द फाइनल फ्रंटियर' के रूप में लेबल करने के बाद, स्टीव वॉ की अगुवाई अजेय टीम हरभजन सिंह के आगे ढेर हो गई। 33.4 की स्ट्राइक रेट के साथ बेमिसाल 32 विकेट लेकर हरभजन ने भारत में खेले गए सबसे महान टीमों में से एक के खिलाफ सबसे यादगार टेस्ट सीरीज में जीत हासिल करने में भारत के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तब से हरभजन ने वापस मुड़कर कभी नहीं देखा। 'टर्बनेटर' ने खुद को कप्तान सौरव गांगुली के प्रमुख हथियार के तौर पर स्थापित किया और यहां तक कि कई बार ऐसा हुआ कि जब टीम विदेश दौरे पर गई तब निपुण अनिल कुंबले की जगह प्लेइंग इलेवन में हरभजन को जगह दी गई। कुंबले के संन्यास लेने के बाद हरभजन ने भारत के प्रमुख स्पिनर की भूमिका निभाई और टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया। रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा में जैसे विकल्पों के उभरने के बाद इस दिग्गज ने टीम से अपना स्थान खो दिया। फिर भी वह भारतीय टेस्ट इतिहास में तीसरे सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। करियर अवधि- 1998- वर्तमान तक आंकड़ें- 103 मैच में 417 विकेट , 32.46 की औसत और 68.5 का स्ट्राइक रेट, 25 बार 5 विकेट लेने का कारनामा व 5 बार 10 विकेट अपने नाम किए ( नोट- हरभजन सिंह ने अभी टेस्ट क्रिकेट से आधिकारिक रूप से रिटायमेंट की घोषणा नहीं की है) #9. भगवत चन्द्रशेखर

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1971 ओवल, 1976 ऑकलैंड, 1976 पोर्ट ऑफ़ स्पेन, 1977 सिडनी और 1978 मेलबर्न - ये कुछ आकस्मिक क्रिकेट मैच नहीं हैं, जो अतीत के पन्नों से निकाले गए हैं। ये पांच उल्लेखनीय घटनाएं भारतीय इतिहास में कुछ यादगार टेस्ट जीत थीं और वे सभी भागवत चंद्रशेखर की शानदाग गेंदबाजी की वजह से मिलीं थी । पहली झलक में उनके करियर के आंकड़े शायद कुछ अन्य बड़े नामों की तरह डर की भावना पैदा नहीं करते हैं। लेकिन अगर बात मैच जीतने की क्षमता के संदर्भ में की जाये तो बहुत कम भारतीय गेंदबाज चन्द्रशेखर की बराबरी करने में सक्षम हुए हैं। बचपन से पोलियो जैसी बीमारी की वजह से दिव्यांग थे लेकिन चंद्रशेखर ने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना लिया। कुछ असमान्य से एक्शन के साथ वह कमजोर हुए बॉलिंग हाथ के साथ गुगली, लेग ब्रेक के माहिर थे। जब कोई बल्लेबाज अच्छी बल्लेबाजी करते हुए क्रीज पर सेट हो चुका होता था तब वह एक ऐसा स्पेल डालकर खेल को बदल देते थे जो उन्हें उन दिनों सबसे खतरनाक गेंदबाज की श्रेणी में शुमार करता था। तत्कालीन कप्तान पटौदी चन्द्रशेखर की उपस्थिति के बिना किसी भी टेस्ट मैच में खेलने के लिए इच्छुक थे। करियर अवधि: 1964-1979 आंकड़े : 58 मैचों में 29.74 की औसत और 65.9 की स्ट्राइक रेट के साथ 242 विकेट, जिसमें 16 बार 5 विकेट और 2 बार 10 विकेट लेने का कारनामा उनके नाम था। #8. वीरेंदर सहवाग

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आलोचक उनके फ्लैट फुट तकनीक पर ऊंगली उठा सकते हैं साथ ही साथ स्विंग बॉलिंग के खिलाफ उनके रिकॉर्ड पर इशारा करते हों। लेकिन वह भी इस बात को मानते होंगे कि कोई भी आधुनिक बल्लेबाज दर्शकों का मनोरंजन करने में उतना कामयाब नहीं रहा जितना वीरेंद्र सहवाग ने अपनी विस्फोटक पारियों से किया है। 2003 के बॉक्सिंग डे टेस्ट के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ताबड़तोड़ बल्लेबाजी हो या फिर एशियन सरजमी पर चौथी पारी के दौरान इंग्लैंड के खिलाफ सांसे रोक देने वाली पारी हो। इस ताबड़तोड़ सलामी बल्लेबाजी ने कई अनगिनत धमाकेदार पारी खेलकर हमारा मनोरंजन किया है। शीर्ष क्रम पर बल्लेबाजी करते हुए सहवाग की ताबडतोड़ बल्लेबाजी ने कई बार भारत को जीत दिलाई । दिग्गजों से सजी टीम इंडिया में नजफगढ़ का नवाब टर्निंग बॉल के खिलाफ सबसे खतरनाक और विस्फोट बल्लेबाज था। गाले की धूल भरी ट्रैक पर मुथैया मुरलीधरन और अंजता मेंडिस की धारदार गेंदबाजी के खिलाफ सहवाग का वो धमाकेदार दोहरा शतक कोई कैसे भूल सकता है। सहवाग ने अपनी अविश्वसनीय पारी की बदौलत भारतीय टेस्ट क्रिकेट में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। करियर अवधि- 2001- 2013 आंकड़े- 104 मैच में 49.34 की औसत से 8586 रन। जिसमें 23 शतक और 32 अर्धशतक शामिल हैं। #7, वीवीएस लक्ष्मण

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बहुत ही कम बल्लेबाज़ हैं जिनकी खब्बू गेंदबाजों के सामने मुश्किल की घड़ी में सबसे अधिक मांग रही है। वीवीएस लक्ष्मण उस श्रेणी के बल्लेबाजों में गिने जाते थे। एमएल जयसिम्हा और मोहम्मद अजहरुद्दीन के दौर में लक्ष्मण की बल्लेबाजी में यह एक अलग हैदराबाद का स्वाद था। चाहे ऑफ साइड से क्लासिक ड्राइव हो या मिड विकेट से शाॉट, इस दाएं हाथ के बल्लेबाज ने कलाईयों का बेहतरीन इस्तेमाल करके इन क्लासिक शॉट को नई परिभाषा दी है। लगातार जीत का सेहरा बांधते हुए स्टीव वॉ की ऑस्ट्रेलियाई टीम प्रतिष्ठित ईडेन गार्डेन में 2001 के दौरान एक और जीत की गाथा लिखने मैदान पर उतरी थी। लेकिन तब उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उनके सामने वेरी वेरी स्पेशल लक्ष्मण दीवार बनकर खड़े हो जायेंगे। तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली ने एक चौंकाने वाला फैसला करते हुए नंबर 3 पर बल्लेबाजी के लिए लक्ष्मण को उतार दिया। लक्ष्मण ने बखूबी पारी को संभालते हुए ऐतिहासिक 281 रन की पारी खेल डाली। इस पारी की बदौलत ना सिर्फ भारत को मैच में जीत मिली बल्कि 0-1 से पिछड़ रही भारतीय टीम उस टेस्ट सीरीज को ऐताहिसक 2-1 से जीतने में कामयाब रही। इसकी वजह से लक्ष्मण भारतीय क्रिकेट में वेरी वेरी स्पेशल का ताज हासिल करने में कामयाब रहे। करियर अवधि: 1996-2012 आंकड़े: 134 मैच में 45.97 की औसत से 8781 रन। 17 शतक और 56 अर्धशतक शामिल। #6. बिशन सिंह बेदी

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बिशन सिंह बेदी खेल में खूबसूरती बढ़ाने के लिए सबसे शिष्ट स्पिनरों में से एक थे। उनकी सरल और आकर्षक गेंदबाजी एक्शन एक झरने से गिरने वाले पानी बराबर सहज थी। आधुनिक युग में सीमित ओवरों के मैचों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए, इस बाएं हाथ के गेंदबाज ने प्रथम श्रेणी में अविश्वसनीय 1560 विकेट लेने का कारनामा किया है जो भारतीय क्रिकेट के स्वर्णिम इतिहास का एक मानक है। ऐसी धरती जिसने कई महान क्रिकेटरों को जन्म दिया है, उसमें से बिशन सिंह बेदी उन ( सुनील गावस्कर, कपिल देव और अनिल कुंबले) खिलाड़ियों में शुमार हैं जो आईसीसी की हॉल ऑफ द फेम में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि आने वाले सालों में कुछ खिलाड़ी इस प्रतिष्ठित ग्रुप में शामिल हो सकते हैं लेकिन बहुत कम ऐसे खिलाड़ी होंगे जिन्होंने दर्शकों को अपने उच्चस्तरीय खेल से मोहित किया हो जैसा इस महान गेंदबाज ने किया। करियर अवधि: 1966/67-1979 आंकड़े- 28.71 की औसत और 80.3 की स्ट्राइक रेट के साथ 266 विकेट 67 मैच में। जिसमें 14 बार 5 विकेट और 1 बार 10 विकेट लेने का आंकड़ा शामिल है। #5. राहुल द्रविड़

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दिग्गज स्पिनर शेन वॉर्न ने द्रविड़ के लिए कहा था कि द्रविड़ को आउट करने के लिए एक दर्जन तोपों की फायरिंग के समान गेंदबाजी की जरुरत होती थी। उससे आगे बढ़कर शोएब अख्तर ने राहुल द्रविड़ की तुलना बेजोड़ मोहम्मद अली से कर दी, जो लड़ता है और कभी विरोधियों के आगे झुकता नहीं है। भारतीय बल्लेबाजी लाइनअप में सबसे महत्वपूर्ण स्थान यानि नंबर तीन स्थान पर कब्जा करके उन्होंने सलामी बल्लेबाजों और मध्य-क्रम के बीच एक मजबूत स्थायी कड़ी का गठन किया। टेस्ट क्रिकेट पर जिस तरह से द्रविड़ ने नंबर 3 पर अपनी छाप छोड़ी है उनकी जगह पर कोई और बल्लेबाज अभी तक उस कद पर नहीं पहुंच पाया है। उनके अंतरराष्ट्रीय सफर में कदम रखने से लेकर पांरपरिक रुप से बाहर निकलने तक भारतीय क्रिकेट में तकनीकी रूप से इतना सक्षम बल्लेबाज कोई नहीं रहा। करियर अवधि: 1996-2012 आंकड़े: 164 मैचो में 52.31 की औसत से 36 शतक और 63 अर्धशतक के साथ 13,288 रन #4. कपिल देव

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2002 के मध्य में जब सचिन तेंदुलकर अपने शीर्ष पर थे और सुनील गावस्कर का जादू लोगों के दिमाग में ताजातरीन था, तब यह कपिल देव थे जो विस्डन के भारतीय क्रिकेटर ऑफ द सेंचुरी के पुरस्कार को घर लेकर आये। इस क्षण ने न केवल खेल में अद्वितीय ऑलराउंडर की प्रतिष्ठा को बढ़ाया बल्कि यह भी दिखाया कि भारत उसे बदलने के करीब क्यों नहीं आ पाएगा। आंकड़ों से दूर कपिल देव ने हर अर्थ में भारतीय क्रिकेट के चेहरे को बदल कर रख दिया। उनकी टीम के अधिकांश सहयोगियों के विपरीत, वह एक महानगर या क्रिकेट के पारंपरिक पावर सेंटर से निकल कर नहीं गए थे। हालांकि, इससे उन्हें भारतीय इतिहास में अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सका। उन्होंने अपने करियर में 434 विकेट लिए और अपनी संन्यास लेने तक टेस्ट गेंदबाजी में एक नया आयाम बना कर छोड़ा साथ ही साथ कपिल की आक्रामक बल्लेबाजी और सहज नेतृत्व ने उन्हें खेल के एक अमूल्य दिग्गज में बदल दिया। महान लेखक जॉन वुडकॉक ने घोषित किया, "भारत के पास कभी उनके जैसा एक और क्रिकेटर नहीं था, और काफी हद तक कभी नहीं होगा।" करियर अवधि: 1978-1994 आंकड़े: 131 मैच में 29.54 की औसत और 63.9 की स्ट्राइक रेट से 434 विकेट 23 बार पांच विकेट और 2 बार 10 विकेट लेने का कारनाम, वहीं बल्लेबाजी में 31.05 की औसत से 8 शतक और 27 अर्धशतक के साथ 5248 रन। #3. अनिल कुंबले

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ऐसा देश जहां बल्लेबाज अनगिनत ऊंचाईयों को छूते हैं और जहां गेंदबाजों के लिए एक मुकाम पर पहुंचना एक बड़ा काम होता है। ऐसे कई विश्व स्तरीय बल्लेबाजों से घिरे होने के बावजूद अनिल कुंबले टेस्ट क्रिकेट में भारत के लिए सबसे बड़े मैच विजेता थे। 90 के दशक के दौरान, भारत ने खेल के इस प्रारूप में नाबाद श्रृंखला जीतने का रिकॉर्ड बनाया। इस अविश्वसनीय जीत के पीछे कुंबले की बेहतरीन गेंदबाजी ही थी। अपने जुझारू दृष्टिकोण और गेंदबाजी की शैली के साथ कुंबले ने सफल लाइनअप के खिलाफ भारत को अनगिनत यादगार जीत के लिए प्रेरित किया। फिरोजशाह कोटला में एक उखड़ी हुई सतह पर पाकिस्तान के खिलाफ दूसरी पारी में दस विकेट लेने का कारनामा कर दिखाया जो किसी भी भारतीय गेंदबाज का सबसे आश्चर्यजनक स्पेल था। वहीं दूसरी ओर टेस्ट लेवल पर अपने देश के नेतृत्व का विशेषाधिकार प्राप्त करने के बाद कुंबले बेहद गरिमा के साथ कप्तान बने। जिस तरीके से उन्होंने अपने खिलाड़ियों को सिडनी टेस्ट में विवादास्पद हार से हताश होने की बजाय पर्थ में एक जबरदस्त जीत के लिए उकसाना शुरू किया, वही उनकी निष्ठा से प्रतिबद्धता को दर्शाता था। करियर अवधि: 1990-2008 आंकड़े: 132 मैच में 29.65 की औसत और 65.9 की स्ट्राइक रेट के साथ 619 विकेट हासिल किए। जिसमें 35 बार 5 विकेट और 8 बार 10 विकेट का आंकड़ा पार किया। #2. सुनील गावस्कर

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आज जब विराट कोहली की अगुवाई में भारतीय टीम की शीर्ष रैकिंग और वर्चस्व की सभी ओर चर्चा हो रही है, ऐसे में बहुत से लोगों को यह पता नहीं होगा कि 1970 की दशक के शुरुआत में 15 महीने तक आईसीसी ने भारत को नंबर 1 की रैंकिंग दी थी। उस पूरे दशक में सुनील मनोहर गावस्कर ने 55.91 की औसत और 22 शतकों की मदद से 5647 रन बनाकर बल्लेबाजी चार्ट में राज किया था। 70 के दशक में कम से कम 4000 रन के साथ सभी खिलाड़ियों में कोई भी बल्लेबाज अपनी बल्लेबाजी औसत या शतकों की संख्या के करीब नहीं आ सका। अभेद डिफेंस और एकाग्रचित होने की शक्तियों के साथ शारीरिक रूप से कम होने के बावजूद गावस्कर के सामने लंबे लंबे फास्ट बॉलर भी छोटे नजर आते थे। बेशक, वेस्टइंडीज के खिलाफ उनकी बल्लेबाजी रिकॉर्ड शानदार था चाहे 1971 में अपनी डेब्यू सीरीज की बात करें जिसमें कई स्पिनरों और मध्यम गति गेंदबाजों का आक्रमण था। हालांकि, कैरेबियन पेस चौकड़ी ने एक निजी समारोह के दौरान उन्हें 'मास्टर' के रूप में संज्ञा दी और सम्मान और प्रशंसा की। 1979 की गर्मियों में गावस्कर की मैराथन 443 गेंद में 221 रन की पारी की मदद से भारत चौथी पारी में बॉब विलिस, इयान बाथम और माइक हेन्ड्रिक की विश्व स्तरीय गेंदबाजी के सामने 438 रनों का बड़ा स्कोर खड़ा करने में सफल रहा। जब प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार प्राप्त करने के लिए इस दाएं हाथ के बल्लेबाज को बुलाया गया तो ओवल स्टेडियम में मौजूद दर्शक इस महान बल्लेबाज के सम्मान में खड़े हो गये। शायद ही कभी एक भारतीय क्रिकेटर को घर से दूर किसी विपक्षी दर्शकों से इतना सम्मान मिला हो। करियर अवधि: 1971-1987 आंकड़े: 10,122 रन 125 मैच में 51.12 की औसत के साथ। जिसमें 34 शतक और 45 अर्धशतक शामिल थे। #1. सचिन तेंदुलकर

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महज 16 साल की उम्र में सचिन तेंदुलकर पाकिस्तान की विश्व स्तरीय गेंदबाजी आक्रमण से निपटने के लिए तैयार थे। जिसमें धुरविरोधी पाकिस्तान के इमरान खान, वसीम अकरम, वकार यूनिस और अब्दुल कादिर शामिल थे। जब तक वह 20 साल के हुए , तब तक इस प्रतिभा के नाम इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न जगहों पर टेस्ट कारनामे दर्ज हो चुके थे। एक एक करके सचिन अपने नाम के आगे नये नये आयाम जोड़ते जा रहे थे। अपने करियर के प्रारंभिक चरण के दौरान एक अस्थिर बल्लेबाजी लाइनअप में किस्मत आजमाना और एक अरब से अधिक आबादी की उम्मीदों का बोझ कंधे पर होने के बावजूद तेंदुलकर ने हर चुनौती को एक अभूतपूर्व सफलता में बदल दिया। भारतीय क्रिकेट की तीन अलग-अलग पीढ़ियों के साथ खेलने वाला यह दाएं हाथ का बल्लेबाज दीर्घायु सफल करियर का प्रतीक बन गया। 1990 के दशक में एक तेज स्ट्रोक मास्टर होने से लेकर 2000 के दशक के दौरान उन्होंने खुद को भारतीय बल्लेबाजी क्रम के अनुसार रन मशीन के रूप में खुद को बदल लिया। खेल का लगभग हर बल्लेबाजी रिकॉर्ड इस महानतम खिलाड़ी के नाम है। बहुत से खिलाड़ी आते है और जाते हैं लेकिन शताब्दियों में सचिन तेंदुलकर बस एक था और एक ही रहेगा इसलिए सचिन को सचिन 'रिकॉर्ड' तेंदुलकर कहा जाता है। करियर अवधि: 1989-2013 आंकड़े: 200 मैच में 23.78 की औसत और 51 शतक व 68 अर्धशतक के साथ 15,921 रन लेखक- राम कुमार अनुवादक- सौम्या तिवारी

Edited by Staff Editor