2002 के मध्य में जब सचिन तेंदुलकर अपने शीर्ष पर थे और सुनील गावस्कर का जादू लोगों के दिमाग में ताजातरीन था, तब यह कपिल देव थे जो विस्डन के भारतीय क्रिकेटर ऑफ द सेंचुरी के पुरस्कार को घर लेकर आये। इस क्षण ने न केवल खेल में अद्वितीय ऑलराउंडर की प्रतिष्ठा को बढ़ाया बल्कि यह भी दिखाया कि भारत उसे बदलने के करीब क्यों नहीं आ पाएगा। आंकड़ों से दूर कपिल देव ने हर अर्थ में भारतीय क्रिकेट के चेहरे को बदल कर रख दिया। उनकी टीम के अधिकांश सहयोगियों के विपरीत, वह एक महानगर या क्रिकेट के पारंपरिक पावर सेंटर से निकल कर नहीं गए थे। हालांकि, इससे उन्हें भारतीय इतिहास में अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सका। उन्होंने अपने करियर में 434 विकेट लिए और अपनी संन्यास लेने तक टेस्ट गेंदबाजी में एक नया आयाम बना कर छोड़ा साथ ही साथ कपिल की आक्रामक बल्लेबाजी और सहज नेतृत्व ने उन्हें खेल के एक अमूल्य दिग्गज में बदल दिया। महान लेखक जॉन वुडकॉक ने घोषित किया, "भारत के पास कभी उनके जैसा एक और क्रिकेटर नहीं था, और काफी हद तक कभी नहीं होगा।" करियर अवधि: 1978-1994 आंकड़े: 131 मैच में 29.54 की औसत और 63.9 की स्ट्राइक रेट से 434 विकेट 23 बार पांच विकेट और 2 बार 10 विकेट लेने का कारनाम, वहीं बल्लेबाजी में 31.05 की औसत से 8 शतक और 27 अर्धशतक के साथ 5248 रन।