वेस्टइंडीज के खिलाफ चल रहे टेस्ट मैच की पहली पारी में श्रीलंका का 185 रन पर सभी विकेट गंवा देना एक बार फिर यह बताने के लिए काफी है कि उसका सूरज अस्त हो रहा है। याद करें 90 का वो दौर जब सनथ जयसूर्या, कुमार संगकारा, मार्वन अट्टापट्टू, अरविंद डी सिल्वा और तिलकरत्ने दिलशान जैसे तमाम दिग्गज खिलाड़ी श्रीलंका की अगुवाई कर रहे थे। 1996 में विश्व विजेता बनने के बाद तक क्रिकेट जगत में श्रीलंका की तूती बोलती थी। हालांकि पिछले तीन-चार सालों में उसके लगातार गिरते प्रदर्शन ने जता दिया कि श्रीलंकाई क्रिकट गर्त की ओर अग्रसर है। उनके जूनियर टीम के आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं।
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दरअसल, किसी एक मैच या टूर्नामेंट में प्रदर्शन के आधार पर खेल में आ रही गिरावट को आंकना बेइमानी है। वेस्टइंडीज के खिलाफ वतर्मान टेस्ट सीरीज़ के पहले मैच की पहली पारी में एकादश के पांच खिलाड़ी दोहरे अंक को न छू पाएं तो चिंता लाज़िमी है। टेस्ट मैच में अगर कोई भी बल्लेबाज 50 का आंकड़ा नहीं छू पाए तो सवाल तो उठेंगे ही। इस मैच में श्रीलंका की बल्लेबाजी लजर थी।
वनडे में भी लचर प्रदर्शन
खैर, आंकलन की व्याख्या इतिहास के मुताबिक हो तो सही है। तो 2016 के आंकड़ो पर नजर दौड़ाते हैं, एकदिवसीय में 19 मैच खेलने वाली श्रीलंकाई टीम के हाथ सिर्फ 6 जीत लगी। 9 हार और एक ड्रॉ ने इस साल टीम के प्रदर्शन का हाल बयां किया, साल बदला लेकिन टीम के हालात वही रहे। 2017 में उसने 29 एक दिवसीय मैच खेले लेकिन टीम को जीत महज 5 मैचों में नसीब हुई। हालांकि 2018 में टीम अब तक अच्छी रही है लेकिन प्रदर्शन में निरंतरता की कमी से यह कह पाना मुश्किल है कि अंत कैसा होगा। जनवरी 2018 में ही जिम्बाब्वे के खिलाफ 12 रन की हार के बाद टीम को आलोचना का शिकार होना पड़ा। ऐसा होना भी लाजिमी था क्योंकि श्रीलंका जैसी टीम को जिम्बाब्वे की टीम हराती है तो यह अचंभे की बात है।
टेस्ट में हार से उठने लगे सवाल
बात टेस्ट में प्रदर्शन की करें तो 2016 में खेले गए 9 टेस्ट मैचों में श्रीलंका ने 5 में जीत हासिल की तो वहीं 3 में हार का मुंह देखना पड़ा। एक मैच ड्रॉ पर छूटा। 2017 में बेहतर होने के बजाये टीम के प्रदर्शन में गिरावट ही आई और कुल 13 में से 4 टेस्ट ही श्रीलंका की झोली में आए। 7 में हार और 2 ड्रॉ ने इस दिग्गज एशियाई टीम की बादशाहत पर सवाल खड़े कर दिए। 2018 में टीम के नाम एक जीत दर्ज है और कोई हार खाते में नहीं है लेकिन वेस्टइंडीज के खिलाफ यह मैच उनके लिए बचा पाना काफी मुश्किल लग रहा है।
जूनियर टीम भी नहीं कर रही कमाल
अक्सर सीनियर टीम के कोच की निगाहें जूनियर टीम पर होती हैं। यहीं से असली प्रतिभा को विश्व पटल के लिए तैयार किया जाता है। श्रीलंका इस मामले में भी काफी कमजोर है। हालांकि पुख्ता रूप से यह कहना कि उनके पास टैलेंट ही नहीं है, बिलकुल गलत है लेकिन कुछ खिलाड़ी जो बेहतर प्रदर्शन करते हैं वो निरंतरता नहीं रख पाते और अंतत: टीम को उनसे कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं होता। ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने शुरुआती कुछ मैचों में अपने प्रदर्शन से हैरान किया लेकिन बाद वे कुंद पर गए। मानक के तौर पर अंडर-19 विश्व कप को ले तो श्रीलंका कभी इसे नहीं जीत पाई है। 2018 में वह 9वें स्थान पर रही थी। 2012 में भी इसी स्थान पर रहने वाली इस एशियाई टीम को 2014 में 8वां स्थान मिला। 2016 में प्रदर्शन सुधरा लेकिन किस काम का कि फिर से हालात वही हो गए।
प्रतिभाओं को सहेजने में असफल रहा श्रीलंका
नेचुरल टैलेंट को जगह देने वाली टीमों में शूमार श्रीलंका के पास प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन उसे सहेजन पाने में वे असफल रहे हैं। अजंता मेंडिस, नुवान थिसारा और रंगना हेराथ जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ी श्रीलंका की टोली में शामिल होते गए लेकिन कुछ समय बाद उनके प्रदर्शन में गिरावट दर्ज होने लगती है। उन्हें सहेजने और निखारने में शायद श्रीलंकाई कोच की कोई दिलचस्पी नहीं है।
बोर्ड और सरकार के बीच खटपट भी एक कारण
श्रीलंका अक्सर क्रिकेट से ज्याद बोर्ड और सरकार के बीच झगड़े को लेकर सुर्खियों में रहता है। अभी हाल में ही श्रीलंकाई क्रिकेट में भ्रष्टाचार को लेकर दिग्गज क्रिकेटर अर्जुन राणातुंगा ने कहा था कि बोर्ड में भ्रष्टाचार नीचे से ऊपर तक व्याप्त है। यह पहला मौका नहीं है जब बोर्ड के रवैये को लेकर सवाल उठे हैं इससे पहले भी श्रीलंका क्रिकेट विवादों में रहा है। सनथ जयसूर्या की अगुवाई वाली चयन समिति ने तो एक साथ ही इस्तीफा सौंप कर अचंभित कर दिया था। हालांकि बाद में सरकार ने कहा कि उनका कार्यकाल खत्म हो गया है इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है।
प्रीमियर लीग ने भी क्रिकेटरों को तोड़ा
वेस्टइंडीज, जिम्बाब्वे और आॅस्ट्रेलिया की तरह ही श्रीलंका के खिलाड़ी भी अब टीम में खेलने से ज्यादा प्रीमियर लीगों में खेलना पसंद कर रहे हैं। यह एक बड़ा कारण है कि उस देश का क्रिकेट बोर्ड टीम के खिलाड़ियों पर अंकुश लगाने में नाकाम रहा है। खिलाड़ियों को टीम में चयन से ज्यादा आईपीएल में चयन की चिंता होती है। हालांकि सारा दोष खिलाड़ियों पर नहीं मढ़ा जा सकता। श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड भी इसके लिए जिम्मेदार है। उनके ढहते इंफ्रास्ट्रक्चर और पैसों की कमी ने खिलाड़ियों को लीग खेलने पर मजबूर किया है। साथ ही आंतरिक मसले भी क्रिकेटरों को बोर्ड से दूर कर रहे हैं। यही कारण है कि वहां जूनियर खिलाड़ियों को वो सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं जिसके सहारे वह खुद को अंतराष्ट्रीय टीम के लिए तैयार कर सकें।
अभ्यास से ज्यादा मैचों को तरजीह
टी-20 प्रीमियर लीग के आगमन से खिलाड़ी अब अभ्यास से ज्यादा तरजीह उन लीगों में खेलने को देते हैं। इसका एक उदाहरण है कि जब भारत में आईपीएल चल रहा होता है तो कम ही खिलाड़ी होते हैं जो बीच में उसे छोड़कर देश लौटना चाहते हैं। जिन क्रिकेट बोर्ड के पास पैसा और अनुशासन है वो तो किसी तरह इस आकर्षण से बचे हुए हैं लेकिन जिनके पास पैसा नहीं वो अपने खिलाड़ियों को समेट कर रखने में नाकाम रहे हैं। यही हाल श्रीलंका के क्रिकेट बोर्ड का भी है।