श्रीलंका और ज़िम्बाब्वे के बीच कोलंबो में हुए एकमात्र टेस्ट में पाँचों दिन शानदार खेल देखने को मिला। आखिरी दिन श्रीलंका ने 388 रनों के रिकॉर्ड लक्ष्य का पीछा करते हुए ज़िम्बाब्वे को 4 विकेट से हराया। चौथी पारी में श्रीलंका की तरफ से निरोशन डिकवेला ने 81 और मैन ऑफ़ द मैच असेला गुनारत्ने ने 80 रनों की शानदार पारी खेली। हालांकि यहाँ जिस घटना की बात हो रही है, वो श्रीलंका की पारी के 69वें ओवर में घटी और इसने मैच के परिणाम पर काफी बड़ा प्रभाव डाला। सिकंदर रज़ा के ओवर की चौथी गेंद पर निरोशन डिकवेला के खिलाफ स्टंपिंग की अपील की गई। ज़िम्बाब्वे के विकेटकीपर रेगिस चकाब्वा ने काफी बढ़िया स्टंपिंग की थी और रीप्ले में ये दिख रहा था कि डिकवेला का पिछला पैर लाइन पर था और कोई भी हिस्सा क्रीज़ के पीछे नहीं दिख रहा था। हालांकि तीसरे अंपायर सी.शमशुद्दीन का कुछ और ही सोचना था और उन्होंने काफी रीप्ले देखने के बाद डिकवेला को नॉट आउट दे दिया। अब सवाल ये है कि अगर पैर का कोई भी हिस्सा क्रीज़ के पीछे नहीं था, तब डिकवेला को नॉट आउट कैसे दिया गया? रीप्ले देखने के बाद ज़िम्बाब्वे के बल्लेबाजी कोच लांस क्लूजनर ख़ुशी भी मनाने लगे थे, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। इसके अलावा मुख्य कोच हीथ स्ट्रीक भी काफी निराश दिखे। स्टंपिंग के नियम के हिसाब से अंपायर, बल्लेबाज को 'बेनिफिट ऑफ़ द डाउट' दे सकते हैं, लेकिन बड़ी बात ये है कि क्या आउट दिए जाने के लिए यहाँ शमशुद्दीन के पास पर्याप्त सबूत नहीं थे? डिकवेला उस समय 37 पर थे और इसके बाद श्रीलंका के लिए उन्होंने मैच जीतने वाली पारी खेली। लोगों ने इस घटना को लेकर ट्विटर पर भी प्रतिकियाएं दी है:
(ज़िम्बाब्वे के साथ गलत हुआ, लाइन के पीछे कुछ भी नहीं था, फिर भी नॉट आउट)
(मुझे ये समझ नहीं आता कि भारतीय अंपायरों को अंतर्राष्ट्रीय मैचों में रखा ही क्यों जाता है, ज़िम्बाब्वे के साथ बहुत गलत हुआ)
(ज्यादातर मजबूत टीमों को ही 'बेनिफिट ऑफ़ द' डाउट' मिलता है)
(आपके पास समय और तकनीक दोनों है, आप फिर भी गलत फैसला कैसे दे सकते हैं?)