विवादों से श्रीलंकाई टीम का पुराना नाता रहा है, अब तक श्रीलंकाई क्रिकेट टीम कई विवादों में फंस चुकी है। श्रीलंकाई खिलाड़ियों द्वारा किये गए ये विवाद प्रायः हार से बचने के लिए खेल भावना के विरुद्ध तक चले जाने के कारण हुए हैं। इसी कड़ी में दिल्ली टेस्ट की घटना के बाद एक विवाद और जुड़ गया। दिल्ली टेस्ट के दूसरे दिन भारतीय टीम के आगे बेबस नज़र आ रही लंकाई टीम ने खेल भावना के विरुद्ध जाकर, अपने खिलाड़ियों के स्मॉग के कारण बीमार होने का बहाना बनाया। ऐसा लगता है कि टीम इंडिया के बल्लेबाजों को अपनी गेंदबाजी द्वारा आउट करने में असफल रहने पर, उनका इरादा बल्लेबाजों की एकाग्रता भंग करके उन्हें आउट करने का था। इसका उन्हें लाभ भी मिला, एकाग्रता भंग होने से आर अश्विन और अपने पहले तिहरे शतक की ओर बढ़ रहे कोहली उनकी चाल का शिकार हो गए। यदि इस श्रृंखला की ही बात करें तो ये श्रृंखला का पहला विवाद नहीं है। पहले टेस्ट मैच के दौरान भी बल्लेबाजी करते हुए जब श्रीलंकाई खिलाड़ी दिलरुवान परेरा आउट हुए तो DRS लेने के लिए उन्होंने ड्रेसिंग रूम से सहायता लेने का प्रयास किया। विवाद बढ़ा तो श्रीलंका के मैनेजमेंट ने इस पर लीपा पोती करके पर्दा डाल दिया। वैसे भारत और श्रीलंका के बीच सबसे बड़ा विवाद तब हुआ था, जब 16 अगस्त 2010 को श्रीलंका में खेले जा रहे वनडे मैच में भारत जीत से मात्र 1 रन दूर था और भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज़ वीरेंदर सहवाग को भी अपना शतक पूरा करने के लिए 1 ही रन की आवश्यकता थी, तब श्रीलंकाई खिलाड़ी तिलकरत्ने दिलशान ने वीरेंद्र सहवाग को शतक से रोकने के लिए गेंदबाज सूरज रणदीव को उकसाया। दिलशान ने रणदीव से नो बॉल डालने के लिए कहा, जिससे टीम इंडिया के विजयी रन पूरे हो जाएं और सहवाग का शतक पूरा न हो। रणदीव ने ऐसा ही किया, हालांकि सहवाग ने उस नो बॉल पर छक्का लगा दिया था लेकिन नो बॉल द्वारा भारत को जीत के लिए आवश्यक रन मिल जाने के कारण उनके छक्के को मान्यता नहीं दी गई और वो अपने 13वें शतक से चूक गए। बाद में जब इस विवाद ने तूल पकड़ा तो श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड को टीम के तत्कालीन मैनेजर अनुरा टेनेकूंन के नेतृत्व में जांच बैठानी पड़ी। जांच में सच्चाई सामने आ गई और श्रीलंकाई बोर्ड को टीम की गलती मानते हुए कार्रवाई भी करनी पड़ी। उन्होंने सूरज रणदीव पर 1 मैच के प्रतिबंध और तिलकरत्ने दिलशान पर जुर्माने की सजा सुनाई। इसके अलावा तत्कालीन कप्तान कुमार संगकारा को भी इस विवाद के लिए फटकार लगाई गई। हालांकि ये सजा कम थी, माना रणदीव अनुभवहीन थे लेकिन कम से कम अनुभवी दिलशान को तो कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए थी। श्रीलंका की टीम शुरू से ही विवादों में घिरती रही है, जब श्रीलंका ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रवेश किया तो उस समय अंपायर घरेलू देश के ही होते थे। पाकिस्तानी अंपायरों की तरह ही श्रीलंकाई अंपायरों के भी अपनी टीम के पक्ष में गलत निर्णय देने के अनेकों विवाद हुए। इसका अनुमान एक उदाहरण द्वारा ही लगाया जा सकता है। भारतीय टीम श्रीलंका के दौरे पर थी, एक मैच के दौरान भारतीय सलामी बल्लेबाज़ के श्रीकांत को श्रीलंकाई अंपायर ने गलत आउट दे दिया, जबकि वो नॉट आउट थे। भारतीय खिलाड़ियों द्वारा इस गलत निर्णय का विरोध जताने पर अंपायर को अपने निर्णय को पलटना पड़ा। अंपायर द्वारा निर्णय बदलने के बाद जब श्रीकांत अपने छोर पर बल्लेबाजी के लिए वापस आ रहे थे, तो श्रीलंकाई फील्डर ने स्टम्प बिखेर कर रन आउट की अपील कर दी। गेंद डेड होने के बाबजूद भी अंपायर ने फिर से पक्षपाती निर्णय लेकर श्रीकांत को आउट करार दे दिया। आखिरकार इसी तरह के विवादों से परेशान होकर ICC को वनडे में एक और टेस्ट मैचों में दोनों तटस्थ अंपायर चुनने का निर्णय लेना पड़ा। कुल मिलाकर देखा यही गया है कि श्रीलंकाई खिलाड़ी हार से बचने के लिए खेल भावना के विरुद्ध जाने में कतई संकोच नहीं करते हैं।