2009 में पाकिस्तान दौरे पर गई जिस टीम पर आतंकवादी हमला हुआ था, वह कोई और नहीं बल्कि श्रीलंका थी। वही श्रीलंका जो कुछ महीने पहले एक बार फिर उसी देश में जाकर टी20 मैच खेल कर आई, और पाकिस्तान में क्रिकेट बहाल करने के लिए क़दम आगे बढ़ाया। श्रीलंका की इस ज़िंदादिली को हर किसी ने सराहा था, और उन्होंने दूसरे देशों को भी पाकिस्तान में खेलने के लिए प्रेरित किया था। क्रिकेट भावना क्या होती है, ये बात श्रीलंका ने तब साबित भी किया थी, लेकिन दो महीनों के अंदर ही भारत का ये पड़ोसी देश खेल भावना को इस तरह तार तार कर देगा शायद ही किसी ने सोचा होगा। श्रीलंकाई टीम इस समय भारत दौरे पर है, जहां उनके लिए परिस्थितियां बेहद कठिन हैं। कोलकाता में तो श्रीलंका को बारिश और ख़राब रोशनी ने बचा लिया, पर नागपुर में विराट कोहली के दोहरे शतक और आर अश्विन की घातक गेंदबाज़ी के सामने साढ़े तीन दिन में ही इस टीम ने बिना लड़े घुटने टेक दिए। दिल्ली में भी विराट कोहली के प्राक्रम की मार इस टीम पर फिर पड़ी, नतीजा ये हुआ कि दूसरे दिन के पहले ही सत्र में टीम इंडिया ने 500 का भी आंकड़ा छू लिया और कप्तान कोहली एक बार फिर अपना दोहरा शतक पूरा कर चुके थे और इस बार अपने पहले तिहरे शतक के लिए भी सेट लग रहे थे। श्रीलंकाई गेंदबाज़ों की हालत दयनीय दिख रही थी, वह हताश थे और कोई भी रणनीति भारतीय बल्लेबाज़ों को ख़ास तौर से कोहली पर कारगर साबित नहीं हो रही थी। लेकिन लंच के ठीक बाद जो श्रीलंका ने किया उसने क्रिकेट जगत को न सिर्फ़ हैरान किया बल्कि टेस्ट क्रिकेट का ग़लत प्रचार भी किया और श्रीलंकाई क्रिकेट को भी शर्मसार कर दिया। दरअसल, श्रीलंकाई टीम लंच के बाद चेहरे पर मास्क लगाकर मैदान में उतरी और उन्हें देखकर सभी हैरान थे। उनका कहना था प्रदूषण की वजह से वे सहली से सांस नहीं ले पा रहे हैं, उन्होंने अंपायर से शिक़ायत की और फिर खेल क़रीब 15 मिनट के लिए रोक दिया गया। श्रीलंकाई कप्तान दिनेश चांडीमल तो मैदान से बाहर ही चले गए थे, फिर अंपायरों ने मैच रेफ़री डेविड बून से बात की, और डॉक्टरों से भी विचार विमर्श किया गया। जिसके बाद खेल को रोकने की कोई ठोस वजह न अंपायरों को लगी और न ही मैच रेफ़री को, भारतीय बल्लेबाज़ों को भी कोई परेशानी नहीं थी। लिहाज़ा अंपायर ने मैच फिर शुरू किया, इस ख़लल का नतीजा ये हुआ कि आर अश्विन की एकाग्रता भंग हुई और वह कैच आउट हो गए। इसके बाद क़रीब क़रीब हर एक या दो गेंदों के बीच में श्रीलंकाई कप्तान चांडीमल अंपायर से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते जा रहे थे और न खेलने की बात कर रहे थे। जिसका असर विराट कोहली पर भी साफ़ दिख रहा था और वह ग़ुस्से में थे, एक बार तो उन्होंने श्रीलंकाई खिलाड़ियों के इस रवैये से तंग आकर अपना बल्ला भी ज़मीन पर फेंक दिया। श्रीलंकाई खिलाड़ी एक एक कर मैदान से बाहर जा रहे थे, और हर गेंद पर अंपायर से शिक़ायत कर रहे चांडीमल को देखकर कोहली की लय भी बिगड़ गई और वह भी आउट हो गए। 243 रनों पर आउट होने वाले कोहली इससे पहले तिहरे शतक की ओर जाते दिख रहे थे, कोहली के आउट होने के बाद भी चांडीमल का ये रवैया जारी रहा। हद तो तब हो गई जब श्रीलंकाई कप्तान दिनेश चांडीमल अंपायरों से ये कहने लगे कि अब उनके पास 11 खिलाड़ी भी नहीं हैं जो मैदान पर आना चाहें, इसलिए वह सपोर्ट स्टाफ़ को जर्सी पहनाकर मैदान में बुलाना चाह रहे थे। इस पर टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री भी मैदान में आकर अंपायर से बात करने लगे और श्रीलंकाई कोच निक पोथा भी सपोर्ट स्टाफ़ को मैदान में उतारने के लिए अंपायरों पर दबाव डाल रहे थे। ये सब देखकर भारतीय कप्तान को काफ़ी ग़ुस्सा आ ग्या और उन्होंने पारी घोषित कर दी, ताकि श्रीलंकाई खिलाड़ियों को मैदान में रहने की परेशानी ही न हो। इस दौरान मैदान से लौटते हुए कप्तान चांडीमल और दूसरे खिलाड़ियों के चेहरे पर हंसी साफ़ देखी जा रही थी, जो शायद अपनी इस रणनीति की सफलता को दिखाना चाह रहे थे। पूरी दुनिया ने मास्क के पीछे ढकी एक ओछी रणनीति को साफ़ देखा, जिसने क्रिकेट भावना को शर्मसार किया। सवाल ये नहीं कि दिल्ली में स्मॉग था या नहीं ? सवाल ये भी नहीं कि क्या सिर्फ़ परेशानी श्रीलंकाई खिलाड़ियों को हो रही थी ? बल्कि सबसे बड़ा सवाल ये था कि सुबह के दो घंटे ज़्यादा धुंध थी, जबकि लंच के बाद 12 बजे के दौरान धूप भी खिल आई थी और धुंध भी कम होती जा रही थी। तो फिर श्रीलंकाई खिलाड़ियों ने ऐसा क्यों क्या ? और जब एक बार मैच रेफ़री या अंपायर ने हालात खेल के मुताबिक़ समझे, तो फिर इस तरह से बार बार हर गेंद पर उन्हें न खेलने की बात करना और मैदान से बाहर जाने के लिए कहना जायज़ था ? अगर श्रीलंका ने ऐसा सिर्फ़ विराट कोहली और भारत को एक विशाल स्कोर से वंचित करन के लिए किया, तो फिर खेल भावना के साथ ये बड़ा खिलवाड़ है। मेरी नज़र में आईसीसी को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और बीसीसीआई को भी इसकी शिक़ायत आईसीसी से करनी चाहिए। क्योंकि दिल्ली में जो हुआ वह सिर्फ़ श्रीलंकाई क्रिकेट की गिरती साख पर एक और बट्टा नहीं था बल्कि टेस्ट क्रिकेट के प्रचार पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है।