कपिल को कोलकाता टेस्ट से गावस्कर ने बाहर किया था, चयनकर्ताओं ने नहीं

IANS

टाइम्स ऑफ इंडिया में शुक्रवार को प्रकाशित समाचार में सुनील गावस्कर के हवाले से जो यह कहा गया कि 1984 की क्रिकेट सीरीज के दौरान कोलकाता टेस्ट के लिए कपिल को टीम से बाहर करने का फैसला चयनकर्ताओं का था, बिल्कुल गलत है। सनी के मुताबिक चयनकर्ताओं ने ऑफ स्पिनर पैंट पोकाक की गेंद पर घटिया स्ट्रोक खेलने के आरोप में कपिल को दंडित किया था लेकिन सच्चाई कुछ और है। सनी इस मामले में सच नहीं बोल रहे हैं। सच तो यह है कि कपिल को निजी खुन्नस में बाहर किया गया था और इसी के साथ बिना किसी चोट के लगातार सौ टेस्ट खेलने का इस हरफनमौला का अद्भुत रिकॉर्ड 99 पर ही अटक कर रह गया। सिर्फ कपिल ही नहीं संदीप पाटिल को भी बलि का बकरा बना कर टीम से चलता किया गया था। कपिल तो खैर पुनर्वापसी में सफल हो गए पर पाटिल के कैरियर पर ग्रहण लग गया और उसका असमय अंत हो गया। बताने की जरूरत नहीं कि इसका एकमात्र कारण बनारस में खेला गया वह दो दिनी डबल विकेट टूर्नामेंट था और जिसकी रूपरेखा मां को रामेश्वरम तीर्थयात्रा पर ले जाने के दौरान चेन्नई में सनी ने मेरे साथ बैठ कर बनायी थी। चेपक स्टेडियम के ड्रेसिंग रूम में और तब वहां यूपी के तत्कालीन कप्तान सुनील चतुर्वेदी भी मौजूद थे, जो गावस्कर की निरलान टीम की ओर से बुच्ची बाबू टूर्नामेंट का फाइनल खेल रहे थे। तब दस खिलाड़ियों के नाम तय हुए थे..जो फीस तय हुई थी उसमें सनी के बाद सबसे ज्यादा कपिल को मिलना तय किया गया और फैसलाबाद (पाकिस्तान) टेस्ट के दौरान घायल कपिल ने भी वहां यह बताए जाने पर कि इतनी राशि मिलनी है, खुशी से उछलते हुए सहमति दे दी थी। मैच के दौरान लेकिन आयोजन समिति के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नशे की झोंक में एक सीनियर क्रिकेटर को जब बताया कि सनी ने अलग से पैसा लिया था और पदमजी को न बताने को कहा था। बस वहीं भयानक बवाल हुआ। कपिल ने एयरपोर्ट जाते समय सनी को गिफ्ट में मिली कालीन तक गुस्से में बस से उतरवा दी थी। झगड़ा बढ़ता ही चला गया। तीन दिन बाद मुंबई में पहला टेस्ट खेला जाना था। वहां के दो अखबारों-डेली और मिड डे में यह खबर सुर्खियां बनी। वहां शिवरामकृष्णन की गुगली में फंस कर इंग्लैंड टीम जरूर हार गयी पर अगले दिल्ली टेस्ट में भारत को न सिर्फ हार मिली बल्कि उसने सीरीज भी 1-2 से गंवा दी। मामला इस कदर तूल पकड़ गया कि तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष एनकेपी साल्वे की अगुवाई में एक सदस्यीय जांच कमेटी बैठा दी गयी। दिल्ली टेस्ट के पूर्व सनी की पत्नी ने फोन किया मुझको और गुहार लगायी कि आयोजक वाराणसी क्रिकेट संघ की ओर से इस आशय का पत्र लेकर आइए कि सनी को अलग से भी राशि का भुगतान नहीं किया गया था। मैंने वह पत्र जब सौंपा तब होटल ताज हयात के अपने सुइट में गुस्से से भरे सनी ने कहा कि कपिल तो गया काम से और वह तीसरा टेस्ट नहीं खेलेगा। वही हुआ और कपिल के साथ पाटिल को भी खराब शाट खेलने का कारण बता कर बाहर कर दिया गया। बाद में साल्वे के सामने दोनों नागपुर में पेश हुए। वहां वह पत्र सौंपा सनी ने और तब उनकी जान छूटी। कोलकाता के इस टेस्ट में ही अजहर ने अपना टेस्ट सफर शतक के साथ शुरू किया था और फिर लगातार तीन शतकों का कीर्तिमान स्थापित किया। तकनीकी रूप से सही है कि टीम चयन में कप्तान को वोट का अधिकार नहीं था, लेकिन हर कोई जानता है कि सनी कितने ताकतवर कप्तान रहे हैं। सुधीर नायक और गुलाम परकार जैसे औसत दर्जे के मुंबईकर क्या राष्ट्रीय टीम की पात्रता रखते थे? कहते हैं न राजा नहीं, राजा का प्रताप बोलता है। बीसीसीआई के आफिस में वह पत्र जरूर होगा जिससे सनी की जान बची थी। --आईएएनएस

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