बिहार क्रिकेट और बिहार के युवा क्रिकेटरों के लिए नए साल का चौथा ही दिन ख़ुशियों की सौग़ात लेकर आया, 04 जनवरी 2018 काफ़ी यादगार दिन बन गया। 14 साल बाद बिहार एक बार फिर रणजी में खेल पाएगा और अब बिहार के खिलाड़ियों को किसी दूसरे राज्य में जाकर नहीं खेलना पड़ेगा। दरअसल, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने ये महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को रणजी ट्रॉफ़ी और दूसरे राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलने की इजाज़त दे दी। चीफ़ जस्टीस दीपक मिश्रा के तत्वाधान में ये साफ़ कर दिया गया कि बिहार जो पिछले 14 सालों से रणजी और राष्ट्रीय स्तर की दूसरी प्रतियोगिताओं में शिरकत नहीं कर रहा था, उसे अब बीसीसीआई को एक बार फिर पूर्ण सदस्यता देना होगा। इस पीठ में जस्टीस ए एम खान्विल्कर और जस्टीस डी वाई चंद्राचुड़ भी शामिल थे। उन्होंने कहा, ‘’कोर्ट के आदेश के बाद जिस बिहार क्रिकेट एसोसियेशन को मान्यता दी गई है, राज्य में क्रिकेट की बेहतरी के लिए वही संघ यानी बीसीए की ही देखरेख में क्रिकेट बहाल किया जाए।‘’ साथ ही साथ उन्होंने ये भी कहा कि सिर्फ़ बिहार क्रिकेट और खिलाड़ियों के भविष्य के लिए बीसीए को कमान दिया जा रहा है। बिहार के लिए ये कितना गौरवशाली पल है इसके लिए थोड़ा इतिहास भी जान लेते हैं, 1935 में बिहार क्रिकेट संघ की स्थापना हुई थी जो 2004 तक चली। बिहार ने रणजी ट्रॉफ़ी में अपना आख़िरी मुक़ाबला त्रिपुरा के ख़िलाफ़ 25 से 28 दिसंबर 2003 को जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में खेला था, प्लेट ग्रुप का ये मुक़ाबला ड्रॉ रहा था। इसके बाद 15 अगस्त 2004 को एक तिहाई बहुमत के आधार पर बिहार क्रिकेट संघ का नाम बदल कर झारखंड राज्य क्रिकेट संघ (JSCA) कर दिया गया और इस तरह झारखंड को पूर्ण सदस्यता मिल गई थी। इसके बाद बिहार क्रिकेट संघ भंग हो गया और बिहार के युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो चुका था। बिहार के पूर्व क्रिकेटर्स और खेल से संबंध रखने वालों ने इसके ख़िलाफ़ कोर्ट का दरवाज़ा तक खटखटाया, जिसके बाद 27 सितंबर 2008 को बीसीसीआई ने बिहार को एसोसिएट मेंबर घोषित कर दिया। हालांकि ये आधी ख़ुशी थी क्योंकि न्याय बिहार को नहीं मिला था। एसोसिएट मेंबर होने के नाते बिहार को न तो बीसीसीआई में वोटिंग के अधिकार थे और न ही राज्य के युवा क्रिकेटरों का भविष्य सुनहरा था, पूर्ण सदस्यता न होने की वजह से बिहार रणजी मैचों में नहीं खेल सकता था और न ही बिहार में किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मैचों की मेज़बानी का मौक़ा था। जबकि इस राज्य से महेंद्र सिंह धोनी से लेकर सबा करीम, कीर्ति आज़ाद, सुबोर्तो बनर्जी जैसे कई खिलाड़ियों ने टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व किया है। बिहार में क्रिकेट की सबसे बड़ी बाधा है खेल के साथ खिलवाड़, यहां एक नहीं तीन तीन क्रिकेट संघ बने हुए हैं। एक जो शुरू से है वह है बिहार क्रिकेट संघ (BCA) जिसके अध्यक्ष थे बिहार के पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी लेकिन लोढ़ा समिती की सिफ़ारिश लागू होने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा और अभी बीसीए के वर्किंग समिती के अध्यक्ष पद पर हैं गोपाल बोहरा। दूसरा है क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ बिहार (CAB) जिसके सचिव हैं आदित्य वर्मा जिन्होंने बीसीसीआई में फैले भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की थी और फिर उन्हीं की याचिका पर लोढ़ा समिती का गठन हुआ, जिसके बाद बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर से लेकर बीसीसीआई के पूर्व सचिव अजय शिर्के को सुप्रीम कोर्ट ने बर्ख़ास्त कर दिया। ये प्राशसनिक बदलाव भी आदित्य वर्मा की ही देन है उन्होंने ही इस बात को भी संज्ञान में लाया था कि एक राज्य में एक से ज़्यादा बोर्ड कैसे हो सकते हैं वह भी पूर्ण सदस्यता वाले जबकि बिहार जैसे राज्य में क्रिकेट है ही नहीं। बिहार क्रिकेट में जो तीसरा संगठन है उसका नाम है एसोसिएशन ऑफ़ बिहार क्रिकेट (ABC) जिसके अध्यक्ष पूर्व भारतीय क्रिकेटर और बीजेपी सांसद कीर्ति आज़ाद थे, हालांकि अब उन्होंने इस संगठन से ख़ुद को अलग कर लिया है। अब सवाल ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद बिहार क्रिकेट के लिए पूरी तरह तैयार है ? क्या 14 सालों से क्रिकेट के न रहने की वजह से मैदान और खिलाड़ियों के बीच का बड़ा अंतर जल्द भर पाएगा। बहरहाल, भले ही वक़्त लगे लेकिन 14 सालों के इस वनवास का ख़त्म होना बिहार क्रिकेट और खिलाड़ियों के लिए बेहद शानदार है। बिहार क्रिकेट से जुड़ा हर कोई शख़्स सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को नए साल की सौग़ात के तौर पर देख रहा है और तहे दिल से भारत के सर्वोच्च न्यायालय का शुक्रिया अदा कर रहा है।