टीम इंडिया इस वक़्त दक्षिण अफ़्रीका में है जहां 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़ में कोहली एंड कंपनी एक मैच पहले ही सीरीज़ 0-2 से गंवा चुकी है। विराट कोहली के कप्तान बनने के बाद से भारत की ये पहली टेस्ट सीरीज़ हार है, साथ ही साथ ये पहला मौक़ा है जब कोहली के नेतृत्व में टीम इंडिया ने एक ही सीरीज़ में 2 टेस्ट हारे हों और वह भी लगातार। लगातार 9 टेस्ट सीरीज़ जीतने वाली टीम इंडिया और विराट कोहली की कप्तानी में पिछले 10 टेस्ट सीरीज़ में न हारने वाला भारत अचानक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगा, शायद ही किसी ने सोचा होगा। आईसीसी रैंकिंग में मौजूदा नंबर-1 के सामने अब अगली चुनौती है 24 जनवरी से सीरीज़ का तीसरा और आख़िरी टेस्ट मैच, जहां कोहली व्हाइटवॉश से बचना चाहेंगे। अगर भारत 0-3 से हारता है तो कोहली की कप्तानी में ये पहला व्हाइटवॉश होगा और दक्षिण अफ़्रीकी सरज़मीं पर 2001 के बाद दूसरा। इतना ही नहीं तीसरा टेस्ट हारते ही टीम इंडिया के हाथों से नंबर-1 रैंकिंग भी खिसक जाएगी और टेस्ट के बेस्ट दक्षिण अफ़्रीका बन जाएंगे। हालांकि हर एक भारतीय प्रशंसक यही चाहेगा कि टीम इंडिया जोहांसबर्ग टेस्ट जीते और वापस पटरी पर भी लौटे। लेकिन अगर आपको लगता है कि ये टीम इंडिया के लिए बस एक बुरी सीरीज़ की तरह है तो ज़रा दिल को मज़बूत कर लीजिए और अब इस तरह की हारों के लिए ख़ुद को तैयार भी कर लीजिए। ऐसा इसलिए कि टीम इंडिया और विराट कोहली का अपने घर में खेलते हुए जीत का हनीमून पीरियड ख़त्म हो गया है, टीम का असली चरित्र अब इसी तरह कठिन परिस्थतियों में 'टेस्ट' किया जाएगा। दक्षिण अफ़्रीका दौरे के बाद अगर बात टेस्ट मैचों की करें तो वैसे तो 14 जून से टीम इंडिया को बैंगलोर में अफ़ग़ानिस्तान की एकमात्र टेस्ट मैच में मेज़बानी करनी है, जो टेस्ट स्टेटस मिलने के बाद अफ़ग़ानिस्तान का पहला टेस्ट होगा। लिहाज़ा भारत उसमें अच्छा करेगा इसकी उम्मीद ज़रूर की जा सकती है लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के हालिया फ़ॉर्म और उनके स्पिन गेंदबाज़ ख़ास तौर से राशिद ख़ान को देखते हुए जीत की गारंटी भी नहीं की जा सकती है। टीम इंडिया की विदेशी सरज़मीं पर जो हालत एक बार फिर उजागर हुई उसे देखते हुए इस साल की पहली ख़ुशी जून में होने वाली इसी सीरीज़ में ही नज़र आ सकती है। क्योंकि जुलाई में टीम इंडिया अपने सबसे कठिन दौरे के लिए इंग्लैंड रवाना होगी, जहां भारत को 5 टेस्ट मैच खेलने हैं। दक्षिण अफ़्रीका में जो तस्वीर दिखी है, वह तो बस एक ट्रेलर ही समझिए। क्योंकि इंग्लिश हालातों में भारत की हालत और भी ख़ौफ़नाक हुई तो हैरानी नहीं होगी। पिछले दो ढाई सालों से टीम इंडिया के शानदार प्रदर्शन ने एक उम्मीद तो जगाई थी कि अब हम सही में नंबर-1 हैं और कहीं भी जाकर बेहतरीन कर सकते हैं। यही वजह थी कि विराट कोहली और रवि शास्त्री ने बीसीसीआई के उस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था जिसमें बोर्ड ने टीम मैनेजमेंट से पूछा था कि क्या दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ टेस्ट में चयनित खिलाड़ियों को पहले ही प्रोटियाज़ भेज दिया जाए ताकि वहां कि परिस्थितियों से वह सभी वाक़िफ़ हो सकें। लेकिन अतिआत्मविश्वास से लबरेज़ और घमंड में चूर कोहली एंड कंपनी ने ख़ुद को इसके लिए तैयार समझा, जिसका नतीजा हम सभी के सामने है। इंग्लैंड में 5 टेस्ट मैचों की सीरीज़ के बाद भारत को थोड़ी राहत और आंकड़ें को सुधारने का मौक़ा अक्तूबर में मिल सकता है जब 3 टेस्ट मैचों के लिए वेस्टइंडीज़ क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आएगी। लेकिन ये राहत डेढ़ महीने तक ही सीमित होगी क्योंकि फिर नवंबर में भारत एक और इम्तिहान के लिए ऑस्ट्रेलिया रवाना होगा जहां साल के आख़िर में 4 टेस्ट मैच खेले जाएंगे। मतलब साफ़ है अपने घर में खेलते हुए कोहली एंड कंपनी ने भले ही सफलता के कई परचम लहराए थे और लगातार 9 सीरीज़ जीतने के वर्ल्ड रिकॉर्ड की भी बराबरी कर ली थी। लेकिन असली चरित्र तो साल 2018 तय करेगा, जहां पहले इम्तिहान में तो टीम इंडिया फिसड्डी ही साबित हुई है, और रैंकिंग में भी बस काग़ज़ पर ही शेर दिखे। अब देखना है कि प्रोटियाज़ में मिली इस हार से भारतीय क्रिकेट टीम कुछ सबक़ लेगी या फिर हमेशा की तरह घर में शेर और बाहर ढेर का तमग़ा ही सिर पर बरक़रार रहेगा। यही वजह है कि मुझे ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि इस साल इन विराट हारों के लिए ख़ुद को तैयार रखिए, क्योंकि उम्मीदों को झटका देना भारतीय क्रिकेट टीम की फ़ितरत में शुमार है।