उन तकनीक पर एक नज़र जिसने क्रिकेट को काफ़ी बदल दिया है

इस बात में कोई शक नहीं है कि आधुनिक तकनीक अब क्रिकेट का अहम हिस्सा बन चुका है। क्रिकेट का इतिहास क़रीब 140 साल पुराना है, और इस दौरान दुनिया में काफ़ी तकनीकी तरक्की हुई है। साल 1922 में सिडनी के मैदान में हुए क्रिकेट मैच का पहली बार रेडियो प्रसारण किया गया था। इसके अलावा साल 1938 में पहली बार एक क्रिकेट मैच का टेलीविजन पर दिखाया गया था। उसके बाद हर अंतरराष्ट्रीय मैच का पूरा प्रसारण टीवी पर किया जाने लगा। धीरे-धीरे ही सही लेकिन तकनीक का इस्तेमाल क्रिकेट में बढ़ने लगा। रेडियो कॉमेंट्री की तरफ़ लोगों की दीवानगी बढ़ने लगी। 20वीं सदी के आख़िरी दशक आते-आते तीरसे अंपायर का आगमन हुआ। प्रसारण की गुणवत्ता बेहतर होने लगी ताकि रिप्ले को अच्छे ढंग से दिखाया जाने लगे। फिर क्रिकेट में व्यापत स्तर पर कैमरे का इस्तेमाल होने लगा। जैसे स्पीड गन, स्पाइडर कैम, डीआरएस, स्निको, हॉटस्पॉट इत्यादि। आइये हम एक नज़र डालते हैं उन तकनीक पर जिसने कुछ सालों में क्रिकेट को बदल कर रख दिया है।

स्पाइडरकैम

स्पाइडरकैम एक तरह का कैमरा होता है स्टेडियम की दो छतों के बीच तार से टंगा होता है जो मैच का 3-डी तस्वीर दिखाता है। इस तरह के कैमरे से मैदान की पूरी और विस्तृत जानकारी मिलती है। ये गेंदबाज़ों के हर कदम पर नज़र रखता है और उसकी हर चाल को रिकॉर्ड कर सकता है। स्पाइडरकैम से प्रसारण करने वाले चैनल को काफ़ी मदद मिलती और किसी भी जानकारी का पता चल सकता है। आज हर मैच में स्पाइडरकैम का इस्तेमाल ज़रूर होता है।

स्टंप कैमरा

आज के दौर में हॉक आई व्यू का चलन काफ़ी बढ़ गया है और इस चीज़ पर भी ध्यान दिया जाता है कि मिडिल स्टंप से मैच कैसा दिखता है। स्टंप कैमरे से तीसरे अंपयार को ये पता लगाने में मदद मिलती है कि रन आउट या स्टंपिंग हुई है या नहीं, बल्लेबाज़ क्रीज़ से बाहर है या अंदर। स्टंप कैमरे से व्यू काफ़ी अच्छा और अलग तरीके से आता है, इससे मैच में रोमांच पैदा होता है।

गन (स्पीडोमीटर)

हम हमेशा पुराने तेज़ गेंदबाज़ों की बात करते हैं जो अपने दौर के चैंपियन रहे हैं और किस तरह से उन्होंने दुनिया के महान बल्लेबाज़ों को आउट किया है। डेनिस लिली, जेफ़ थॉमसन जैसे तेज़ गेंदबाज़ों ने विश्व क्रिकेट में अपना दबदबा कायम किया था। क्रिकेट विशेषज्ञ कहते हैं कि उनकी गेंद काफ़ी तेज़ थी और किसी बल्लेबाज़ को तेज़ गेंद का सामना करना मुश्किल था। हांलाकि तकनीक की कमी की वजह से ये बात कोई नहीं जानता कि लिली और थॉम्सन की स्पीड कितनी थी और उस ज़माने में सबसे तेज़ गेंदबाज़ी कौन करता था। फिर जैसे ही क्रिकेट में स्पीड गन को शामिल किया गया, तब ये पता लगने लगा कि कौन सा गेंदबाज़ कितनी गति से गेंदबाज़ी करता है और कौन सबसे तेज़ गेंद फेंकता है।

बॉल ट्रैकिंग (हॉक आई)

बॉल ट्रैकिंग एक ऐसी तकनीक है जिससे पता चलता है कि बॉल किस दिशा से होकर बल्लेबाज़ या स्टंप तक पहुंची है। अगर दूसरी भाषा में कहें तो इस तकनीक से गेंद के पूरे सफ़र का ब्योरा मिलता है। इससे ये भी जानकारी मिलती है कि गेंदबाज़ किस तरह से गेंद फेंक रहा है और बल्लेबाज़ किस दिशा में गेंद को पहुंचा रहा है। इस तकनीक से स्विंग/सीम, स्पिन, बाउंस और कई अन्य तरह की बातों का पता चलता है। LBW का पता लगाने में इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। डीआरएस में इस तकनीक का अहम योगदान होता है।

स्निको (स्निकोमीटर) और हॉटस्पॉट

स्निकोमीटर एक तरह का संवेदनशील माइक्रोफ़ोन होता है जिससे ध्वनि में बदलाव का पदला चलता है। इससे ये जानकारी मिलती है कि गेंद बल्ले, पैड या शरीर से लगी है या नहीं। इस तकनीक से तीसरे अंपयार को ये पता लगाने में मदद मिली है कि बल्लेबाज़ कैच आउट या एलबीडब्ल्यू का शिकार हुआ है या नहीं। डीआरएस में इस तकनीक का ख़ूब इस्तेमाल किया जाता है। एक एख इंफ्रारेड तकनीक है जिससे इस तरह की तस्वीर निकाली जाती है और पता लगाया जाता है कि गेंद किनारों को छू कर निकली है या नहीं। ये एक ज़रूरी मगर बेहद महंगी तकनीक है। कई बात स्निको तकनीक काम नहीं करती जब बल्लेबाज़ के आस-पास शोर काफ़ी ज़्यादा होता है।

वैगन व्हील और पिच मैप

ये 2 ऐसी तकनीक है जिसकी सहारे मैच की रणनीती तैयार करने में मदद मिलती है। वैगन व्हील एक ऐसी तकनीक है जिससे ये पता लगाया जा सकता है कि कोई बल्लेबाज़ ज़्यादा शॉट किस दिशा में लगाता है। कोई बल्लेबाज़ कहां और कैसे चौके-छक्के जड़ता है और कहां वो सिंगल या 2 रन लेता है। इससे बल्लेबाज़ के ख़िलाफ़ फ़ील्डिंग सेट करने में मदद मिलती है। इससे किसी भी टीम को अपने प्रदर्शन सुधारने में मदद मिलती है।

LED गिल्लियां

स्टंप और गिल्लियों में वक़्त के साथ कई बदलाव किए गए हैं। स्टंप में कैमरे लगाए गए जिससे स्टंप व्यू मिल सके। लेकिन आज के दौर में गिल्लियां भी आधुनिक हो गईं हैं। गिल्लियों में एलईडी लाइट लगी होती है जिससे ये पता लगाया जा सके कि गिल्लियां स्थिर हैं या हिल गई हैं। इससे रन आउट या स्टंप आउट या हिट विकेट का पता लगाने में मदद मिलती है। इस तरह कि गिल्लियों में एक प्रकार का सेंसर लगा होता है जो किसी प्रकार के बदलाव के बाद जल उठता है। अगर गिल्लियां स्थिर हैं जो स्टंप से लाइट नहीं जलेगी, लेकिन अगर उसे हिलाने की कोशिश की गई तो बत्ती जल उठेगी।

कुछ अन्य तकनीक

सुपर स्लो-मो: ये ज़्यादा कुछ नहीं बस एक आधुनिक कैमरा है जो किसी भी वीडियो को स्लो मोशन में रिकॉर्ड कर सकता है। ये इस बात का पता लगाने में मदद करता है कि कोई भी घटना किस प्रकार से घटी है। कुछ चीज़ों की सही जानकारी स्लो मोशन में ही मिलती है। मिसाल के तौर पर दक्षिण अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया के बीच हाल में हुए टेस्ट मैच में बॉल टैंपरिंग की घटना की बात कर लें। इस मैच में कंगारू टीम के कैमरन बैनक्राफ़्ट गेंद को घिसने के लिए सैंड पेपर का इस्तेमाल करते हुए पकड़े गए। कैमरे में ये साफ़ दिख रहा था कि वो किस तरह सैंडपेपर को पॉकेट और अपने पैजामे में में वापस रख रहे थे। बॉलिंग मशीन: ये एक ऐसी मशीन होती है जो किसी भी तरह के गेंद को एक निश्चित गति से फेंक सकती है। इससे किसी भी बल्लेबाज़ को प्रैक्टिस करने में मदद मिलती है। ये मशीन गेंद को किसी भी तरह से फेंक सकता है। बॉल आरपीएम: इस तकनीक का इस्तेमाल ये पता लगाने के लिए किया जाता है कि कोई गेंद कितनी बार घूमी है। इसका इस्तेमाल अकसर स्पिन गेंदबाज़ी में किया जाता है जिससे सटीक जानकारी मिल सके। लेखक- साहिल जैन अनुवादक- शारिक़ुल होदा

Edited by Staff Editor
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