आईपीएल आने के बाद फीकी पड़ रही है काउंटी क्रिकेट की चमक !

भारतीय क्रिकेट के लिए साल 2018 काफी महत्त्वपूर्ण है। भारत को इस साल विदेशी सरजमीं पर खुद को साबित करना है। साथ ही टीम के कप्तान विराट कोहली के पास ‘सिर्फ घरेलू मैदान का शेर’ का तमगा हटाने का मौका है। आईपीएल खत्म होने के बाद सभी की निगाहें उसके पहले विदेशी दौरे पर इंग्लैंड के खिलाफ प्रदर्शन पर टिकी हैं। इसकी तैयारी के लिए कई खिलाड़ियों ने काउंटी में खेलने को तरजीह दे रखी है। यह सही भी है लेकिन, आईपीएल के आने से भारतीय क्रिकेटरों के अलावा विदेशी टीमों ने काउंटी में खेलना या तो कम कर दिया या बंद ही कर दिया। सवाल है कि एशियाई देश अगर इस टूर्नामेंट से किनारा कर रहे हैं तो इसकी वजह क्या है? दरअसल, काउंटी क्रिकेट में खेलना एशियाई देशों के लिए काफी लाभकारी रहा है। कई भारतीय दिग्गज इस टूर्नामेंट का हिस्सा रहे हैं और अपने प्रदर्शन को सुधारा। हालांकि 2008 में आईपीएल के आने से भारतीय तो दूर विदेशी खिलाड़ी भी काउंटी को नजरअंदाज कर इस लीग का हिस्सा बनने को लालायित दिखते हैं। वेस्टइंडीज से लेकर श्रीलंका तक के दिग्गज इस प्रीमियर लीग के चक्कर में अपने राष्ट्रीय टीम से किनारा कर लेते हैं। लेकिन यह कितना सही और खेल के इस प्रारुप में टिके रहने के लिए लाभकारी है, इसका अंदाजा वेस्ट इंडीज टीम के बदतर प्रदर्शन से लगा सकते हैं।

एशियाई देशों को क्यों खेलना चाहिए काउंटी ?

एक जमाना था जब विदेशी दौरे से पहले एशियाई देशों के क्रिकेट बोर्ड अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार और उनके खेल में पैनापन लाने के लिए काउंटी क्रिकेट का सहारा लेते थे। 2006 का दौर याद हो तो उस समय भारत के पूर्व तेज गेंदबाज जहीर खान चोट के कारण टीम से बाहर चल रहे थे। उनके प्रदर्शन में निरंतरता की कमी के कारण उन्हें टीम में जगह नहीं मिल रही थी। तब उन्होंने वस्टरशायर की टीम के साथ काउंटी क्रिकेट खेली और उनकी गेंदबाजी में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिला था। उसी समय जहीर ने अपने रनअुप में कमी लाए थे और लाईन-लेंथ भी ठीक की। यह तो एक उदाहरण है, ऐसे कई मौके आए जब भारतीय क्रिकेटरों ने काउंटी के सहारे अपने खेल को बेहतर किया। भारत के इशांत शर्मा और चेतेश्वर पुजारा भी अभी काउंटी के सहारे अपने खेल को सुधारने में लगे हैं। एशियाई देशों के क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए काउंटी में खेलना एक अलग ही अहसास होता है। उन्हें सीखने के लिए यहां काफी कुछ मिलता है। तेज और उछाल भरी पिच पर गेंदबाजों व बल्लेबाजों दोनों को नए तकनीक का इस्तेमाल करने का मौका मिलता है। कपिल देव ने भी 1980 के दौर में काउंटी खेल कर अपने प्रदर्शन को ठीक किया था। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और दीवार के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ ने भी काउंटी में हाथ आजमाया था।

आईपीएल ने कम किया काउंटी का क्रेज़

2008 में आईपीएल शुरू हुआ और दुनिया भर के क्रिकेटरों की नजरें इस प्रीमियर लीग में खेल कर धन बटोरने पर लग गई। दनादन क्रिकेट के चक्कर में खिलाड़ियों ने 90 ओवर के खेल को खेलने को तरजीह देनी बंद कर दी। आलम है कि दुनिया में अब बस कुछ ही खिलाड़ी हैं जो पूरा दिन पिच पर बिताने में सक्षम हैं। तकनीक को भुलाकर क्रिकेटरों ने आड़ा तिरछा शॉट लगाना भी शुरू कर दिया। टेस्ट मैच तीन दिन में खत्म होने लगे। वेस्टइंडीज और श्रीलंका जैसी दिग्गज टीमों के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे। समय भी इसमें एक फैक्टर है, आईपीएल मार्च-मई के महीने में खेला जाता है और काउंटी भी मार्च से अगस्त के बीच ही खेला जाता है। यही कारण है कि कई खिलाड़ी चाह कर भी काउंटी में नहीं खेल पाते।

भारतीय क्रिकेटरों के लिए क्यों जरूरी है काउंटी

अक्सर देखने में आता है कि भारतीय टीम विदेशी सरजमीं पर या तो गेंदबाजी या फिर बल्लेबाजी, दोनों में से किसी एक मोर्चे पर नाकाम साबित होती है। प्रशंसक भी इसे खिलाड़ियों के फॉर्म या अनुभव से जोड़ते हैं, झल्लाते हैं और फिर चुप हो जाते हैं। अगर गौर से देखें तो भारत के पास इंग्लैंड जैसे देशों से मिलते-जुलते कम ही पिच हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में जब क्रिकेट स्टेडियम बना तो एक उम्मीद जगी कि यहां खेल कर भारतीय खिलाड़ी खुद को युरोपीय टूर के लिए तैयार करेंगे लेकिन एक पिच से क्या होने वाला है? काउंटी में खेल कर भारतीय गेंदबाज गति और उछाल में समन्वय बना सकते हैं साथ ही बल्लेबाज तेजी से उछाल लेती गेंद और शॉर्ट पिच को खेलने में महिर बन सकते हैं। अनुकुलन भी एक बड़ा मसला है। कड़ाके की ठंड में तेजी से खुद को ढाल पाना भारतीय खिलाड़ियों के लिए आसान नहीं होता।

टेस्ट खिलाड़ियों के लिए मक्का है काउंटी

टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों के लिए काउंटी मक्का की तरह है। यहां खेलकर बल्लेबाज खुद को 90 ओवर तक क्रीज पर डटे रहने के काबिल बना सकता है। इसका कारण है कि काउंटी मैचों के दौरान उन्हें अलग-अलग पिचों पर खेलने का अनुभव मिलता है। वे दुनिया के बेहतरीन मैदान पर उम्दा गेंदबाजों का सामना करते हैं जो उन्हें किसी भी हालात में जमे रहने का पाठ पढ़ाते हैं। टी-20 के दौर में तो यह और भी खास हो जाता है क्योंकि क्रिकेट के इस प्रारूप में सिर्फ धुआंधार बल्लेबाजी के लिए प्रेरित किया जाता है। वहीं टेस्ट में रन बनाने से ज़्यादा गेंदबाजों को जीत के लिए 20 विकेट चटकाने अहम होते हैं और बल्लेबाजों को विकेट के सामने खड़ा रहना होता है।

गावस्कर ने भी लिया था काउंटी का सहारा

60 के दशक में टाइगर पटौदी तो 70 के दशक में फारूख इंजीनियर, बिशन सिंह बेदी, वेंकटराघवन, दिलीप दोषी जैसे दिग्गज काउंटी क्रिकेट में खेल चुके हैं। सुनील गावस्कर, कपिल देव, रवि शास्त्री और मोहम्मद अजहरूद्दीन भी खेल को संवारने के लिए काउंटी का हिस्सा रहे चुके हैं। आईपीएल आने से पहले सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण ने काउंटी खेलकर विदेशी पिचों पर कमाल किया।

Edited by Staff Editor
Sportskeeda logo
Close menu
WWE
WWE
NBA
NBA
NFL
NFL
MMA
MMA
Tennis
Tennis
NHL
NHL
Golf
Golf
MLB
MLB
Soccer
Soccer
F1
F1
WNBA
WNBA
More
More
bell-icon Manage notifications