जब 5 जनवरी, 1971 को पहले अंतराष्ट्रीय वनडे मैच के लिए ऑस्ट्रेलियाई टीम इंग्लैंड के खिलाफ प्रतिष्ठित मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में उतरी, तो शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि वनडे प्रारूप इस खेल में एक नई क्रांति लाएगा। जबकि शुरुआती वनडे मैच 40 ओवरों का था, क्रिकेट का यह प्रारूप धीरे धीरे विकसित हुआ और आज यह क्रिकेट का सबसे लोकप्रिय प्रारूप है। हालाँकि, इस बात का अफ़सोस है कि कई महान क्रिकेट वनडे प्रारूप में नहीं खेल सके। इस लेख में, हम ऐसे खिलाड़ियों के बारे में जानेंगे जो महान खिलाड़ी होने के बावजूद शायद गलत काल-खंड में पैदा हुए और बहुत कम वनडे मैच खेल सके। इसके अलावा इस फेहरिस्त में उन खिलाड़ियों को भी शामिल किया गया है जो भारी प्रतिस्पर्धा के चलते अपनी वनडे टीम में जगह नहीं बना पाए और अगर इन खिलाड़ियों को मौका मिलता तो ये वनडे प्रारूप के महान खिलाड़ी बन कर उभर सकते थे:
सलामी बल्लेबाज़
1960 के दशक और 1970 के दशक में भारतीय टीम के कुछ विश्व-स्तरीय क्रिकेटरों में से, फारूक इंजीनियर भारतीय टीम के एक अहम खिलाड़ी थे। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ ने अपने टेस्ट कैरियर में कई रिकॉर्ड बनाए है। अपने बेहतरीन समय में सीमित ओवरों की अनुपस्थिति के कारण वह एक टेस्ट खिलाड़ी बन कर रह गए। हालाँकि, अपने करियर के अंत में उन्हें पांच वनडे खेलने का मौका मिला। बेवन कांगडन न्यूज़ीलैंड के प्रथम महान कप्तान थे। 1970 के दशक के शुरुआती चरण के दौरान उनके मजबूत नेतृत्व कौशल ने किवी टीम को विश्व-स्तरीय टीमों की फेहरिस्त में ला खड़ा किया। अपनी बेजोड़ तकनीक और दृढ़ता के लिए जाने जाते इस बल्लेबाज़ ने अपने टेस्ट करियर में 7 शतक और 19 अर्धशतक लगाए। अपने क्रिकेट करियर के आखिरी दौर में उन्हें वनडे खेलने का मौका मिला और उन्होंने 11 वनडे मैचों में एक शतक और दो अर्धशतक के साथ 56.33 की बेहतरीन औसत से रन बनाए हैं।
मध्य-क्रम
सर्वकालीन महानतम वनडे बल्लेबाज़ों पर जब हम विचार करते हैं तो सर विव रिचर्ड्स के बाद पाकिस्तान के मध्य-क्रम के बल्लेबाज़ जहीर अब्बास का नाम आता है। सीमित ओवरों के प्रारूप के प्रारंभिक वर्षों में वह सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ रहे हैं। इस महान पाकिस्तानी क्रिकेटर ने 62 एकदिवसीय मैचों में 47.62 के प्रभावशाली औसत और 84.80 की उल्लेखनीय स्ट्राइक रेट पर 2572 रन बनाए हैं। हालाँकि उनको वनडे क्रिकेट खेलने का मौका अपने क्रिकेट करियर के आखिरी समय में मिला। अगर उन्हें और ज़्यादा वनडे खेलने का मौका मिलता तो वह कई रिकार्ड कायम कर सकते थे। ब्रैड हॉज का अंतरराष्ट्रीय करियर सिर्फ 6 टेस्ट, 25 एकदिवसीय और 15 टी-20 तक ही सीमित होकर रह गया। तकनीकी रूप से कुशल दाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ को ऑस्ट्रेलिआई टीम में अच्छे बल्लेबाज़ों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण बहुत कम खेलने का मौका मिला। 2001 में ऑस्ट्रेलिया 'ए' के लिए खेलने वाले डेविड हसी को अच्छे प्रदर्शन के बावजूद अपनी राष्ट्रीय टीम के लिए बहुत कम खेलने का मौका मिला। उन्होंने सिर्फ 69 वनडे खेले हैं और 90.70 की अच्छी स्ट्राइक-रेट से रन बनाए हैं।
ऑलराउंडर
अगर किसी को सभी प्रारूपों में बल्ले और गेंद दोनों से अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी की बात करनी है सबसे पहला नाम सर गैरी सोबर्स का होगा। उन्हें टेस्ट में दुनिया का सबसे महान ऑलराउंडर माना जाता है। चाहे वो गेंदबाज़ी या बल्लेबाज़ी उन्होंने दोनों ही में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। अफ़सोस की बात यह हैं कि वेस्टइंडीज़ के इस महान आलराउंडर को सिर्फ एक ही वनडे में खेलने का मौका मिला जब उनका करियर अंतिम पड़ाव में पहुंच चुका था। ऑलराउंडर रयान टेन डोशेच, जो उस समय तक लगभग 40 साल की उम्र के रहे होंगे जब वनडे प्रारूप में क्रिकेट में शामिल किया गया। अपने करियर के अंतिम पड़ाव में उन्होंने वनडे में 1000 के लगभग रन बनाए और उनका औसत (67) शानदार रहा था।
गेंदबाज़
जब अमित मिश्रा ने 2001/02 में एक किशोर के रूप में अपनी भारतीय 'ए' टीम में शामिल हुए थे। उस समय भारत के महान स्पिनर अनिल कुंबले अपने सर्वश्रेष्ठ दौर से गुज़र रहे थे। इसके बाद आये स्पिनर हरभजन सिंह और रविचंद्रन अश्विन और फिर रविंद्र जडेजा के लगातार अच्छे प्रदर्शन की वजह से अमित मिश्रा क ज़्यादा वनडे खेलने का मौका नहीं मिला। लेकिन अपने खेले 36 वनडे मैचों में उन्होंने 23.60 की बेहतरीन औसत पर 64 विकेट लिए हैं। बर्ष 1996/97 में अपने अंतराष्ट्रीय करियर की शुरुआत करने वाले पाकिस्तानी तेज गेंदबाज़ मोहम्मद जहिद ने अपने पहले ही टेस्ट में 11 विकटें लेकर तहलका मचा दिया था।हालांकि, वसीम अकरम, वकार यूनिस और शोएब अख्तर की उपस्थिति के कारण उन्हें वनडे में बहुत कम खेलने का मौका मिला। 2002 में क्रिकेट संन्यास लेने वाले इस तेज़ गेंदबाज़ ने सिर्फ 11 एकदिवसीय मैचों में हिस्सा लिया। डग बोलिंगर ने ऑस्ट्रेलिया की तरफ से 39 मैचों में शिरकत की और 23.90 की उत्कृष्ट औसत और 4.57 की किफायती इकोनॉमी रेट से 62 विकेट हासिल किए। ग्लेन मैकग्रा और ब्रेट ली जैसे महान गेंदबाज़ों की उपस्थिति में बाएं हाथ के सीमर को ज़्यादा मैच खेलना का मौका नहीं मिल पाया और उसके बाद मिशेल स्टार्क जैसे युवा गेंदबाज़ की वजह से टीम में उनकी वापसी की उम्मीद भी जाती रही। बोलिंगर ने इस साल की शुरुआत में क्रिकेट के सभी प्रारूपों से अपने संन्यास की घोषणा की थी। त्रिनिदाद के गेंदबाज़ टोनी ग्रे ने अपनी टीम के लिए सिर्फ 25 एकदिवसीय मैचों में शिरकत की और 18.97 की औसत और 3.94 की शानदार इकोनॉमी रेट से 44 विकेट हासिल किये। ग्रे को विंडीज़ टीम में जोएल गार्नर, माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल, कोर्टनी वॉल्श और कर्टली एम्ब्रोस जैसे बेहतरीन गेंदबाज़ों की मौजूदगी की वजह से अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा मौका नहीं मिला।
12वें खिलाड़ी
इंग्लैंड के डेरेक रैंडल इस फेहरिस्त में 12वें खिलाड़ी के रूप में शामिल किये गए हैं। इस शानदार खिलाड़ी ने लगभग एक दशक के अपने क्रिकेट करियर में (1976 और 1985 के बीच) सिर्फ 49 एकदिवसीय मैच खेले और 26.67 की औसत से कुल 1067 रन बनाए। उनकी बल्लेबाजी से अधिक, उनके जबरदस्त क्षेत्ररक्षण ने उन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षकों की फेहरिस्त में ला खड़ा किया। हालाँकि इन्हें ज़्यादा मैच खेलने का मौका नहीं मिला लेकिन अपने हरफनमौला प्रदर्शन से उन्होंने सब का दिल जीत लिया। अगर वह एक दशक बाद पैदा हुए होते तो रैंडल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षक जोंटी रोड्स को कड़ी टक्कर दे सकते थे। दुर्भाग्यपूर्ण वनडे एकादश: फ़ारूक़ इंजीनियर (विकेटकीपर), बेवन कांगडन (क), जहीर अब्बास, ब्रैड हॉज, डेविड हसी, सर गैरी सोबर्स, रयान टेन डोशेच, अमित मिश्रा, मोहम्मद जहिद, डग बोलिंगर और टोनी ग्रे लेखक: राम कुमार अनुवादक: आशीष कुमार