सचिन के साथ कोहली की तुलना करना ‘विराट’ नाइंसाफ़ी, कोहली बना जा सकता है पर तेंदुलकर बनना असंभव

मौजूदा दौर में टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली का बल्ला शबाब पर है, जिस तरह कभी सचिन तेंदुलकर हरेक मैच में कोई न कोई रिकॉर्ड अपने नाम कर लेते थे। ठीक वैसे ही विराट कोहली भी रिकॉर्ड के बादशाह बनते जा रहे है, आने वाले वक़्त में अगर सचिन के 49 वनडे शतक और 100 अंतर्राष्ट्रीय शतकों को कोई तोड़ता दिख रहा है तो वह विराट कोहली ही हैं। एकदिवसीय मैचों में तो वह 34 शतकों के साथ सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे नंबर पर ही पहुंच गए हैं, इतना ही नही कोहली ने सचिन से 101 पारियां कम खेलते हुए इस मुक़ाम को छुआ है। वनडे में सबसे तेज़ 10 हज़ार रन बनाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी कोहली अपने नाम करने के बेहद क़रीब हैं, बतौर कप्तान भी वह लगातार भारत को जीत पर जीत दिला रहे हैं। ज़ाहिर तौर पर विराट कोहली भारत की आन बान और शान बन चुके हैं, उनकी उपलब्धियों को देखते हुए हरेक हिन्दुस्तानी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। जैसे कभी सचिन तेंदुलकर से भारत की पहचान होती थी, कोहली भी उन्हीं की तरह क्रिकेट में भारत के तिरंगे का मान बढ़ाते चले जा रहे हैं। यही वजह है कि कोहली को हर तरफ़ से तारीफ़ों से नवाज़ा जा रहा है, आईसीसी ने भी उन्हें क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर से एक बार फिर सम्मानित किया। वनडे रैंकिंग में तो कोहली दूसरों से कहीं आगे निकलते जा रहे हैं। भारत में जिस तेज़ी से पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, वनडे क्रिकेट में कोहली की औसत उससे भी ज़्यादा रफ़्तार से भागती हुई अब 60 के आंकड़े को छूने के क़रीब पहुंचती जा रही है। कोहली की इन उपलब्धियों के बाद आज कल जो एक सबसे बड़ी चर्चा चल रही है वह ये कि उनका क़द महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के समकक्ष पहुंच गया है। कोई उन्हें सचिन के साथ खड़ा कर रहा है तो कोई ब्रायन लारा, विवियन रिचर्ड्स और रिकी पॉन्टिंग से भी आगे बता रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि मौजूदा दौर के कोहली महान बल्लेबाज़ हैं, और अब तक के क्रिकेट इतिहास में भी उन्होंने अपना नाम दिग्गजों की फ़ेहरिस्त में शुमार कर लिया है। लेकिन उन्हें सचिन तेंदुलकर के समकक्ष खड़ा कर देना और उनकी तुलना सचिन के साथ कर देना मेरी नज़र में बिल्कुल ग़लत है। कभी भी दो अलग अलग युगों के क्रिकेटर के बीच तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि परिस्थितियों से लेकर दबाव और प्रदर्शन ये सभी चीज़ें एक जैसी नहीं हो सकती। डॉन ब्रैडमैन से लेकर विवियन रिचर्ड्स, सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली तक आते आते खेल पूरी तरह बदल चुका है। ब्रैडमैन से लेकर विवियन रिचर्ड्स तक के दौर को गेंदबाज़ों का युग माना जाता था, यही वजह है कि ब्रैडमैन और रिचर्ड्स को एक अलग मुक़ाम पर रखा जाता है। सचिन ने जिस युग में क्रिकेट खेला तब इसमें बदलाव का दौर शुरू हो चुका था और ये खेल धीरे धीरे बल्लेबाज़ों की तरफ़ झुकता जा रहा था। बावजूद इसके तेंदुलकर के दौर में भी वसीम अकरम, वक़ार युनिस, एलन डोनाल्ड, ग्लेन मैक्ग्रॉ, ब्रेट ली, कर्टली एंब्रोज़, कोर्टनी वॉल्श, शोएब अख़्तर जैसे ख़ूंख़ार तेज़ गेंदबाज़ मौजूद थे तो क्रिकेट इतिहास में अब तक के दो सबसे सफल स्पिनरों की जोड़ी शेन वॉर्न और मुथैया मुरलीधरण का सामना भी सचिन ने जिस तरह किया वह इतिहास के सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इसके अलावा एक और चीज़ जो सचिन को कोहली से कहीं आगे खड़ा करती है वहां तक कोहली क्या किसी का भी पहुंचना मुमकिन ही नहीं नमुमकिन जैसा है। वह है 24 सालों तक लगातार हरेक मुक़ाबले में पूरे देश का दबाव अपने कंधों पर लेकर मैदान में सचिन का उतरना। तेंदुलकर ने क़रीब ढाई दशकों तक टीम इंडिया के लिए खेला और इस दौर में उनके करियर के आख़िर के कुछ सालों को छोड़कर कभी ऐसा मौक़ा नहीं आया था जब वह बिना दबाव में बल्लेबाज़ी करने जाएं। एक वह भी दौर था जब सचिन के आउट होते ही लोग टेलीवीज़न बंद कर दिया करते थे, स्टेडियम ख़ाली हो जाया करता था, हिन्दुस्तान की जीत की उम्मीद ख़त्म हो जाया करती थी क्योंकि सभी को उपर वाले के बाद इस 5 फ़ुट 5 इंच के बल्लेबाज़ पर ही भरोसा होता था, तभी मास्टर ब्लास्टर को ‘क्रिकेट का भगवान’ कहा जाने लगा था। विराट कोहली जिस दौर में आए तब सबकुछ बदल चुका था, भारत क्रिकेट का सुपरपॉवर बन चुका था। टीम के पास महेंद्र सिंह धोनी जैसा विश्वविजेता कप्तान था, एक से बढ़कर एक शानदार मैच विनर टीम में थे। क्रिकेट का खेल बदल चुका था, अब ये जेंटलमेन गेम पूरी तरह से बल्लेबाज़ों का हो चुका था। आईसीसी के ज़्यादातर नियम भी बल्लेबाज़ों के पक्ष में हो चुके थे। जो तेंदुलकर कई ग़लत फ़ैसलों का शिकार होने की वजह से भारत की जीत के सूत्रधार बनते बनते रह जाते थे, आज कोहली शून्य पर आउट होने के बाद DRS के ज़रिए 160 नाबाद रन भी बना देते हैं। ये क्रांतिकारी बदलाव भी कोहली के दौर में ही पूरी तरह से लागू हुआ, हां ये भी सच है कि 2011 वर्ल्डकप के सेमीफ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मास्टर ब्लास्टर को भी इसी DRS ने मदद पहुंचाई थी और नतीजा भारत की जीत लेकर आया था। लेकिन जैसा मैंने पहला कहा कि वह दौर सचिन के करियर का आख़िरी दौर था। अब नियमों से लेकर पिच, बाउंड्री लाइन से लेकर बल्लों का आकार और गेंदों से लेकर आईसीसी की नज़र सबकुछ मानो बल्लेबाज़ों के लिए हो चुका है। ऐसे में अगर विराट कोहली या दूसरा कोई भी बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर, विवियन रिचर्ड्स, रिकी पॉन्टिंग के रिकॉर्ड्स से कहीं आगे भी चला जाता है तो उन जैसा क़द नहीं पा सकता। दूसरी चीज़ विराट कोहली सीमित ओवर और टेस्ट में दो अलग अलग कप्तान और खिलाड़ी दिखते हैं, इसकी एक बड़ी वजह है दबाव का फ़र्क़। टेस्ट में बतौर कप्तान वह बहुत ज़्यादा परेशान और झुंझलाहट में नज़र आते हैं, लेकिन सीमित ओवर में वह काफ़ी संतुलित और संयमित दिखते हैं। इसकी वजह हैं महेंद्र सिंह धोनी, एक ऐसा विकेटकीपर और पूर्व कप्तान जो आज भी एक कप्तान और अभिभावक की तरह हर मुश्किल घड़ी में सीमित ओवर क्रिकेट में विकेट के पीछे से गेंदबाज़ों को टिप्स देता रहता है और कोहली को हर वक़्त खेल के हिसाब से सलाह देता हुआ नज़र आता है। जो सचिन तेंदुलकर के दौर में देखने को नहीं मिलता था, और टीम बिखर जाती थी लेकिन फिर भी सचिन इसलिए महान थे क्योंकि वह अपनी बल्लेबाज़ी में एकाग्रता और संयम हर परिस्थिति में एक जैसा बनाए रखते थे। आख़िर में मैं बस यही कहना चाहूंगा कि जिस तरह सर डॉन ब्रैडमैन और सचिन तेंदुलकर की तुलना नहीं की जा सकती। जिस तरह आकाश और पाताल के फ़र्क़ को कभी पाटा नहीं जा सकता, ठीक उसी तरह क्रिकेट के भगवान का दर्जा हासिल रखने वाले सचिन तेंदुलकर को किसी रिकॉर्ड के भरोसे विराट कोहली से कम या उनके समकक्ष भी रखना नाइंसाफ़ी नहीं ग़लत होगा। सचिन तेंदुलकर सिर्फ़ एक क्रिकेटर या खिलाड़ी नहीं वह एक सोच और विश्वास का नाम हैं, जो मैदान के अंदर और मैदान के बाहर भी वैसा ही महान है। सचिन में जो संयम और शांति पिच पर बल्ले के साथ दिखती थी वही मैदान के बाहर प्रेस कॉन्फ़्रेंस और नीजि ज़िंदगी में भी दिखी, जिस वजह से सिर्फ़ युवा क्रिकेटर ही नहीं बल्कि आम इंसान भी उन्हें अपना आदर्श मानता था और है। लेकिन क्रिकेटर तो कोहली को अपना आदर्श मानते हैं और मानना चाहिए भी पर एक आम इंसान अपने बच्चों को कोहली की तरह बल्लेबाज़ी करते तो देखना चाहता है पर वैसी आक्रामकता और झुंझलाहट से दूर रहने की हिदायत भी देता है, और यही फ़र्क़ है जो सचिन को 'भगवान' और कोहली को 'बेहतरीन क्रिकेटर' की श्रेणी में रखता है।

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