कप्तान के तौर पर धोनी के 5 बड़े फैसले

JOHANNESBURG, SOUTH AFRICA - SEPTEMBER 24:  The Indian Team celebrate their win with Misbah-ul-Haq looking on after the Twenty20 Championship Final match between Pakistan and India at The Wanderers Stadium on September 24, 2007 in Johannesburg, South Africa.  (Photo by Hamish Blair/Getty Images)
3. 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में बल्लेबाजी में खुद को प्रमोट करना
MUMBAI, INDIA - APRIL 02:  Mahendra Singh Dhoni of India hits the winning runs during the 2011 ICC World Cup Final between India and Sri Lanka at the Wankhede Stadium on April 2, 2011 in Mumbai, India.  (Photo by Tom Shaw/Getty Images)

2011 आते-आते धोनी एक बल्लेबाज और कप्तान के तौर पर पूरी तरह परिपक्कव हो चुके थे। 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में एक बार फिर से उन्होंने भारतीय टीम को फाइनल तक पहुंचाया। फाइनल में पहुंचने के साथ ही भारतीय क्रिकेट फैंस की उम्मीदें जग गईं कि 28 साल बाद भारतीय टीम वर्ल्ड कप अपने नाम करेगी। धोनी जानते थे कि फाइनल मैच के दबाव से कैसे निपटा जाता है। फाइनल मैच में भारत के सामने श्रीलंका जैसी मजबूत टीम थी। श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 274 रनों का मजबूत स्कोर बनाया। लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम की शुरुआत बेहद खराब रही। सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर जल्द ही आउट हो गए। हालांकि युवा बल्लेबाज कोहली और गंभीर ने इसके बाद कुछ देर तक पारी को संभाला। लेकिन तिलकरत्ने दिलशान ने अपनी ही गेंद पर एक बेहतरीन कैच लेकर इस साझेदारी को तोड़ा। भारतीय टीम मुश्किल में नजर आ रही थी सबको लगा शानदार फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह अब क्रीज पर आएंगे। लेकिन धोनी ने इस बार भी सबको चौंका दिया और युवराज को ना भेजकर खुद बल्लेबाजी के लिए आए। कमेंटेटरों ने उस समय धोनी के इस फैसले की काफी आलोचना की क्योंकि युवराज पूरे टूर्नामेंट में शानदार बल्लेबाजी करते आ रहे थे जबकि धोनी का बल्ला खामोश था। लेकिन धोनी के इस फैसले के पीछे बहुत बड़ी वजह थी। जिस समय कोहली आउट हुए उस समय श्रीलंका के दिग्गज स्पिनर मुथैया मुरलीधरन गेंदबाजी कर रहे थे। मुरलीधरन शानदार फॉर्म में थे और युवराज सिंह स्पिनर के अच्छे खिलाड़ी नहीं हैं। इसी वजह से युवराज की जगह धोनी खुद बल्लेबाजी के लिए आए, क्योंकि अगर उस समय एक विकेट और गिरता तो भारतीय टीम के लिए जीत असंभव हो जाती। धोनी के इस फैसले ने इतिहास रच दिया। 1983 के बाद भारतीय टीम ने दूसरी बार वर्ल्ड कप का खिताब जीता। कप्तान धोनी ने खुद छक्का लगाकर टीम की विजयगाथा लिखी।