क्रिकेट को हमेशा से एक 'जेंटलमेन गेम' माना जाता है। लेकिन अगर हम इसके इतिहास के पन्नों को उलटना शुरू करेंगे, तो हमें कई ऐसे विवादों और घटनाओं से रूबरू होने का मौका मिलेगा जो इसके जेंटलमेन छवि को नुकसान पहुंचाती है। भारतीय क्रिकेट को 1983 के विश्व कप के बाद प्रसिद्धि मिलनी शुरू हुई। लेकिन इसके साथ ही कई विवाद भी भारतीय क्रिकेट से जुड़ने लगे। लाइमलाइट में आने और जल्द प्रसिद्धि पाने के लिए कई बार क्रिकेटर और उनसे जुड़े लोगों ने गलत रास्तों का सहारा लिया। इससे भारतीय क्रिकेट की प्रतिष्ठा को बड़ा झटका लगा और कई विवाद भी हुए। तो आज चर्चा भारतीय क्रिकेट के ऐसे ही कुछ विवादों की... माइक डेनेस बनाम भारतीय क्रिकेट टीम (पोर्ट एलिजाबेथ, 2001) माइक डेनेस इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और आईसीसी के मैच रेफरी रह चुके हैं। वह 2001 में पोर्ट एलिजाबेथ में खेले गए भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका टेस्ट मैच के लिए रेफरी थे। लेकिन इस मैच में अपने निर्णयों से उन्होंने विश्व क्रिकेट में हड़कंप मचा दिया था। डेनेस ने क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर पर गेंद के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया और उन्हें एक टेस्ट मैच के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। इसके अलावा डेनेस ने अत्यधिक अपील का दोषी करार कर वीरेंद्र सहवाग, दीप दासगुप्ता, हरभजन सिंह और शिव सुंदर दास पर भी एक-एक टेस्ट मैचों का प्रतिबंध लगा दिया था। तत्कालीन भारतीय कप्तान सौरव गांगुली पर भी टीम को नियंत्रित न कर पाने के लिए एक टेस्ट मैच और दो वनडे मैचों का प्रतिबंध लगा। इसके कारण भारतीय क्रिकेट प्रेमी उद्वेलित हो गए। उन्होंने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया और डेनिस के पुतले फूंके। सड़क से चलकर यह मुद्दा संसद तक में भी पहुंचा और भारतीय संसद ने डेनेस को नस्लीय करार दिया। वहीं आईसीसी ने डेनेस का समर्थन किया। हालांकि क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका (CSA), बीसीसीआई के पक्ष में था और उसने डेनेस को अगले टेस्ट मैच से हटा दिया। जिसके कारण आईसीसी ने तीसरे टेस्ट मैच को अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं प्रदान की। इसलिए यह टेस्ट मैच अनौपचारिक रूप से खेला गया और इसमें सभी प्रतिबंधित खिलाड़ी खेलें। बाद में आईसीसी ने सचिन और गांगुली पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया। ग्रेग चैपल बनाम सौरव गांगुली (2005-07) टीम इंडिया के कोच के रूप में ग्रेग चैपल का कार्यकाल विवादों से भरा रहा। लेकिन इस दौरान उनका सबसे बड़ा विवाद तत्कालीन भारतीय कप्तान सौरव गांगुली से ही रहा। ड्रेसिंग रूम से उभरा यह विवाद जल्द ही मीडिया और आम लोगों तक पहुंच गया और इस दौरान इसकी काफी चर्चा हुई। यह विवाद 2005 में भारत के जिम्बाब्वे दौरे से शुरू हुआ। दौरे के बीच में चैपल का एक ई-मेल लीक होकर मीडिया के सामने आया, जिसमें उन्होंने गांगुली के टेस्ट में खराब प्रदर्शन का हवाला देकर उन्हें टेस्ट टीम से निकालने की बात कही थी। दौरे के तुरंत बाद चयनकर्ताओं ने औसत प्रदर्शन का हवाला देते हुए गांगुली को कप्तानी से बर्खास्त कर दिया। उन्हें वनडे टीम से भी हटा दिया गया। इसके बाद जब द्रविड़ की अगुआई वाली भारतीय टीम वनडे मैच खेलने गांगुली के गृहनगर कोलकाता पहुंची तो कोलकाता के दर्शकों ने दक्षिण अफ्रीकी टीम का समर्थन किया। 2007 विश्व कप में भारत के ग्रुप चरण से ही बाहर होने के बाद चैपल का कोचिंग कार्यकाल खत्म हो गया। सिडनी टेस्ट विवाद, जनवरी (2008) 2007-08 में सिडनी क्रिकेट ग्राउंड (एससीजी) पर खेला गया भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया मैच क्रिकेट इतिहास के विवादास्पद टेस्ट मैचों में से एक माना जाता है। इस मैच में अंपायरो ने लगभग 9 गलत फैसलों फैसले लिए, जिसके कारण भारत एक नजदीकी मैच में हार गया। माइकल क्लार्क ने स्लिप में गांगुली को विवादास्पद कैच लपकने की कोशिश की और अपील किया। जिसे अंपायर ने आउट दे दिया। जबकि रिप्ले से साफ पता चल रहा था कि गेंद मैदान को छूकर ही क्लार्क के हाथ में गई थी। कैच संदेहास्पद होने के बावजूद जब क्लार्क के बगल में खड़े दूसरे फील्डर और ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग से अंपायरों ने कैच के बारे में पूछा तो पोंटिंग ने भी उंगली उठाकर ऑउट का संकेत दिया। जिसे अंपायरों ने भी मान लिया और गांगुली को ऑउट करार दिया गया। ऐसे ही अनेक विवादास्पद फैसले अंपायरों ने पूरे मैच के दौरान लिए। मैच के बाद भारतीय कप्तान अनिल कुंबले ने टिप्पणी की कि ‘केवल एक टीम खेल भावना के अनुसार खेली।’ हालांकि बीसीसीआई के मांग पर आईसीसी ने तीसरे टेस्ट मैच के लिए विवादास्पद अंपायर स्टीव बकनर को हटा दिया और उनके जगह बिली बाेडेन को जगह दी गई। लेकिन इसके बाद यह विवाद दूसरा मोड़ पकड़ लिया जब एंड्रयू साइमंड्स ने हरभजन सिंह पर नस्लीय टिप्पणी और दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। मैच रेफरी माइक प्रॉक्टर ने आरोपों पर सुनवाई करते हुए इस ऑफ स्पिनर पर तीन टेस्ट मैचों का प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद जो हुआ, वह और भी नाटकीय था। भारत ने इस प्रतिबंध को अनुचित बताते हुए दौरे से तुरंत वापसी की घोषणा कर दी। मामला बिगड़ता देख आईसीसी को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। आईसीसी ने इस मुद्दे को सुलझाने और सही दोषी को सजा देने के लिए एक अनुशासनात्मक समिति का गठन किया। इसके बाद ही भारत ने दौरा जारी रखने का फैसला किया। भारत ने न सिर्फ दौरा जारी रखा बल्कि जोश से भरी हुई टीम ने पर्थ के अगले टेस्ट मैच में शानदार जीत दर्ज की। 28 जनवरी को आईसीसी की अनुशासनात्मक समिति ने हरभजन के तीन टेस्ट मैचों के प्रतिबंध को समाप्त करते हुए उन पर मैच फीस का जुर्माना लगाया। इस तरह यह कड़वी गाथा समाप्त हुई। आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी विवाद (2012-13) मैच-फिक्सिंग विवाद (2000) के 12 साल बाद भारतीय क्रिकेट को एक और बड़ा झटका आईपीएल 2012 और 2013 के दौरान लगा था। यह मुद्दा सर्वप्रथम 2012 में शुरू हुआ, जब एक भारतीय न्यूज चैनल इंडिया टीवी ने एक स्टिंग ऑपरेशन प्रसारित किया था। इस स्टिंग में पांच आईपीएल खिलाड़ियों पर स्पॉट फिक्सिंग के लिए घूस मांगते हुए दिखाया गया। बीसीसीआई ने इन सभी पांच खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें टीपी सुधींद्र पर आजीवन प्रतिबंध और शलभ श्रीवास्तव पर पांच साल का प्रतिबंध लगा। इसके अलावा अन्य तीन क्रिकेटरों अभिनव बाली, मोहनीश मिश्रा और अमित यादव को भी एक-एक साल के प्रतिबंध की सजा मिली। जब लग रहा था कि सब कुछ सही हो चुका है, अचानक से स्पॉट फिक्सिंग का जिन्न फिर से निकल के बाहर आ गया। आईपीएल 2013 के दौरान दिल्ली पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर एस श्रीसंत के साथ अंकित चव्हाण और अजित चंडिला को स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार किया। इसके अलावा 11 सट्टेबाज भी गिरफ्तार हुए। स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब चेन्नई सुपरकिंग्स के सर्वेसर्वा और बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन को अवैध सट्टेबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। जल्द ही राजस्थान रॉयल्स टीम के मालिक राज कुंद्रा को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स पर कई गंभीर आरोप भी लगे। इस कारण से एन श्रीनिवासन को आईपीएल अध्यक्ष के पद से हटना पड़ा और उनकी जगह राजीव शुल्का को अध्यक्ष बनाया गया। मामले को गंभीरता से लेते हुए भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप किया और एक ऐतिहासिक फैसले में चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए आईपीएल से निलंबित कर दिया। मैच फिक्सिंग (1999-2000) यह एक ऐसा विवाद था जिसने भारत सहित पूरे क्रिकेट दुनिया को हिला दिया। 1999-2000 में दक्षिण अफ्रीका के भारत दौरे के बाद यह सब शुरू हुआ। इस दौरे के दौरान दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों क्रोनिए, गिब्स, बोए और स्ट्राइडम पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे। सीबीआई की रिपोर्ट में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन सहित 4 खिलाड़ियों को दोषी पाया गया। अजहरुद्दीन को मैच फिक्सिंग का, जबकि जडेजा, मनोज प्रभाकर और अजय शर्मा को सट्टेबाजों के साथ संबंध रखने का दोषी पाया गया। हालांकि कुछ वर्षों बाद अदालत ने अजहरुद्दीन और जडेजा पर प्रतिबंध हटा दिया था। भारतीय क्रिकेट के लिए यह सबसे शर्मनाक घटना थी। मूल लेखक - दीबाग मोहन अनुवादक - सागर