भारत और दक्षिण अफ़्रीका के बीच जोहान्सबर्ग के वानडेरर्स मैदान में तीसरा टेस्ट मैच जारी है। विराट कोहली और उनकी टीम ये टेस्ट सीरीज़ पहले ही गंवा चुकी है और आख़िरी टेस्ट मैच में उनकी कोशिश होगी कि सीरीज़ में हार का फ़ासला थोड़ा कम हो। कोहली ने जिस तरह क्रिकेट के ज़रिए अपनी पहचान बनाई है और जैसा वो अनुभव रखते हैं, उस हिसाब से उन्हें अपनी टीम को ऊंचाइयों पर ले जाना होगा। उन्हें अपनी टीम को टेस्ट में और कामयाब बनाना होगा। कोहली को टेस्ट की कप्तानी मिले 3 साल बीत चुके हैं और वो हर तरह की क्रिकेट खेल चुके हैं और उनके फ़ैंस को उनसे काफ़ी उम्मीदें हैं। ऐसे में में ये सबसे सही वक़्त है कि कोहली और धोनी की कप्तानी के बीच के फ़र्क का पता लगाया जाए।
#5 खिलाड़ियों को ज़्यादा मौक़ा देना
जब टीम इंडिया के पूर्व टेस्ट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी टीम इंडिया को लीड कर रहे थे तो अपने खिलाड़ियों को उनकी क्षमता के हिसाब से भरपूर मौक़ा देते थे। इसकी सबसे बड़ी मिसाल विराट कोहली और रोहित शर्मा हैं। कोहली और रोहित दोनों का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर अलग-अलग हालात में शुरू हुआ है, लेकिन अब दोनों खिलाड़ियों ने विश्व क्रिकेट में अपनी पहचान बना ली है। विराट और रोहित को अगर धोनी ज़्यादा मौक़ा नहीं देते तो शायद टीम इंडिया को ये दो बेहतरीन खिलाड़ी नहीं मिल पाते। विराट क्रिकेट के हर फ़ॉर्मेट के बेहतरीन खिलाड़ी बन चुके हैं, वहीं रोहित सीमित ओवर के खेल के विस्फोटक बल्लेबाज़ बन गए हैं। अगर कप्तान के तौर पर कोहली की बात करें तो उन्होंने धोनी से विपरीत तरीका अपना लिया है। जिस भी खिलाड़ी का फ़ॉर्म अच्छा नहीं रहता उन्हें विराट कोहली प्लेइंग इलेवन से निकाल देते हैं। अजिंक्य रहाणे को ड्रॉप किया जाना इस बात को साबित करता है वो किसी भी खिलाड़ी को ज़्यादा मौक़ा देना पसंद नहीं करते जब खिलाड़ी का प्रदर्शन बुरा रहता है। कोहली को अपने इस तरीके में थोड़ी ढील देने की ज़रूरत है।
#4 मीडिया से बात करने का तरीका
हर खिलाड़ी और कप्तान इस बात को मानता है कि मीडिया से रू-ब-रू होना हमेशा सुखद अनुभव नहीं होता। पत्रकारों के सवाल टीम के प्रदर्शन पर निर्भर करते हैं और अगर टीम हार जाती है तो कप्तान पर मीडिया के सवालों की बारिश हो जाती है। इस बात को लेकर ये कहा जाता है कि धोनी और कोहली में उतना ही फ़र्क है जितना सोना और पीतल में होता है। अपने कार्यकाल में धोनी को ये बात अच्छी तरह पता थी कि मीडिया के चुभते हुए सवाल का किस तरह से सामना करना पड़ता है। वो अपने शब्दों के जाल से पत्रकारों के सवालों का चतुराई से जवाब देते थे। जिस तरह से वो मीडिया से छिप कर कई काम कर लेते थे वैसा कोई भी कप्तान नहीं कर पाता था। किसी को भी ये बात पता नहीं थी कि वो दिसंबर 2014 में रिटायर होने वाले हैं। यही नहीं उनकी शादी की ख़बर मीडिया को ठीक उसी दिन लगी जिस दिन उनकी शादी हो रही थी। दूसरी तरफ़ कोहली मीडिया के सामने बेख़ौफ़ नज़र आते हैं। जब पत्रकार उनसे कुछ चुभते हुए सवाल पूछते हैं तो वो अकसर आक्रामक हो जाते हैं। सेंचुरियन में टेस्ट मैच हारने के बात जब पत्रकारों ने उनके तरीकों पर सवाल किए गए थे तो वो संयम से जवाब नहीं दे पा रहे थे। जब कोहली को टीम में बार-बार बदलाव करने पर पूछा गया तो वो अपनी ग़लती को मानने को तैयार नहीं दिख रहे थे। पिछले साल बैंगलोर टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ जीत के बाद हुई प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कोहली और मीडिया के बीच तीखी बहस देखने को मिली। इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने कंगारू टीम के खिलाड़ियों पर फ़ाउल प्ले का इल्ज़ाम लगाया। इस टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीव स्मिथ चेंजिंग रूम से रिव्यू के लिए मदद लेते हुए देखे गए थे।
#2 तेज़ गेंदबाज़ों को स्पिनर के उपर तरजीह देना
कई बार देखा गया है कि धोनी अपनी कप्तानी में तेज़ गेंदबाज़ों के मुक़ाबले स्पिनर्स से गेंदबाज़ी कराना ज़्यादा पसंद करते थे। साल 2012 का नागपुर टेस्ट सभी को याद होगा जब भारत और इंग्लैंड का मुक़ाबला जारी था। धोनी ने 4 स्पिन गेंदबाज़ों को मौक़ा दिया था जिसमें रविचंद्रन अश्विन, रविंद्र जडेजा, पीयूष चावला और प्रज्ञान ओझा थे। इस टेस्ट मैच में इशांत शर्मा इकलौते तेज़ गेंदबाज़ थे। जब से विराट कोहली ने ज़िम्मेदारी संभाली है बॉलिंग का ट्रेंड बदल गया है। कोहली की कप्तानी में तेज़ गेंदबाज़ों को ज़्यादा तरजीह दी जा रही है। कोहली को पेस बॉलर्स से गेंदबाज़ी कराना ज़्यादा पसंद है। साल 2015 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ टेस्ट मैच में उन्होंने उमेश यादव और वरुण एरॉन से गेंदबाज़ी कराई थी। साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ जारी सीरीज़ में उन्होंने एक टेस्ट मैच में 4 पेस बॉलर्स को मौक़ा दिया था। कोहली को उन गेंदबाज़ों से गेंदबाज़ी कराना ज़्यादा पसंद है जो करीब 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गेंद फेंक सकते हैं।
#2 कैप्टन कूल बनाम आक्रामक कप्तान
जहां भावनाओं पर काबू करने की बात आती है तो दोनों कप्तानों का तरीका बेहद अलग है। धोनी का आक्रामक तेवर शायद ही कभी किसी को देखने को मिला हो। साल 2013 में धोनी की प्रतिक्रिया देखने लायक थी जब दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 4-0 से सीरीज़ जीती थी। उस वक़्त धोनी ने धीरे से स्टंप उठाया, चेतेश्वर पुजारा से हाथ मिलाया और बेहद शांत तरीके से मैदान से बाहर आ गए। अगर कोई भी टीम ऑस्ट्रेलिया का सीरीज़ में पूर्ण सफ़ाया करती है तो वो इसे पूरे गर्व के साथ बयां करती है, लेकिन धोनी छोटे-बड़े हर मौक़ों पर शांत दिखते थे उनके चेहरे या स्वभाव में कभी कोई घमंड नहीं दिखता था। दूसरी तरफ़ मौजूदा कप्तान कोहली की बात करें तो वो आक्रामक छवि के लिए जाने जाते हैं। जब भी टीम इंडिया का कोई विकेट गिरता है तो वो परेशान नज़र आने लगते हैं। धोनी ने अपनी कप्तानी के दौरान कभी किसी भी विपक्षी खिलाड़ियों के ख़िलाफ़ स्लेजिंग करते नहीं देखे गए। लेकिन जब कोहली की बात करतें तो वो विपक्षी खिलाड़ियों के ज़ुबानी हमले का जवाब देने से नहीं डरते। कोहली ‘जैसे को तैसा’ में यकीन करते हैं
#1 टीम में बदलाव की नीति
इस क्षेत्र में दोनों कप्तान एक-दूसरे से बेहद अलग हैं। जब कोहली टीम इंडिया के कप्तान थे वो टीम में काफ़ी कम बदलाव करते थे, ख़ासकर वो टीम के विनिंग कॉम्बिनेशन से कभी छेड़छाड़ नहीं करते थे। अगर मौसम या पिच के हालात बदलाव की डिमांड भी करते थे तब भी धोनी टीम में बदलाव करने से बचते थे। वो खिलाड़ियों के एक समूह पर पूरा भरोसा बनाए रखते थे। वो जानते थे कि टीम में ज्यादा बदलाव करने से खिलाड़ियों के कॉन्फिडेंस में कमी आ जाएगी। दूसरी तरफ़ कप्तान कोहली बिलकुल अलग हैं वो बार-बार बदलाव में यक़ीन रखते हैं। कोहली 35 अलग अलग मैच में कभी भी एक जगह पर फ़ील्डिंग करते हुए नहीं देखे गए थे। अगर कोई खिलाड़ी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो वो उस प्लेयर को ड्रॉप करने से नहीं कतराते। लेखक – शंकर नारायण अनुवादक – शारिक़ुल होदा