घर पर विश्वकप खेल रही भारतीय टीम से सभी को उम्मीद थी की धोनी की सेना 28 सालों बाद विश्वकप अपने नाम करेगी। यह सचिन तेंदुलकर का अंतिम विश्वकप भी था इसलिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण था. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने कप्तान रिकी पोंटिंग के 104 और ब्रेड हेडिन के 54 रनों की बदौलत 260 रनों तक पहुँच पाई और भारत को सेमी-फाइनल में पहुँचने के लिए 261 रनों का लक्ष्य मिला. ऑस्ट्रेलिया के मजबूत गेंदबाजी के सामने भारत के लिए यह लक्ष्य आसान होने वाला नहीं था। भारतीय टीम ने संभल कर शुरुआत की लेकिन नियमित अंतराल पर विकेट गिरते रहे। कोई भी भारतीय बल्लेबाज लम्बी पारी नहीं खेल पाया। एक समय भारत का स्कोर 187-5 हो गया था और लगने लगा कि मैच भारत की हाथ से निकल जायेगा। क्रीज पर मौजूद युवराज सिंह का साथ देने सुरेश राणे आयें और टीम को जीत के लिए 74 और रनों की दरकार थी। दोनों ने सम्भल कर बल्लेबाजी शुरू की लेकिन जल्द ही दोनों ने रन गति तेज कर दी और भारत 15 गेंद रहते ही लक्ष्य तक पहुँच गया। जसके बाद सेमीफाइनल और फाइनल में भी जीत दर्जकर भारत 28 साल बाद विश्व विजेता बना।