ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारतीय बल्लेबाजों द्वारा खेली गयी टॉप 5 एकदिवसीय पारियां

एक बार फिर से क्रिकेट जगत के दो कड़े प्रतिद्वंदी एक-दूसरे के आमने सामने होंगे। 17 सितंबर से शुरू होने जा रही भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वनडे सीरीज में दोनों टीमें श्रेष्ठता को साबित करने के लिए तैयार हैं। भारत की एकदिवसीय टीम को अपनी बल्लेबाजी ताकत के लिए जाना जाता है। लंबे समय से भारत का शीर्ष क्रम कई विश्व स्तरीय बल्लेबाजों का गवाह रहा है जिन्होंने सभी प्रकार गेंदबाजों और हर प्रकार की सतहों पर रनों के पहाड़ बनाते हुए अपना आधिपत्य कायम किया है।

इनमें से कुछ खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया के आधुनिक युग की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी इकाई के खिलाफ अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया और रिकॉर्ड किताबों में उनका नाम हमेशा के लिए दर्ज हो गया है। कुछ दिनों में भारत-ऑस्ट्रेलिया वनडे सीरीज शुरू होने के साथ आईये आज हम उन शीर्ष पांच जादुई क्षणों का फिर से याद करते हैं, जब भारतीय बल्लेबाजों ने ऑस्ट्रेलियाई के ऊपर अपना वर्चस्व कायम किया और अपनी कला का प्रदर्शन किया।

#रोहित शर्मा- 209 रन, बेंगलुरु, 2013

6 साल के संघर्ष के बाद अपनी क्षमता को प्रभावी प्रदर्शन में बदलने के लिए रोहित शर्मा ने आखिरकार अपने पावर को तब वापस पा लिया जब उन्हें भारत के लिए पारी की शुरुआत के लिए कहा गया।

वह शीर्ष क्रम में शुरुआती दौर में ही बल्लेबाजी करते हुए काफी प्रभावशाली लगे और 2013 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज में उन्होंने यह साबित कर दिया कि वह कितने विनाशकारी साबित हो सकते हैं।

श्रृंखला में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन आखिरी और निर्णायक एकदिवसीय मैच में निकल कर आया। बेंगलुरु की सपाट पिच पर पहले बल्लेबाजी करते हुए, भारतीय सलामी बल्लेबाज ने अपने सभी शॉट लगाये और गेंदों को बाउंड्री के पार पहुंचाया। उन्होंने धवन के साथ मिलकर पहले विकेट के लिए सौ से ज्यादा रन जोड़े और पावरप्ले के ओवरों का भरपूर लाभ उठाया।

बीच के ओवरों में भी रोहित ने स्कोर बोर्ड की गति को कम नहीं होने दिया और डेथ ओवरों में बेखौफ बल्लेबाजी की। 114 गेंदों पर उनके बल्ले से शतक निकला जिसके बाद रनों की गति को तेज करते हुए 140 गेंदों पर 150 रन बना डाले और फिर धुंआधार पारी खेलते हुए अंतिम 50 रन सिर्फ 16 गेंद में जड़ डाले।

46वें ओवर में भारतीय के इस सलामी बल्लेबाज ने जेवियर डोहर्टी के एक ओवर में तीन छक्के और दो चौकों की मदद से 26 रन ठोक डाले। रोहित ने अपनी इस बल्लेबाजी में आक्रामकता, निडर, चतुरता का नजारा पेश किया।

#विराट कोहली- 100 नॉटआउट, जयपुर, 2013

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यह एक अनूठी पारी थी। जयपुर में उस रात विराट कोहली द्वारा खेली गयी सनसनीखेज पारी और शानदार स्ट्रोक को इससे बेहतर कुछ बयां नहीं कर सकता है। दरअसल पिच सपाट थी, सीमा रेखा छोटी थीं और गेंदबाजों को थोड़ी सहायता मौजूद थी। लेकिन कोहली की इस मास्टर पारी को कमजोर कुछ नहीं कर सकता था जिसके बदौलत भारत ने 44 ओवर में 360 रन बना लिये।

रोहित शर्मा और शिखर धवन ने भारत को एक शानदार शुरुआत देते हुए 27 ओवर में 176 रन जोड़े। जब कोहली क्रीज पर पहुंचे भारत ड्राइविंग सीट पर था लेकिन आगे का काम चुनौतीपूर्ण था।

जल्दी ही कोहली ने गियर दबाते हुए खुद को फ्रंट सीट पर ला दिया और रोहित शर्मा जिन्होंने खुद 141 रन पारी खेली दूसरी सीट पर आ गये। कोहली की पारी की विशेषता उनके छक्के थे जिन्हे विराट ने आसानी से जड़े थे।

52 गेंदे खेलने के दौरान कोहली ने सात छक्के जड़े जिनमें से अधिकांश शानदार शॉट या बेहतरीन टाइमिंग के परिणाम थे। कोहली मे यह पारी भारत की ओर सबसे तेज शतक लगाकर खत्म की।#सचिन तेंदुलकर- 175, हैदराबाद, 2009

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संक्षेप में, यह पारी 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ चेन्नई में खेली गयी प्रतिष्ठित पारी के समान थी। सचिन ने तब उम्मीद जगा दी कि जब चीजें भारत के पक्ष में खराब हो रही थीं और फिर टीम इंडिया को एक शानदार जीत के दरवाजे तक पहुंचा दिया लेकिन अंत में जीत नहीं दिला सके।

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हैदराबाद में खेले गये पांचवें टेस्ट में मेहमान टीम ने 350 रन स्कोर खड़ा किया। जिसके जवाब में 24 ओवर तक भारत का स्कोर चार विकेट 162 रन रहा।

एक छोर से सचिन अपने खेल का जबरदस्त प्रदर्शन कर रहे थे और दूसरे छोर पर लगातार विकेट गिर रहे थे। लेकिन जब ऐसा लग रहा था कि वह अब साझेदारी नहीं बना पायेंगे तब सुरेश रैना ने उनका साथ दिया और दोनों ने हैदराबाद में कहर बरपा दिया।

43वें ओवर में रैना भी पवेलियन लौट गये लेकिन सचिन मजबूती के साथ रनों का पीछा करते रहे। मैच के 48वें ओवर में लिटिल मास्टर आउट हो गये जब भारत के जीत के बेहद नजदीक था और उसे 18 गेंदों में 19 रन की जरूरत थी। सचिन के जाने के बाद निचला क्रम पूरी तरह से धराशायी हो गया और भारत तीन रनों से मैच हार गया।

सचिन ने अकेले दम पर भारत के आधे से ज्यादा रन बनाये और ऑस्ट्रेलियाई बॉलर के नाम पर दम करके रखा। उन्होंने हिल्फेनहास और बोलिंजर को मैच में सेट होने का मौका ही नहीं दिया और उनकी हर एक गलती का फायदा उठाते हुए जमकर रनों की बारिश की अपनी पावर ड्राइव और पंच के साथ सचिन ने लगातार बाउंड्री लगायी और चालाकी से स्ट्राइक बदलते रहे।

सचिन ने अकेले दम पर गेंदबाजों के ऊपर से शॉट खेलते हुए उन्होंने रिदम में आने का मौका ही नहीं दिया। जिस कारण ऑस्ट्रेलियाई कप्तान को सोचने पर मजबूर होना पड़ा। सचिन की धाकड़ बल्लेबाजी का ही कारण था कि हॉरिट्ज ने खेल में केवल पांच ओवर ही कराये।#सचिन तेंदुलकर- 134 शारजहां, 1998

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पिछले गेम में ऑस्ट्रेलिया को ध्वस्त करने के बाद सचिन तेंदुलकर कोका-कोला कप के फाइनल में 273 रनों का लक्ष्य हासिल करने के लिए क्रीज पर उतरे। यह स्पष्ट था कि लड़ाई सचिन और ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाजों के बीच थी और हर कोई सचिन की आक्रामकता पर ऑस्ट्रेलिया की प्रतिक्रिया देखने के लिए उत्सुक था।

लेकिन सचिन ने वहीं से शुरुआत की जहां से उन्होंने छोड़ा था और आते ही क्रीज पर रनों को बरसाना शुरू कर दिया। उन्होंने माइकल कैस्प्रोविच की गेंद को कवर्स पर ड्राइव करके शुरुआत की और जल्द ही उन्होंने अपने तरकस से तीरों को छोड़ना शुरु कर दिया।

भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने मध्य ओवरों के दौरान एक छोर को सुरक्षित रखा और इस सलामी बल्लेबाज को पूरी तरह से खेलने की अनुमति दी। सचिन ने किसी भी ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज को नहीं छोड़ दिया और जिस तरीके से उन्होंने चारों तरफ खेलकर अपने रन बनाए वह उनकी बल्लेबाजी कौशल को दर्शाता है।

तेज गेंदबाजों के खिलाफ वह क्रीज से बाहर निकल कर खेलने में थोड़ा भी डरता नहीं था, जबकि स्पिनरों के खिलाफ खेलते हुए सचिन ने अपने नरम हाथों से गेंद को खेलकर गैप से निकालने की रणनीति अपनायी। यह उस समय की सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय टीम पर निश्चित तौर पर क्रूरतापूर्ण हमला था।

भारतीय बल्लेबाज ने रन रेट को ध्यान में रखते हुए लगातार बाउंड्री को लगाते रहे और आखिरकार कोस्प्रोविच ने 45वें ओवर में इस सलामी बल्लेबाज को पवेलियन भेज कर ऑस्ट्रेलिया को कुछ राहत दी लेकिन तब तक जीत भारत के हाथ में आ चुकी थी।

इस खेल में सचिन द्वारा उपयोग किए जाने वाले शुद्ध हमले के दृष्टिकोण ने सभी क्रिकेट स्ट्रोकों पर इस अवसर पर अपना प्रदर्शन दिखाया और इस अवसर पर आगे बढ़ने की उनकी क्षमता को दिखाया।

इस खेल में सचिन का आक्रमण वाला रुख सभी क्रिकेट स्ट्रोक पर तेंदुलकर की पकड़ और मौके के अनुसार उसे उपयोग करने की क्षमता उनके प्रदर्शन की झलक दिखलाती है।#सचिन तेंदुलकर- 143, शारजहां, 1998

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ऑस्ट्रेलिया ने 22 अप्रैल 1998 की रात को शारजहां में एक चीज को छोड़कर सब कुछ ठीक किया। सबसे पहले उन्होंने रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया और फिर भारतीय बल्लेबाजों को प्रभावी ढ़ंग से गेंदबाजी कर आउट किया।

अंत में मैच में जीत पायी। लेकिन विश्व की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी आक्रमण केवल एक भारतीय बल्लेबाज को रोकने में नाकाम रही और इस कमी के कारण भारत मैच हारने के बावजूद कोका कोला कप के फाइनल में पहुंच गया।

सरल शब्दों में यह मैच एक बनाम ग्यारह का था। करो या मरो के मैच में, विशाल लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय बल्लेबाज ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी आक्रमण के सामने फंस गये। लेकिन सचिन इन सबके बावजूद मैच में खड़ा रहे और एकदिवसीय क्रिकेट का सबसे शानदार काउंटर अटैक का नजारा पेश किया।

उस रात लिटिल मास्टर अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे। अपनी ट्रेडमार्क ड्राइव और कट को पूरी निपुणता के साथ फील्डरों के बीच से बाउंड्री के पार पहुंचाया और लेग साइड पर तो अपना अधिकार जमा दिया।

भारतीय बल्लेबाज ने किसी गेंदबाज को नहीं छोड़ा और विशेष तौर पर शेन वॉर्न के खिलाफ क्रूर रूप अपनाया था। इस गेम के दौरान दोनों महान खिलाड़ियों के बीच लड़ाई अपने शिखर पर पहुंच गयी थी और सचिन ने लेग स्पिनर को मिड विकेट स्टैंड की तरफ छका कर अपना आधिपत्य जमाया। सचिन की मैदान के हर कोने पर अपनी बादशाहत को कायम किया और एक अपने क्रिकेट फैन्स को एक शानादार पारी का नजारा पेश किया। इस पारी ने सचिन की महानता में चार चांद लगा दिये।

लेखक- चैतन्य

अनुवादक- सौम्या तिवारी

Edited by Staff Editor