क्रिकेट बहुत शानदार खेल है और मैच की अंतिम गेंद तक किसी भी तरह का अनुमान गलत साबित हो सकता है। एक समय ऐसा था जब क्रिकेट को जेंटलमेन का खेल कहा जाता था। लेकिन टी-20 क्रिकेट के आने से क्रिकेटरों की मानसिकता में काफी बदलाव आया है। इसी के चलते खिलाड़ियों ने विपक्षी टीम पर हावी होने के लिए नए-नए तरीकों का इस्तेमाल किया। बीते वर्षों में कई महान क्रिकेटरों ने विपक्षी टीम पर हावी होने के लिए कई मौकों पर बिलकुल ही अलग प्रयोग किए हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त खिलाड़ियों पर काफी दबाव होता है। ऐसे में उन्हें परिस्थितियों से तालमेल बिठाना पड़ता है। गेंदबाजों के खिलाफ कई बार बल्लेबाजों ने नए तरह के हथखंडे अपनाएं हैं। ऐसा भी कई बार हुआ है, जब बल्लेबाज़ को किसी एक गेंदबाज़ का सामना करना काफी कठिन रहा है। खासकर तब जब बल्लेबाज़ आउट ऑफ़ फॉर्म रहता है। इसी दबाव से उबरने के लिए बल्लेबाज़ अक्सर नए तरीके और प्रयोग गेंदबाजों के खिलाफ करते आये हैं। आज हम आपको ऐसे ही 5 मौकों के बारे में बता रहे हैं, जब बल्लेबाजों ने बेहद नया प्रयोग किया: #5 जब सुनील गावस्कर बाएं हाथ से बल्लेबाज़ी करने लगे सन 1981-82 में हुए रणजी ट्राफी के सेमीफाइनल में सुनील गावस्कर ने कर्नाटक के बाएं हाथ के स्पिनर रघुराम भट्ट का सामना बाएं हाथ के बल्लेबाज़ के तौर किया था। इस मैच में बॉम्बे के इस बल्लेबाज़ ने नाबाद 18 रन बनाये थे। जिससे उनकी टीम हार से बच गयी थी। अपनी पारी को याद करते हुए गावस्कर ने कहा, “रघुराम भट्ट की गेंद बल्लेबाज़ के स्क्वायर टर्न ले रही थी। जिसकी वजह से उन्हें खेलना काफी मुश्किल था। क्योंकि वह बाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज़ थे। इसलिए मैंने उनसे बचने के लिए बाएं हाथ से बल्लेबाज़ी की। जिसकी वजह से मैं आउट नहीं हुआ। क्योंकि दायें हाथ से बल्लेबाज़ी करने पर मेरे LBW होने का चांस था।” गावस्कर ने कहा, “ मैंने इस मैच में महसूस किया कि बतौर दायें से बल्लेबाज़ी में मैं रघुराम के सामने जीरो हूँ। इसलिए मैंने मैच को अपनी टीम के फेवर में करने के लिए उनके सामने बाएं हाथ से बल्लेबाज़ी की। हालाँकि मैंने दायें हाथ के स्पिनर बी विजयकृष्ण के समाने दायें हाथ से ही बल्लेबाज़ी की।” #4 जब डेनिस लिली मैदान पर एल्युमीनियम का बल्ला लेकर पहुंचे डेनिस लिली को उनकी बल्लेबाज़ी के लिए नहीं जाना जाता है। लेकिन एक बार वह मैदान पर अजीब बल्ला लेकर पहुँच गये थे। बल्ले का नाम कॉम्बैट था। ये बल्ला एल्युमीनियम का बना हुआ था। ये बल्ला ग्राहम मोनाघन ने बनाया था जो डेनिस लिली के दोस्त औए क्लब क्रिकेटर थे। मोनाघन इस बल्ले से अपने स्कूल में खेला करते थे। लेकिन दिसम्बर 1979 में डेनिस लिली ने इंग्लैंड के खिलाफ पर्थ में चल रहे टेस्ट मैच में मैदान पर लेकर पहुँच गये। वास्तव में मोनाघन लिली के बिज़नेस पार्टनर भी थे। इसलिए उन्होंने इस बल्ले को मार्केटिंग रणनीति के तहत मैदान पर लेकर पहुंचे थे। हालांकि 12 दिन पहले वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ भी वह इसी बल्ले से खेले थे। जहाँ कैरेबियाई गेंदबाजों ने इसको लेकर को विरोध नहीं किया था। नेट में अभ्यास करने के दौरान लिली के बल्ले पर ग्रेग चैपल ने वेल्डिंग देखी थी। लेकिन उन्होंने उतना ध्यान नहीं दिया था। मैच के दौरान जब लिली कॉम्बैट बल्ले को लेकर मैदान पर गये तो ग्रेग चैपल ने 12वें खिलाड़ी हॉग को उन्हें लकड़ी का बल्ला देने को कहा था। हालाँकि वह ओवर के अंत में आउट हो गये थे। एल्युमीनियम के बल्ले से जब लिली ने शॉट खेला तो गेंद बाथम के पास पहुंची जबकि देखने से ऐसा लगा था कि चौका तो मिलेगा ही। इसलिए चैपल काफी नाराज हुए थे। चैपल ने हॉग से कहा था कि जैसे ही ओवर खत्म हो उन्हें दूसरा बल्ला पहुंचा दो। हॉग के अनसुना करने पर चैपल खुद लिली को लकड़ी का बल्ला देने के लिए मैदान पर गये। जहाँ विपक्षी टीम भी उनके एल्युमीनियम बल्ले का विरोध कर रही थी। लिली ने एल्युमीनियम के बल्ले को फेंक दिया और लकड़ी का बल्ला लेकर खेलने लगे।
साल 2010 के आईपीएल सीजन में मैथ्यू हेडन ने पहली बार मंगूज बल्ले का इस्तेमाल सीएसके और दिल्ली डेयरडेविल्स के खिलाफ हुए मैच में किया था। इस बल्ले से क्लब क्रिकेट खेले जाते थे। लेकिन मंगूज का इस्तेमाल पहली बार प्रोफेशनल क्रिकेट में देखा गया था। पहली बार देखने से ये बल्ला स्पिनर को खेलने में दिक्कत दे सकता था। इसके अलावा कई शॉट तो इससे मिसटाइम होते ही साथ ही इसकी वजह रनआउट के चांस भी बढ़ गये थे। हेडन ने मंगूज से जो पहला शॉट खेला था वह लेग साइड में एक रन के लिए था। सामान्य तौर पर माना जा रहा था कि वह इस बल्ले से कुछ खास नहीं कर पाएंगे। लेकिन इस मैच में उन्होंने रजत भाटिया की जमकर धुनाई की थी। तिलकरत्ने दिलशान के एक ओवर में उन्होंने तीन छक्के जड़कर मंगूज का कमाल दिखा दिया था। मंगूज का बल्ला हेडन पर कोई रोक नहीं लगा पा रहा था। उन्होंने अपना शानदार खेल इस बल्ले से भी जारी रखा। इसकी मदद से उन्होंने दोबारा से फॉर्म में वापसी कर ली। हेडन ने इस बल्ले का इस्तेमाल टूर्नामेंट में जारी रखा लेकिन उनके अलावा किसी अन्य बल्लेबाज़ ने इस बल्ले की नहीं अजमाया।
ऐसा पहली बार देखा गया था जब वेस्टइंडीज के बल्लेबाज़ लेंडल सिमंस ने कैरेबियाई प्रीमियर लीग में एक ही पैड लगाकर बल्लेबाज़ी करते हुए देखा गया। ये नजारा गुयाना अमेज़न वारियर्स बनाम सेंट किट्स और नेविस पेट्रियट के खिलाफ देखने को मिला। सिमंस ने इस मैच में एक ही पैड पहनकर बल्लेबाज़ी की। 12वें ओवर के बाद वह 8 ओवर तक एक ही पैड में खेलते रहे। उन्होंने इस मैच में सबसे ज्यादा रन अपनी टीम के लिए बनाये लेकिन उनकी 60 गेंदों में 50 रन की पारी टी-20 क्रिकेट की सबसे धीमी पारी मानी गयी। इन सबके बावजूद इस मैच में सिमंस का एक पैड पहनकर खेलना इस मैच में चर्चा का विषय बना। टीवी के दर्शकों को इसे देखकर काफी उत्साह हुआ।
साल 2007 में श्रीलंका के खिलाफ वर्ल्डकप के फाइनल में गिलक्रिस्ट ने यादगार 149 रन की पारी खेली थी। लेकिन बहुत ही कम लोगों को ये बात पता होगी कि इस मैच में गिली ने अपने बाएं ग्लव्स में स्क्वाश की गेंद रखी हुई थी। ऐसा करना गिली ने बहुत पहले शुरू किया था। लेकिन उन्होंने इसे अंतर्राष्ट्रीय मैच में भी प्रयोग किया। ये आईडिया गिली के कोच बॉब मुएलेमन ने उन्हें दिय था। उन्होंने ये प्रयोग गिली के साथ इस लिए किया था क्योंकि वह बल्ला काफी नीचे पकड़ते थे। इसलिए उन्हें बल्ले को घुमाने में दिक्कत होती थी। इसलिए उनकी बल्ले की घुमाने की तकनीकी को बेहतर बनाने के लिए उनके ग्लव्स में स्क्वाश की गेंद रखने का अभ्यास करवाया। साल 2007 के वर्ल्डकप में बॉब ने गिली को इस मेथड को अजमाने का सुझाव दिया था। गिली ने एशेज में भी इसका प्रयोग किया लेकिन वह आराम नहीं महसूस कर पा रहे थे। इसके रखने से उन्हें ऐसा महसूस होता था जैसे जूतों में चुभने वाली चीज से होता है। जिससे आपको अपना काम करने में रूकावट महसूस होता है। लेकिन गिली ने वर्ल्डकप 2007 के सभी मैचों में स्क्वाश की गेंद रखकर बल्लेबाज़ी की। उन्होंने सभी ग्रुप के मैचों में इस प्रयोग को अंजाम दिया। इसके प्रयोग से वह असफल साबित हुए। इसलिए उन्होंने इसे सेमीफाइनल मैच में बाहर निकाल दिया। लेकिन इस मैच में वह जीरो पर आउट हो गये। इसलिए उन्होंने फाइनल इसका दोबारा इस्तेमा करने का निर्णय लिया। फाइनल में गिलक्रिस्ट ने शानदार बल्लेबाज़ी करते हुए श्रीलंकाई गेंदबाजों की धज्जियां उड़ा दी। उन्होंने यादगार 149 रन की पारी खेलकर ऑस्ट्रेलिया को तीसरी बार लगातार चैंपियन बनाने में मदद की। गिली को तब एहसास हुआ की मुलेमन का प्रयोग वाकई सफल रहा और उन्होंने शतक बनाया।