आईपीएल की नीलामी एक बेहद दिलचस्प प्रक्रिया है जिसे क्रिकेट फ़ैंस काफ़ी उत्साह से देखते हैं। आईपीएल टीम के मालिक खिलाड़ियों की ख़रीद पर काफ़ी ज़्यादा ख़र्च करते हैं और विश्व के बेहतरीन क्रिकेटर को अपनी टीम में शामिल करते हैं। ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि नीलामी के टेबल पर आने से पहले टीम के मालिक काफ़ी रिसर्च करते हैं। चूंकि टीम के मालिक 2 दिनों की नीलामी प्रक्रिया में करोड़ों रुपये ख़र्च करते हैं, ऐसे में ये ज़ाहिर बात है कि वो अपनी रक़म को लेकर काफ़ी सजग होते होंगे। पिछले कुछ सालों में ये मालिक किफ़ायती ख़रीदारी करने में माहिर हो चुके हैं। इन सब के बावजूद कई बार ऐसे खिलाड़ियों पर करोड़ो रुपये ख़र्च करने पड़ते हैं जो बाद में फ़्लॉप साबित हो जाते हैं। साल 2018 के आईपीएल सीज़न को लेकर खिलाड़ियों की नीलामी का दिन क़रीब आ रहा है, ऐसे में हम उन 5 बड़ी ग़लतियों के बारे में बताएंगे जो नीलामी के दिन टीम के मालिकों से हुई थी, खिलाड़ी तो काफ़ी महंगे ख़रीदे गए लेकिन वो टीम के लिए फ़ायदेमंद साबित नहीं हो पाए।
#5 डेविड हसी – किंग्स इलेवन पंजाब – 1.4 मिलियन डॉलर – साल 2011
ऑस्ट्रेलिया के ये दाएं हाथ के बल्लेबाज़ टी-20 खेल के सूरमा रहे हैं और उन्होंने अपने प्रदर्शन से काफ़ी नाम कमाया था। यही वजह रही कि आईपीएल नीलामी के दौरान उनकी बेस प्राइस काफ़ी ज़्यादा रखी गई थी। डेविड हसी में तेज़ और स्पिन दोनों तरह की गेंदबाज़ी का हुनर मौजूद था, इसके अलावा वो बल्लेबाज़ी के दौरान तेज़ शॉट लगाने में भी माहिर थे। पहले 3 आईपीएल सीज़न में उन्होंने कोलकाता टीम की तरफ़ से खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया था। साल 2011 में वो नीलामी के लिए सामने आए, उस वक़्त उन्हें ख़रीदने के लिए सभी टीम के मालिकों के बीच खींचतान शुरू हो गई। नीलामी के दौरान बैंगलौर और पंजाब की टीम के बीच प्रतिस्पर्धा में आख़िरकार जीत पंजाब की हुई और हसी को 1.4 मिलियन डॉलर में ख़रीदा गया। हांलाकि जैसी उम्मीद थी हसी वैसा खेल नहीं दिखा पाए। उन्होंने महज़ 8 मैच खेला और 101.58 की स्ट्राइक रेट से रन बनाए, उनका टॉप स्कोर 21 रन का था। दूसरे आईपीएल सीज़न में उनके खेल में सुधार आया और 392 रन के साथ वो टूर्नामेंट के दूसरे सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बने। किंग्स इलेवन पंजाब के साथ अपने तीसरे सीज़न में उन्होंने 12 मैच में 112.44 की स्ट्राइक रेट से 235 रन बनाए। किंग्स इलेवन पंजाब के मालिकों की ये बड़ी ग़लती साबित हुई। इसे भी पढ़ें: 3 खिलाड़ी जिनपर केकेआर अपने राइट टू मैच (आरटीएम) कार्ड का उपयोग कर सकता है
#4 सौरभ तिवारी – रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर – 1.6 मिलियन – साल 2011
झारखंड के मध्य क्रम के बल्लेबाज़ सौरभ तिवारी की बेस प्राइस काफ़ी ऊंची तय की गई थी क्योंकि उन्होंने साल 2008-09 के अंडर-19 वर्ल्ड कप में शानदार प्रदर्शन किया था। इसके बाद उन्हें मुंबई इंडियंस टीम में खेलने का मौक़ा मिला जहां वो ज़ोरदार शॉट लगाते देखे गए। साल 2011 आते-आते उनकी किस्मत का सितारा चमका और उन्हें भारत की वनडे टीम में शामिल किया गया। नीलामी के दौरान तिवारी की बेस प्राइस 100,000 डॉलर रखी गई थी। जब नीलामी शुरू हुई तो उनको लेकर बैंगलौर, कोच्चि और पंजाब टीम के मालिकों के बीच खींचतान शुरू हो गई। आख़िरकार आरसीबी ने उन्हें 1.6 मिलियन डॉलर की बड़ी क़ीमत चुका कर ख़रीदा। हांलाकि उस वक़्त आरसीबी का फ़ैसला देखने में सही लग रहा था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। बैंगलौर के लिए खेले गए अपने पहले सीज़न में तिवारी बुरी तरह फ़ेल हुए। उन्होंने 15 मैच में सिर्फ़ 188 रन बनाया। उनका स्ट्राइक रेट 99.46 का रहा था। इसके बाद सौरभ तिवारी के खेल में गिरावट देखने को मिली। यही वजह रही कि सौरभ को ख़रीदना विजय माल्या की एक बड़ी ग़लती साबित हुई।
#3 दिनेश कार्तिक – दिल्ली डेयरडेविल्स – 12.5 करोड़ रुपये – साल 2014
भारत के विकेटकीपर बल्लेबाज़ दिनेश कार्तिक ने अपने आईपीएल करियर की शुरुआत दिल्ली डेयरडेविल्स टीम से की थी। साल 2011 में वो किंग्स इलेवन पंजाब की टीम में शामिल हुए लेकिन 2012 में वो मुंबई इंडियंस टीम में चले गए जहां उनका प्रदर्शन शानदार रहा। साल 2013 में वो मुबई की तरफ़ से खेलते हुए 7वें सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बने, उसी साल मुंबई टीम ने पहली बार आईपीएल ख़िताब जीता था। अब दिल्ली टीम को कार्तिक की कमी खलने लगी और फिर साल 2014 में नीलामी के दौरान कार्तिक को ख़रीदने की होड़ लग गई। सनराइज़र्स हैदराबाद और दिल्ली के बीच खींचतान में दिल्ली टीम के मालिकों ने कार्तिक को 12.5 करोड़ रुपये में ख़रीदा। हांलाकि उस वक़्त उनकी क़ीमत ज़रूरत से ज़्यादा लग रही थी, क्योंकि मुंबई ने इससे पहले कार्तिक को काफ़ी कम क़ीमत में ख़रीदा था। इतने महंगे बिकने के बावजूद कार्तिक का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और उन्हों 14 मैच में 125.96 की स्ट्राइक रेट से 258 रन बनाए। दिल्ली टीम ने अपना घाटा कम करने के लिए कार्तिक को अगले ही साल आज़ाद कर दिया।
#2 युवराज सिंह – रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर – 14 करोड़ – साल 2014
जब वो अपने करियर के टॉप फ़ॉर्म में थे तो सीमित ओवर के खेल में शायद ही उनसे कोई ज़्यादा बेहतर खिलाड़ी था क्योंकि वो विस्फोटक बल्लेबाज़ी करने में माहिर थे। साल 2014 में वो कैंसर की बीमारी से उबर कर मैदान में आए थे। ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि शायद वो बिक न पाएं। लेकिन आईपीएल नीलामी के दौरान युवराज को लेकर टीम के मालिकों में जंग देखने को मिली। जब राजस्थान रॉयल्स ने बोली लगाना बंद किया तो किग्स इंलेवन पंजाब और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर के बीच युवराज को ख़रीदने के लिए जद्दोजहद शुरू हो गई। ऐसा लगने लगा कि आरसीबी टीम उन्हें 10 करोड़ में ख़रीदने में कामयाब होगी। तभी कोलकाता टीम ने बोली लगानी शुरू कर दी। आख़िरकार युवराज को बैंगलौर टीम ने 14 करोड़ की क़ीमत पर ख़रीदा। हांलाकि युवराज वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाए जितनी उनसे उम्मीद थी। उन्होंने 14 मैच में 135.25 स्ट्राइक रेट से 376 रन ज़रूर बनाए थे लेकिन कभी भी उन्होंने मैच जिताउ पारी नहीं खेली। चूंकि आरसीबी टीम ने ज़्यादातर पैसे युवराज पर ही ख़र्च कर दिए थे इसलिए दूसरे अहम खिलाड़ियों को ख़रीदने में नाकाम रही। यही वजह रही कि वो साल 2014 में पहले ही दौर में बाहर हो गई।
#1 युवराज सिंह – दिल्ली डेयरडेविल्स – 16 करोड़ – साल 2015
ये बहुत ही बदनसीबी की बात है कि भारत के इस महान खिलाड़ी को आईपीएल में ख़रीदा जाना एक ग़लती साबित हुई है। साल 2014 में युवराज को 14 करोड़ में ख़रीदा गया था लेकिन वो फ़्लॉप साबित हुए। इसके बावजूद साल 2015 में युवराज की क़ीमत में कोई कमी नहीं आई, दिल्ली डेयरडेविल्स टीम ने इस खिलाड़ी पर एक बड़ा दांव खेला। दिल्ली डेयरडेविल्स ने साल 2015 में युवराज को ख़रीदने के लिए 16 करोड़ रुपये ख़र्च किए। इस साल युवराज का प्रदर्शन और बुरा रहा, उन्होने 14 मैच में 19 से ज़्यादा की औसत से 248 रन बनाए। उनका स्ट्राइक रेट 118.09 का रहा जो निराशाजनक था। इस साल दिल्ली टीम प्वाइंट टेबल में 7वें स्थान पर रही और युवराज का ख़रीदा जाना बेहद ग़लत फ़ैसला सबित हुआ। लेखक – सोहम समद्दर अनुवादक- शारिक़ुल होदा