भारतीय टेस्ट क्रिकेट इतिहास के पांच शानदार पल

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भारत के 500वें टेस्ट के साथ ही, इस सफर के आगाज से लेकर अब तक की यात्रा को याद करना इतिहास दोबारा जिंदा करने जैसा है। 1932 में इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू करने से लेकर, भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों तक पहुंचने में कई बार कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 82 वर्षों के दौरान, 32 खिलाड़ियों को अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला, जिसमें भारत ने 129 मैच जीते जबकि 157 मुकाबलों में हार का सामना करना पड़ा। अलग-अलग पीढ़ियों ने कई ऐसे यादगार पल दिए हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। इस भाग में, हम भारत के टेस्ट इतिहास के यादगार लम्हों पर नजर डालेंगे। हालांकि ऐसे बहुत सारे ऐसे वाक्ये हुए जो भारतीय क्रिकेट को महान बनाते हैं लेकिन ये पांच उनमें शीर्ष पर हैं: #5 1952, जहां से इस सफर का आगाज़ हुआ (मद्रास) 20 वर्ष में 24 टेस्ट खेलने के बाद, भारतीय टीम ने जीत का मुंह नहीं देखा। एक ऐसे देश के लिए जिस पर ब्रिटिश ने शासन किया, उसको अपना अस्तित्व स्थापित करने के लिए, इंग्लैंड के खिलाफ जीत दर्ज कराने के लिए एक लम्बा सफर तय करना था। इंग्लिश टीम के खिलाफ पांच मैचों की सीरीज में मेजबान के पास इतिहास रचने का अवसर था। इस सीरीज में भारतीय टीम में कई बड़े नाम शामिल थे। दिल्ली में हुए मुकाबले में भारत जीत के करीब पहुंचने के बावजूद, मैच का परिणाम जीत में तबदील नहीं हो पाया। सीरीज का आखिरी मैच मड्रास में खेला गया, विजय हजारे की टीम 0-1 से पिछड़ी हुई थी। हालांकि, लेफ्ट आर्म स्पिनर वीनू मांकड़ में मेहमान टीम के खिलाफ अपनी गेंदबाजी का खूब जलवा दिखाया। जिसके बाद पंकज रॉय और पोली उमरीगर के शतक ने टीम को बड़े अंतराल और एक पारी से जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई और भावी पीढ़ी के लिए एक उदाहरण पेश किया।#4 कड़ा संदेश देने की कोशिश, पर्थ टेस्ट 2008 2008-perth-1474403752-800 खराब शुरुआत के साथ शुरू हुई टेस्ट सीरीज में उस वक्त नया मोड़ आ गया जब मंकी गेट कांड सामने आया। सिडनी टेस्ट के दौरान कई संदिग्ध अंपायरिंग फैसलों की वजह से भारतीय टीम पहले ही काफी नुकसान झेल चुकी थी, और उसके बाद भारत को अपने साथ हुए ऐसे बर्ताव के लिए विरोध दर्ज कराने के लिए वतन लौटने की मांग होने लगी। उन परिस्थितियों में एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत थी, और अनिल कुंबले ने ड्रैसिंग रूम का माहौल ठीक करने और खिलाड़ियों को सही दिशा में अपना प्रतिशोध दिखाने की राह दिखाई। ऑस्ट्रेलिया लगातार अपने 16 मैच जीत चुकी थी, लेकिन कुंबले ने पर्थ की तेज पिच पर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अपने कप्तान के फैसले का सम्मान करते हुए सीनियर खिलाड़ी राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर ने पहली पारी में स्कोर 300 के पार पहुंचाया। जिसके बाद भारतीय तेज गेंदबाजों ने भी अपनी धारदार गेंदबाजी से मेजबान को 212 रन पर समेट दिया। दूसरी पारी में वीवीएस लक्ष्मण ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए 79 रन बनाए और मेजबान ऑस्ट्रेलिया के सामने बड़ा लक्ष्य रखने में अहम भूमिका निभाई। जिसके बाद 19 साल के ईशांत शर्मा ने अपनी रफ्तार का कहर बरपाया और रिकी पोंटिंग को पवेलियन की राह दिखाई। इस शानदार प्रदर्शन के बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और पर्थ में जीत का परचम लहराया। इस मैच को भारत के पेस और बाउंस के तौर याद किया जाता है। #3 शीर्ष पर पहुंचने का संघर्ष, मुम्बई (2009) dhoni-test-mace-1474403915-800 2000 के दशक में आईसीसी टेस्ट रैंकिंक के आरंभ से ही ऑस्ट्रेलिया ने अगले 8 वर्षों तक अपना दबदबा कायम रखा, लेकिन कई मैच विनर खिलाड़ियों के संन्यास लेने के बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम उतनी दमदार नहीं रह गई थी और इस वजह बाकि टीमों को भी आईसीसी रैंकिंग में अपनी जगह बनाने का अवसर मिल गया। हालांकि साउथ अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को शीर्ष से विस्थापित कर दिया, और जल्द ही भारतीय टीम ने अपने होम ग्राउंड पर श्रीलंका के खिलाफ 2-0 से सीरीज जीतकर रैंकिंग में अपनी बादशाहत कायम कर दी। मुम्बई का ब्रेबोर्न स्टेडियम भारत की बादशाहत स्थापित करने का गवाह बना। खुशी मनाते हुए सचिन ने कहा, “ये पल उनके और तमाम भारतीयों के लिए खास है। शीर्ष पर पहुंचकर काफी अच्छा लग रहा है।” अगले 21 महीनों तक भारत शीर्ष पर बना रहा लेकिन इसी के साथ भारत विश्व में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा। #2 सदियों के लिए, ओवल (1971) india-1971-oval-1474404108-800 1971 में जब भारत ने इंग्लैंड की जमीं पर कदम रखा, उस वक्त भारत के सामने विरीत परिस्तिथियों में अपने खेलने की क्षमता को साबित करने चुनौती थी। कुछ महिने पहले वेस्टइंडीज को घर के बाहर हराने के बावजूद, इंग्लैंड में अजीत वाडेकर की टीम को इंग्लैंड के लिए किसी चुनौती के तौर पर नहीं देखा जा रहा था। लेकिन, पहले टेस्ट ने ये जता दिया था कि इस सीरीज में काफी कुछ देखने लायक होगा। एक टीम को जीत के लिए 38 रन की दरकार थी तो दूसरी को मात्र 2 विकेट, लेकिन जीत हुई बारिश की, इसी के साथ मैच रद्द हो गया, और जीत ओवल टेस्ट तक खिसक गई। मेजबान टीम ने 71 रन की बढ़त बनाई, और मैच का रुख पूरी तरह उनके पक्ष में था। लेकिन, भागवत चंद्रशेखर ने ऐसा जादुई स्पैल डाला की एक घंटे में इंग्लैंड को धवस्त कर दिया और को जीत के लिए भारत को 173 रन का चाहिए थे। भारत ने इतिहास रचते हुए शानदार जीत दर्ज कर इंग्लैंड में अपना लोहा मनवाया।#1 कभी हार मत मानो, कोलकाता (2001) 2001-eden-gardens-1474404361-800 मैच फिक्सिंग कांड के बाद भारतीय क्रिकेट कठिन दौर से गुजर रहा था, उस वक्त आम लोगों में फिर से विश्वास कायम करने की जद्दोजहद चल रही थी। मुम्बई में पहला मैच हारने के बाद, कप्तान सौरव गांगुली की टीम पलटवार करने की तैयारी में थी। फॉलो-ऑन झेल रही भारतीय टीम, उस वक्त भी 42 रन से पीछड़ रही थी और सिर्फ 6 विकेट हाथ में थी जब द्रविड़ ने लक्ष्मण के साथ अपनी पारी की शुरुआत की। उन दोनों को क्रीज पर देख अचानक लोगों के मन में उम्मीद जगीं। एक ओर से हैदराबादी हीरो शेन वॉर्न को अपनी कलाईयों का कमाल दिखा रहे थे तो दूसरी ओर से महान गेंदबाज़ ग्लेन मैगराथ को टीम इंडिया की दीवार के नाम से मशहूर द्रविड़ परेशान कर रहे थे। खचाखच भरे स्टेडियम में, भारत ने ईडन गार्डन में शानदार जीत हासिल की और सीरीज का आखिरी मैच भी भारत के नाम रहा। भारत सीरीज 2-1 से जीतने में कामयाब रहा। लोकिन ईडन गार्डन्स पर मिली जीत एक ऐतिहासिक पल था जो आज भी उन तमाम लोगों को याद है जो इस मैच के गवाह बने।