दादा के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने भारत के लिए 113 टेस्ट मैच खेले हैं जिसमें उन्होंने 42.17 की औसत से 7212 रन बनाये हैं। बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने भारत के लिए 49 मैचों में कप्तानी भी की है जिसमें टीम को 41 मैचों में जीत मिली थी। इसके अलावा दादा ने भारत के लिए 311 वनडे मैच खेले हैं जिसमें 41.02 की औसत में उन्होंने 11363 रन बनाए हैं। उन्होंने 147 वनडे मैचों में टीम की कप्तानी की जिसमें टीम को 76 मैचों में जीत मिली थी। दादा को साल 2000 में भारतीय टीम की कप्तानी मिली थी जब टीम पर फिक्सिंग के आरोप लगे थे और कई खिलाड़ियों को बैन कर दिया गया था। उन्होंने अपनी कप्तानी से टीम की दशा और दिशा बदल दी। उनकी कप्तानी में ही टीम ने विदेश में जाकर टेस्ट मैच जीतना शुरू किया। आज गांगुली 46 साल के हो रहे हैं और इस मौके पर हम आपको उनके करियर के 5 बेहतरीन लम्हें बताने जा रहे हैं:
#5 करियर के पहले दोनों टेस्ट मैचों में शतक
सौरव गांगुली ने 1996 में इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में अपना टेस्ट डेब्यू किया था और इस मैदान पर डेब्यू मैच में शतक बनाने वाले पहले भारतीय और कुल तीसरे बल्लेबाज बने थे। अपने इसी फॉर्म को जारी रखते हुए दादा ने ट्रेंट ब्रिज में खेले अपने दूसरे टेस्ट में भी शतकीय पारी खेली और टेस्ट क्रिकेट में धमाकेदार एंट्री की। उनके सामने उस समय इंग्लैंड की मजबूत गेंदबाजी आक्रमण थी जिसमें डोमिनिक कॉर्क, एलन मुलाली, पीटर मार्टिन और क्रिस लुईस शामिल थे। उनकी पेस, बाउंस और स्विंग का दादा पर कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने इसके खिलाफ आसानी से रन बनाएं।
#4 वापसी के बादशाह
कोच ग्रेग चैपल से विवाद की वजह से साल 2005 में गांगुली को टीम से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने घरेलू मैचों में शानदार खेल दिया और इसी वजह से उन्हें टीम में दोबारा मौका मिला गया। साल 2006 में दक्षिण अफ्रीका दौरे के लिए दादा को टीम में शामिल किया गया। वापसी मैच में उनके सामने शॉन पोलक, मखाया एंटिनी, डेल स्टेन, जैक्स कैलिस और आंद्रे नेल जैसे खतरनाक गेंदबाज थे। इनके सामने भारतीय टीम पहली पारी में 249 रन ही बना पाई जिसमें 51 रन दादा के ही थे। दक्षिण अफ्रीका की टीम अपनी पहली पारी में मात्र 84 रन ही बना पाई। अंत में भारत ने इस मैच को जीत लिया और दक्षिण अफ्रीका में यह टीम की पहली जीत भी थी। इसके साथ ही दादा ने आलोचकों को करारा जबाव देते हुए टीम में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की।
#3 2003 विश्वकप में टीम को फाइनल तक पहुंचाया
2003 में दक्षिण अफ्रीका, ज़िम्बाब्वे और केन्या में हुए विश्वकप में गांगुली के पास अपनी कप्तानी की क्षमता दिखाने का शानदार मौका था और उन्होंने किसी को निराश नहीं किया। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने लीग मैचों में नीदरलैंड, ज़िम्बाब्वे, नामीबिया, इंग्लैंड और हराया जबकि उसे ऑस्ट्रेलिया से एकमात्र हार मिली। इसके बाद हुए सुपर सिक्स के मुकाबले में भारत ने केन्या, श्रीलंका और न्यूजीलैंड को आसानी से हरा दिया। सेमीफाइनल में केन्या को हराकर टीम 1983 के बाद पहली बार फाइनल में पहुँच गयी। फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को आसानी से हरा दिया लेकिन दादा की कप्तानी की काफी तारीफ हुई। उस विश्वकप में गांगुली ने 11 मैचों में 58.12 की औसत में 465 रन बनाये थे और सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाजों में दूसरे स्थान पर थे।
#2 गाबा में शतक
साल 2003 में भारतीय टीम टेस्ट खेलने ऑस्ट्रेलिया पहुंची। इस टेस्ट सीरीज स्टीव वॉ के करियर की अंतिम सीरीज भी थी। उस दौरान मेजबान टीम ऐसा खेल दिखा रही थी कि लगा भारत उनके सामने कहीं नहीं ठीक पाएगा। ब्रिसबन के गाबा में खेले गये पहले टेस्ट मैच में ही गांगुली के बल्ले से 144 रन निकले जिसमें 18 चौके शामिल थे। ऑस्ट्रेलिया के गेदबाजों के पास उनकी इस पारी का कोई जबाव नहीं था। वह मैच तो ड्रा हो गया लेकिन दादा ने अपनी उस पारी से टीम में जोश भर दिया। भारत ने एडिलेड में खेले गए सीरीज के दूसरे मैच को जीत लिया वहीं तीसरे मैच में जीत हासिल कर ऑस्ट्रेलिया ने सीरीज में बराबरी हासिल कर ली। सिडनी में हुआ चौथा टेस्ट ड्रा रहा और भारत ने बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी अपने पास बरकरार रखी।
#1 नैटवेस्ट सीरीज़ का फ़ाइनल 2002
इसे कौन भूल सकता है। 2002 के नैटवेस्ट सीरीज़ के फ़ाइनल में इंग्लैंड ने भारत के सामने जीत के लिए 326 रनों का लक्ष्य रखा था। एक समय भारतीय टीम का स्कोर 146/5 था और हार सामने दिख रही थी। उसी समय दो युवा बल्लेबाज मोहम्मद कैफ और युवराज सिंह ने शानदार पारी खेल टीम को जीत तक पहुंचा दिया। इसके बाद सौरव गांगुली ने लॉर्ड्स की बालकनी में शर्ट लहराकर भारत की जीत का जश्न मनाया था। आज भी उन्हें इस बात का खेद है। संन्यास के बाद इसपर पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि जीत के बाद लॉर्ड्स का माहौल ऐसा बन गये था कि उन्हें शर्ट उतारना पड़ा। सौरव गांगुली हमेशा एक आक्रामक कप्तान माने जाते थे जो अपनी भावनाओं को छुपाकर नहीं रखते थे लेखक- मित संपत अनुवादक- ऋषिकेश सिंह