लक्ष्य का पीछा करना क्रिकेट में एक कला है जिसके लिए एक मजबूत मनोदशा, महत्वपूर्ण मूल्यांकन और गणनात्मक जोखिम की आवश्यकता होती है। बल्लेबाज को अपने काम में बेहद सतर्कता बरतनी पड़ती है, जिसमें विपक्ष के कमजोर गेंदबाजों पर अटैक करना और अच्छों को चुनौतीपूर्ण तरीके से खेलना होता है। पारंपरिक रूप से दूसरी पारी में बल्लेबाजी को क्रिकेट में एक चुनौतीपूर्ण कार्य के रूप में देखा जाता है। विकेट हाथों में रखने के साथ आवश्यक दर को बनाए रखने का दबाव हमेशा बल्लेबाज के दिमाग में चलता है। स्कोरबोर्ड पर रन टांगने का काम बल्लेबाजों का होता है, अटैकिंग गेंदबाजों का काम और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाता है। रनों का पीछा करने की स्थिति के लिए अच्छी समझ की आवश्यकता होती है, जैसे कि कब सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अपनाना है और कब गियर बदलना है। टीम का दृष्टिकोण इसमें महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनकी पारी का भाग्य तय करता है। उच्चतम स्कोर का पीछा करते हुए बल्लेबाजों विशेष रूप से सलामी बल्लेबाजों को शुरु से ही आक्रामक शुरुआत करनी होती है और पावरप्ले ओवरों में अधिकांश रन बटोरने की जरूरत होती है। मुश्किल मध्यम स्कोर मैचों में विकेट हाथों में रखते हुए स्कोरबोर्ड आगे बढ़ाये रखने का काम मध्य क्रम का होता है। करीबी चेज़ रोलर कोस्टर सवारी की तरह ही होते हैं, प्रशंसकों के दिल की धड़कन हर गेंद के साथ बढ़ती जाती है खिलाड़ियों पर मैच का दबाव बढ़ता जाता है। नतीजतन, हमने कई बड़े बल्लेबाजों सहित कई खिलाड़ियों को देखा है, जो पिछले कुछ वर्षों में भारी स्कोर के दबाव में फंस गए हैं। फिर भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां नए अनुभवहीन बल्लेबाजों ने दबाव को काबू किया है और अपनी नब्ज़ को थामते हुए टीम को जीत के पार पहुंचाया है। पिछले दशक में एमएस धोनी, विराट कोहली, एबी डिविलियर्स, माइकल हसी जैसे खिलाड़ियों ने एक शांत दिमाग के साथ अवसरों को पकड़ते हुए और स्थिति पर काबू करते हुए लक्ष्य का पीछा करने की कला में महारत हासिल की है।हम भारतीय बल्लेबाजों द्वारा सबसे अच्छे चेज़ पर नजर डालते हैं, जिनमें से कुछ ने भारत को प्रतिष्ठित आईसीसी खिताब जीतने में मदद की-
#6 एमएस धोनी 183* बनाम श्रीलंका, 2005
दोनों पक्षों के बीच सात मैचों की द्विपक्षीय श्रृंखला का यह तीसरा वनडे मैच सवाई मान सिंह स्टेडियम में खेला गया था। श्रीलंका खेल में 0-2 से पीछे चल रहा था और अपने भाग्य को बदलने की कोशिश कर रहा था। दिग्गज विकेटकीपर खिलाड़ी कुमार संगकारा ने शानदार 138 और उनके अनुभवी साथी महेला जयवर्धने ने 71 रनों की पारी खेली और श्रीलंका को 50 ओवरों में 298/4 रन पर पहुंचा दिया। 299 के लक्ष्य का पीछा करना कभी भी आसान नहीं होता है और पहले ओवर में सचिन तेंदुलकर के विकेट ने भारत के लिए चीजों को और भी खराब कर दिया। हालांकि इसके बाद में मैदान पर मौजूद दर्शकों ने क्लास और पावर हिटिंग का एक नजारा देखा और ये आग किसी के नहीं बल्कि महेंद्र सिंह धोनी के बल्ले से निकली जिसने मैदान के चारों ओर रनों की बरसात करते हुए श्रीलंका के गेंदबाजों की जमकर खबर ली। धोनी ने गति और स्पिन पर बराबर नियंत्रण किया और सिर्फ 85 गेंदों में शतक लगाया।उन्होंने अगले 60 गेंदों में 83 रन जोड़ डाले और एकदिवसीय मैचों में विकेटकीपर के उच्चतम स्कोर के साथ, एडम गिलक्रिस्ट के 172 रनों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। एमएस धोनी ने 145 गेंदों पर 183* रनों की अपनी पारी में 15 चौके और 10 छक्के लगाए, जो रनों का पीछा करते हुए किसी भारतीय का पहला व्यक्तिगत और विश्व स्तर पर दूसरा सबसे ज्यादा स्कोर है।
#5 रोहित शर्मा 141* बनाम ऑस्ट्रेलिया, 2013
एक बार फिर यह जयपुर का मैदान था और इस बार मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ था। सात मैचों की सीरीज़ के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 359/5 रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया। और यह इसलिए भी शानदार था क्योंकि वनडे में पहली बार सभी शीर्ष 5 बल्लेबाजों ने अर्धशतक बनाया था। ऑस्ट्रेलियाई कप्तान जॉर्ज बेली ने केवल 50 गेंदों पर 92 रन बनाये। ऑस्ट्रेलिया ने 300 से अधिक स्कोर खड़ा करने पर पहला वनडे जीत लिया था और एक बार फिर कंगारुओं के लिए जीत सुनिश्चित लग रही थी। हालांकि, भारतीय बल्लेबाजों की योजना कुछ और ही थी। सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा और शिखर धवन ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों पर कहर बरपा दिया और केवल 26 ओवरों में पहले विकेट के लिए 176 रन जोड़ डाले। रोहित शर्मा विराट कोहली के साथ मिलाकर सावधानी से खेला क्योंकि भारत ने अपना पहला विकेट गंवा दिया था। रोहित ने 100 रनों पर स्ट्राइक रेट के साथ अपनी पारी खेली और 102 गेंदों में 100 रन बनाये। इसके बाद हिटमैन ने गियर बदलते हुए 23 गेंदों में शेष 41 रन बनाए, इस पारी उन्होंने 17 चौके और चार छक्के जड़े। विराट कोहली ने एक भारतीय द्वारा सबसे तेज़ शतक बनाया, दोनों ने मिलकर 360 के लक्ष्य को छोटा साबित कर दिया और साढ़े छह ओवर शेष रहते हुए मैच को अपनी मुठ्ठी में कर लिया। रोहित की इस पारी ने भारत को एक प्रसिद्ध जीत सौंपी और भारत वनडे में दूसरे सबसे ज्यादा रनों के लक्ष्य का पीछा करने में सफल रहा।
#4 सचिन तेंदुलकर 134 बनाम ऑस्ट्रेलिया, शारजाह कप फाइनल, 1998
भारत ने 4 लीग मैचों में से केवल 1 जीत के साथ बेहतर नेट रन-रेट (एनआरआर) के आधार पर फाइनल में प्रवेश करने में सफलता पायी। भारत ने अपने दोनों मैच दूसरे फाइनलिस्ट ऑस्ट्रेलिया से हार चुका था, जो बेहतरीन फॉर्म में थे और फाइनल में पहुंचने के लिए अपने सभी 4 मैच जीते थे। पहले बल्लेबाजी करने के लिए आमंत्रित होने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने स्कोरबोर्ड पर 272 रन बनाए, जिसे उन दिनों में एक बड़ा स्कोर माना जाता था। सचिन तेंदुलकर ने सौरव गांगुली के साथ पारी की शुरुआत की। हालांकि गांगुली जल्द ही पवेलियन लौट गए, सचिन ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी की खबर लेने की ठान ली थी। इस महान भारतीय खिलाड़ी ने पिछले मैच में ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ तीन अंकों का स्कोर भी दर्ज किया था और ऐसा लग रहा था कि वह उसी फॉर्म को आगे बढ़ाना चाहते हैं। एक पारी में जो 'रेगिस्तानी-तूफान' के नाम से प्रसिद्ध हो गयी, मास्टर ने 134 रनों के लिए 12 चौके और 3 छक्के लगाए। उन्होंने दूसरे विकेट के लिए 89 रन जोड़े और चौथे विकेट के लिए कप्तान मोहम्मद अज़हरुद्दीन के साथ120 रनों की साझेदारी की। यह एक प्रभावशाली पारी थी और ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ ने भी माना कि वह यह मैच सिर्फ एक व्यक्ति से हार गए। तेंदुलकर को अपने सनसनीखेज प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ द मैच और द मैन ऑफ द टूर्नामेंट से नवाज़ा गया। साथ ही उस दिन तेंदुलकर का 25वां जन्मदिन भी था, जिसने इस अवसर को और भी विशेष बना दिया।
#3 विराट कोहली 183 बनाम पाकिस्तान, एशिया कप 2012
जब आप लक्ष्य का पीछा करने पर बात करते हैं तो विराट कोहली का उल्लेख ना करना असंभव है। रन मशीन ने लक्ष्य का पीछा करने कला में महारत हासिल की है। परिस्थितियों को अनुसार ढ़लने की क्षमता और दबाव को अवशोषित करने की उनकी क्षमता ने कई बार यह सुनिश्चित किया है कि भारत अनगिनत अवसरों पर विजेता पक्ष के साथ मैच समाप्त करेगा। बांग्लादेश के खिलाफ निराशजनक हार का सामना करने के बाद भारत पर अपने कट्टर विरोधी पाकिस्तान के खिलाफ एक भयंकर दबाव वाले मुठभेड़ के लिए तैयार था। पाकिस्तानी सलामी बल्लेबाज नासीर जमशेद और मोहम्मद हफीज दोनों ने शतक लगाए और भारतीय टीम के लिए 330 का लक्ष्य निर्धारित किया। वीरेंद्र सहवाग की अनुपस्थिति में गौतम गंभीर ने सचिन तेंदुलकर के साथ पारी का आगाज किया। भारत ने अपना खाता खोले के बिना पहला विकेट खो दिया व एक और हार सामने दिखाई देने लगी। हालांकि, विराट कोहली ने कुछ दिनों पहले एक समान लक्ष्य को पार कर दिया गया था। कोहली ने टूर्नामेंट में श्रीलंका के खिलाफ एक शतक भी था। उन्होंने पाकिस्तानी गेंदबाजी के खिलाफ मोर्चा संभाला और शॉट्स की विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित की। उन्होंने सिर्फ ढाई 22 ओवर में भारत का स्कोर 150 रन कर दिया। उन्होंने तेंदुलकर के साथ शतकीय साझेदारी बनायी और रोहित शर्मा के साथ 172 रन की शानदार साझेदारी की, इस प्रकार 13 गेंदें शेष रहते हुए भारतीय की जीत सुनिश्चित कर दी। कोहली ने 22 चौके और एक छक्के की मदद से 183 रन बनाये। यह वनडे में पाकिस्तान के खिलाफ सबसे ज्यादा व्यक्तिगत स्कोर है। इस पारी ने कोहली की प्रतिष्ठा को एक शानदार चेज़र के रूप में स्थापित किया, जिसे उन्होंने अन्य बेहतरीन पारियों के साथ और मजबूत किया।
#2 मोहम्मद कैफ 87*, नैटवेस्ट फाइनल, 2002
यह मैच कप्तान सौरव गांगुली के खुशी मनाने के अनूठे तरीके के लिए क्रिकेट प्रशंसकों द्वारा याद किया जाता है। हालांकि, वह पल कभी संभव नहीं हो सकता था अगर इस अवसर पर दो युवा खिलाड़ी आगे निकल कर सामने नहीं आते। टॉस जीतने के बाद इंग्लैंड ने फाइनल में पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। मार्कस ट्रेस्कोथिक और इंग्लिश कप्तान नासिर हुसैन की शतक के साथ-साथ एंड्रयू फ्लिंटॉफ निचले क्रम में अटैक करके इंग्लैंड को 50 ओवरों में 325/5 का लक्ष्य खड़ा किया। भारतीय सलामी बल्लेबाज सौरव गांगुली और वीरेंद्र सहवाग ने भारत को तेज शुरुआत दी और सिर्फ 14 ओवरों में 100 रन बना डाले। हालांकि, गांगुली के विकेट गिरने के बाद अचानक विकेट झड़ने लगे और भारत ने अगले 40 रनों पर अपने शीर्ष 5 बल्लेबाज खो दिये। जब 180 रन शेष रहते हुए सचिन तेंदुलकर आउट हो गये, तो अधिकांश प्रशंसकों ने जीत की उम्मीद पीछे छोड़ दी। हालांकि दो युवा नायकों ने वैश्विक स्तर पर उनके आगमन की घोषणा की। अंडर-19 के स्टार युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ ने 121 रन की साझेदारी कर क्लास और परिपक्वता का प्रदर्शन किया और उनकी यह साझेदारी मैच बदलने वाली साबित हुई। अभी भी 80 रनों शेष रहते हुए युवराज का विकेट गिर गया लेकिन कैफ ने अपने विकेट को संभाल कर रखा और लॉर्ड्स में एक प्रसिद्ध भारतीय जीत की इबादत लिखी। 1983 विश्वकप के बाद क्रिकेट के मक्का में इस घटना ने भारतीय प्रभुत्व में एक और मील का पत्थर स्थापित कर दिया।
#1 एमएस धोनी 91* बनाम श्रीलंका, विश्वकप फाइनल, 2011
एमएस धोनी पड़ोसी देश के खिलाफ उच्च दबाव वाले मैच का पीछा करने में बेहतरीन प्रतीत होते है। 2011 विश्व कप भारतीय क्रिकेट के इतिहास के साथ-साथ धोनी के नेतृत्व में नया इतिहास रचने वाला मौका था। विश्व कप भारत में आयोजित होने वाला था और सचिन तेंदुलकर के लिए आखिरी विश्व कप होने के साथ ही खिलाड़ियों में इसे लेकर एक भावनात्मक लगाव था। युवराज सिंह, सचिन तेंदुलकर और कप्तान एमएस धोनी की सामरिक शक्ति पर सवार होकर भारत ने टूर्नामेंट के फाइनल में जगह बनायी थी। हालांकि भारतीय गेंदबाजों ने एक अनुशासित प्रयास किया फिर भी महेला जयवर्धने के क्लासिक शतक के साथ पारी का पुनर्निर्माण किया और स्कोर बोर्ड पर 274/6 रन खड़ा कर दिया। जवाब में, भारत ने अपने सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को 0 पर खो दिया और वानखेड़े दर्शक जल्द ही सचिन तेंदुलकर के आउट होने पर शोक में डूब गया। 83 रनों के बाद भारत ने विराट कोहली के रूप में तीसरे विकेट खो दिया। इस बिंदु पर एमएस धोनी, जो हमेशा कुछ अलग सोचने के लिए जाने जाते हुए उन्होंने फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह की जगह खुद को आगे लाने का फैसला किया। उन्होंने गंभीर के साथ पारी का सामना किया और मुथैया मुरलीधरन के ओवरों की जमकर क्लास लगायी। एमएसडी अंत तक क्रीज पर टिके रहे और अपने ट्रेडमार्क शैली के छक्के के साथ पारी समाप्त कर दी, एक शॉट जिसमें वर्षों से दबे भावनाओं का सैलाब ला दिया व मास्टर ब्लास्टर और एक अरब भारतीयों के सपनों को पूरा कर दिया। धोनी ने 79 गेंदों में खेली 91* रन की सनसनीखेज पारी के लिए मैन ऑफ द फाइनल चुना गया। लेखक- इशान जोशी अनुवादक- सौम्या तिवारी