क्रिकेट के इतिहास में कई महान खिलाड़ी देखने को मिले हैं जिन्होंने विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। दूसरी तरफ़ कई ऐसे खिलाड़ी भी हैं जिनके पार हुनर की कोई कमी नहीं थी लेकिन वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कमाल दिखाने में नाकाम रहे। हम यहां ऐसे ही 8 क्रिकेटर्स को लेकर चर्चा कर रहे हैं जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ख़ुद को स्थापित नहीं कर पाए, हांलाकि इन सभी खिलाड़ियों में ज़बरदस्त क़ाबिलियत थी। फिर भी कई ऐसी वजहें थीं जो इन क्रिकेटर्स के नुक़सान की वजह बनी। #1) जेसी राइडर (न्यूज़ीलैंड) न्यूज़ीलैंड के महान सलामी बल्लेबाज़ स्टीफ़न फ़्लेमिंग के संन्यास लेने के बाद कीवी टीम को एक आक्रामक बाएं हाथ के बल्लेबाज़ की तलाश थी। ऐसा बल्लेबाज़ जो टॉप ऑर्डर में खेलते हुए टीम को एक अच्छी शुरुआत दे सके। जेसी राइडर ने 5 फ़रवरी 2008 को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। धीरे-धीरे वो तीनों फ़ॉर्मेट में छा गए क्योंकि वो ब्रैंडन मैकलम के साथ बल्लेबाज़ी करते हुए कीवी टीम को एक आक्रामक शुरुआत देते थे। अपने करियर में राइडर पर कई बार अनुशासनहीनता के आरोप लगे और वो टीम से बाहर हो गए। इसके बाद राइडर की वापसी मुश्किल हो गई।#2) कैमरन वाइट (ऑस्ट्रेलिया) 2000 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई टीम काफ़ी मज़बूत हो चुकी थी, इस टीम के अतिरिक्त खिलाड़ी भी मौका मिलने पर ज़बरदस्त प्रदर्शन करते हुए देखे जाते थे। कैमरन वाइट भी ऐसे खिलाड़ियों में शुमार थे। उनमें हुनर कूट-कूट कर भरा था लेकिन वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमाल नहीं दिखा पाए। वाइट ने 5 अक्टूबर 2005 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया था। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ से 91 वनडे और 4 टेस्ट मैच खेले हैं। साल 2010 में माइकल क्लार्क ने संन्यास ले लिया था, ऐसे में वाइट को टी-20 की कप्तानी सौंपी गई थी। बाद में उनसे कप्तानी छीन ली गई क्योंकि वो अच्छे फ़ॉम में नहीं चल रहे थे।3) जस्टिन केंप ( दक्षिण अफ़्रीका ) दक्षिण अफ़्रीका ने विश्व क्रिकेट को कई हीरे दिए हैं, इन में जैक्स कैलिस, शॉन पोलक, डेल स्टेन, ग्रीम स्मिथ शामिल हैं। कैलिस के बाद जस्टिन केंप इस टीम के दूसरे सबसे बेहतरीन ऑलराउंडर थे। केंप ने 20 जनवरी 2001 में टेस्ट मैच में श्रीलंका के ख़िलाफ़ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। साल 2008 में वो एक बाग़ी क्रिकेट लीग ‘आईसीएल’ से जुड़ गए थे। ये क्रिकेट लीग न तो आईसीसी और न ही किसी अन्य क्रिकेट बोर्ड से मान्यता प्राप्त थी। ऐसे में केंप का करियर दक्षिण अफ़्रीकी टीम के साथ हमेशा के लिए ख़त्म हो गया। आईसीएल में वो ‘हैदराबाद हीरोज़’ टीम का हिस्सा बने थे। बाद में वो आईपीएल की चेन्नई टीम में शामिल हो गए थे।4) ड्वेन स्मिथ (वेस्टइंडीज़) ड्वेन स्मिथ एक आक्रामक बल्लेबाज़ थे, वो वेस्टइंडीज़ टीम में बतौर ओपनर और मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज़ के तौर पर खेल चुके हैं। उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ टेस्ट मैच के ज़रिए 2 जनवरी 2004 में अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने वेस्टइंडीज़ टीम की जीत में काफ़ी योगदान दिया है। उन्होंने 105 वनडे और 10 टेस्ट मैच में शिरकत की थी। वो आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स और गुजरात लॉयंस टीम का हिस्सा रहे हैं।5) ल्यूक राइट (इंग्लैंड) एक वक़्त इंग्लैंड टीम के पास एंड्रू फ़्लिंटॉफ़ के तौर पर एक शानदार ऑलराउंडर मौजूद था, उनके संन्यास लेने के बाद इंग्लिश टीम में उनकी जगह ल्यूक राइट आए। राइट ने 5 सितंबर 2007 में भारत के ख़िलाफ़ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने इंग्लैंड की तरफ़ से 50 वनडे और 51 टी-20 मैच खेले हैं। वो अकसर चोट का शिकार रहे, जिसकी वजह से उनके फ़ॉम में भी काफ़ी गिरवाट आई। वो इंग्लैंड टीम के दूसरे फ़्लिंटॉफ़ बन सकते थे, लेकिन वो लगातार बेहतर प्रदर्शन करने में नाकाम रहे।6) थिलिना कांदांबी (श्रीलंका) श्रीलंकाई टीम में एक वक़्त सनथ जयसूर्या और तिलकरत्ने दिलशान को टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी के लिए भेजा गया। मिडिल ऑर्डर की ज़िम्मेदारी कुमार संगाकारा और महेला जयवर्धने संभाल रहे थे। टीम में फिर थिलिना कादांबी की भी एंट्री हुई, कांदांबी एक बेहद आक्रामक बल्लेबाज़ थे जो गेंद को बाउंड्री के पार पहुंचाने की कला जानते थे। लेकिन वो अकसर चोट की वजह से टीम से बाहर हो जाते थे। वो ज़्यादा वक़्त तक श्रीलंकाई टीम में टिकने में नाकाम रहे।7) तौफ़ीक़ उमर (पाकिस्तान) हर कोई इस बात से वाक़िफ़ है कि पाकिस्तान ने हर दौर में विश्व क्रिकेट को कई हुनरमंद खिलाड़ी दिए हैं। इस टीम में तौफ़ीक उमर एक आक्रामक बल्लेबाज़ के तौर पर शामिल हुए थे। उन्होंने 29 अगस्त 2001 को बांग्लादेश के ख़िलाफ़ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। तौफ़ीक़ उमर ने 43 टेस्ट और 22 वनडे मैच खेले हैं। पाकिस्तान की तरफ़ से 40 से ज़्यादा टेस्ट मैच खेलने के बावजूद उनकी बल्लेबाज़ी का औसत महज़ 38 है। यही वजह है कि वो टीम में आते-जाते रहे और कभी ख़ुद को स्थापित नहीं कर पाए। वो विकेटकीपिंग भी करते हुए देखे गए। उन्होंने अपना आख़िरी टेस्ट मैच साल 2014 में कीवी टीम के ख़िलाफ़ खेला था।8) यूसुफ़ पठान (भारत) भारतीय क्रिकेट के इतिहास मे ऐसा काफ़ी कम देखने को मिलता है कि कोई बल्लेबाज़ अपनी पहली गेंद से बड़े शॉट लगाना शुरू कर दे। यूसुफ़ ने साल 2007 की आईसीसी टी-20 टूर्नामेंट में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने मैच के पहले ही ओवर में मोहम्मद आसिफ़ की गेंद पर छक्का जड़ दिया। इसके साथ ही पठान ने अपनी शानदार दस्तक दी थी। इसके बाद आईपीएल के पहले सीज़न में यूसुफ़ को ज़बरदस्त कामयाबी हासिल हुई। फिर वो टीम इंडिया में बतौर ऑलराउंडर शामिल हुए। उन्होंने वैसा ही प्रदर्शन किया जिसके लिए वो जाने जाते थे। साल 2011 के आईसीसी वर्ल्ड कप टूर्नामेंट के लिए वो टीम इंडिया में चुने गए। उस वर्ल्ड कप में उनका प्रदर्शन काफ़ी बुरा रहा और वो किसी भी मैच में अर्धशतक भी नहीं लगा पाए। वो अपने मौके को भुनाने में पूरी तरह नाकाम रहे। टीम इंडिया में उस वक़्त ज़्यादातर रन टॉप ऑर्डर बल्लेबाज़ ही बना रहे थे। पठान साल 2008 से लेकर साल 2011 तक टीम इंडिया के रेग्युलर सदस्य रहे थे, लेकिन 2011 के वर्ल्ड कप के बाद वो टीम में आते-जाते रहे। उनके बुरे फ़ॉम के वजह से वो टीम इंडिया से बाहर हो गए। उन्होंने अपना आख़िरी अंतरराष्ट्रीय मैच 18 मार्च 2012 में खेला था। लेखक- निखिल परिणाम अनुवादक- शारिक़ुल होदा