टेस्ट क्रिकेट में शुरुआत से ही वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजो का दबदबा रहा। 50 के दशक में वेस्ट हॉल और रॉय गिलक्रिस्ट ने नई गेंद से जिम्मेदारी संभाली। 60 के दशक में चार्ली ग्रिफिथ ने अपनी रफ़्तार से बल्लेबाजों पर खौफ जमाया। 70 के दशक में वेस्टइंडीज के पास तेज गेंदबाजी का बेहतर संतुलन नहीं था, लेकिन फिर कॉलिन क्रॉफ्ट की एंट्री हुई। 80 के दशक में वेस्टइंडीज के पास विश्व के सबसे घातक चार तेज गेंदबाज मौजूद थे। क्रॉफ्ट के अलावा माइकल होल्डिंग, जोएल गार्नर और एंडी रोबर्ट्स का खौफनाक तेज गेंदबाजी आक्रमण बना। इसी में मालकोम मार्शल को सबसे ज्यादा तारीफे मिली। 90 में वॉल्श और कर्टली एम्ब्रोस ने अपना धावा बोला। दोनों ने तेज गेंदबाजी की नई परिभाषा लिखी। इस बीच इयान बिशप का करियर चोट के कारण जल्दी समाप्त हो गया। एम्ब्रोस-वॉल्श युग के बाद मर्विन डिल्लन, निक्सन मैकलीन, फ्रेंक्लिन रोस और रेयोन किंग ने प्रतिभा दर्शायी। शताब्दी के बदलते ही, पेड्रो कॉलिन्स, डैरेन पॉवेल, फिडेल एडवर्ड्स और जेरोम टेलर आए, लेकिन कोई उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। वहीं, एंडरसन कमिंस, कैमरून कफी, कोरे कॉलीमोर, इयान ब्रैडशॉ, वस्बेर्ट ड्रैक्स, टिनो बेस्ट और रवि रामपॉल ने सीमित ओवरों में बेहतर प्रदर्शन किया। मौजूदा समय में केमार रोच और शेनन गेब्रियल इस परंपरा को बढ़ा रहे हैं। स्टार ऑलराउंडर ड्वेन ब्रावो अपने मिश्रण की वजह से काफी सफलता हासिल कर रहे हैं।