आउटस्टैंडिंग, बेहतरीन, उम्दा और न जाने कौन से शब्द हमने सुने हैं, विराट कोहली के लिए। सभी कॉमेंटटर्स कोहली के बारे में यही बातें कहते हैं। मौजूदा समय के दिग्गज बल्लेबाज़ विराट कोहली ने कई मुश्किल परिस्थितियों में महत्वपूर्ण पारियां खेली हैं। हालाँकि उन्हें इन पारियों के लिए वो सराहना नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। लेकिन उन यादगार लम्हों के अलावा भी कोहली ने कई पारियां खेली हैं लेकिन किसी और के पारी के सामने कोहली की पारी को ज्यादा अहमियत नहीं मिली। ये रही विराट कोहली की 5 महत्वपूर्ण लेकिन कम आंकी गयी पारियां: #5 वेस्टइंडीज के खिलाफ 79 रन, आईसीसी चैंपियंस ट्राफी 2009 विराट कोहली टीम इंडिया की ओर से पहला बड़ा टूर्नामेंट खेल रहे थे। ग्रुप स्टेज के आखरी मैच में विराट ने वेस्टइंडीज के खिलाफ 79 रनों की पारी खेली। दक्षिण अफ्रीका के उछाल और तेज़ी से भरी पिचों पर किसी भी युवा खिलाड़ी को काफी मुश्किल हो सकती है। वेस्टइंडीज की गेंदबाज़ी पर सवाल खड़े किये जा सकते हैं, लेकिन दक्षिण अफ्रीका की पिच ऐसी हैं जहाँ पर ख़राब गेंदबाज भी नाम में दम कर जाएँ। 130 रनों के छोटे लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम ने 12 रन पर दो विकेट गंवा दिए। ऐसे में एक संभली हुई पारी और ठोस साझेदारी की ज़रूरत थी। कोहली ने संभल कर पारी खेली और टीम का स्कोर आगे बढ़ाया, इसके साथ ही वे नाबाद रहे और टीम को जीत दिलाई। इस पारी के लिए उन्हें मैन ऑफ़ द मैच का अवार्ड भी मिला। कोहली की बाकि बेहतरीन परियों के सामने उनकी ये पारी कहीं गुमनाम हो गयी। #4 2011, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ डरबन में 54 2011 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एकदिवसीय सीरीज की शुरुआत भारत की 135 रनों के हार से हुई। सभी को ऐसा लगा कि अब भारतीय टीम कुछ खास नहीं कर पाएगी। लेकिन सभी को हैरान करते हुए विराट ने 70 गेंदों में 54 रनों की पारी खेली। लेकिन वे अपनी टीम को 290 के लक्ष्य तक पहुँचाने में असफल रहे। लेकिन उस दिन कोहली ने अपनी काबिलियत दिखाई हमे। उन्होंने गेंदबाज़ों के लिए बनी पिच पर दक्षिण अफ़्रीकी गेंदबाज़ों का जैसा सामना किया, उसकी जीतनी तारीफ़ की जाये उतनी कम है। लेकिन यहाँ और टीम की हार और बाकि बल्लेबाजों के ख़राब प्रदर्शन के कारण, कोहली की बल्लेबाज़ी अनदेखी रह गयी। #3 2008 में श्रीलंका के खिलाफ 54 भारत ने श्रीलंका में एक यादगार सीरीज जीती। ये सीरीज खास इसलिए थी क्योंकि, यहाँ पर टीम इंडिया के बल्लेबाजों ने मिस्ट्री गेंदबाज अजंथा मेंडिस की जमकर खबर ली थी और उन्हें रहस्य को खोला था। यहाँ पर विराट का योगदान भी अहम था। अपना डेब्यू मैच और करियर का केवल चौथा मैच खेल रहे विराट कोहली, श्रीलंका के चमिंडा वास और कुलसेकरा की गेंदों का सामना करने आएं। लेकिन संभल कर खेलते हुए कोहली ने एक यादगार पारी खेली और 54 रन बनाए। इससे ड्रेसिंग रूम के बाकि बल्लेबाजों का बोझ कम हुआ। कोहली उस मैच में अठारहवें ओवर तक रहे और ये सुनिश्चित किया की टीम को मुश्किल से उभारा। भारत ने 258 रन बनाए और जिसके जवाब में श्रीलंका ये लक्ष्य हासिल करने में असफल रही और 46 वें ओवर में आउट हो गए। #2 2013 चैंपियंस ट्रॉफी, इंग्लैंड के खिलाफ बारिश से बाधित आईसीसी चैंपियंस ट्राफी 2013, फाइनल में भारतीय टीम की हालात थोड़ी ख़राब हो गयी। जल्द विकेट खोने के कारण उनका स्कोर था 66-4। मैच को फिर 20 ओवर का किया गया और उसे जीतने के लिए टीम को अच्छे रन बनाने की ज़रूरत थी। कोहली ने इस मैच में 43 रन बनाए जिसकी मदद से भारतीय टीम ने 129 रन बनाए और इंग्लैंड को 5 रनों से हराकर चैंपियंस ट्राफी जीती। इस मैच के बाद गेंदबाज़ों की ज्यादा तारीफ हुई और कोहली की पारी कहीं अनदेखी रह गए। उस मैच में उनके योगदान के लिए उन्हें इस लिस्ट में जगह तो मिलनी चाहिए। #1 वर्ल्ड कप 2011 के फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ 35 रनों की पारी 22 वर्षीय युवा बल्लेबाज़ पहली बार अपना वर्ल्ड कप फाइनल खेलने के लिए मैदान पर आएं। ये फाइनल मुम्बई में खेला गया। ऊपर से 31 रनों पर दो विकेट गंवा चुकी टीम इंडिया की स्तिथि बेहद ख़राब थी और 31 रनों और दोनों सलामी बल्लेबाज़ वापस लौट गए। 275 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम की हालात नाज़ुक थी और यहाँ पर कोहली और गंभीर ने इसे सहारा दिया। दोनों ने मिलकर 83 रनों की साझेदारी की। उनके 35 रन काफी कम हैं, लेकिन जिन परिस्तिथियों में ये बने वहां पर बल्लेबाज़ करना मुश्किल था। वहां से एक और विकेट गिरता तो, टीम इंडिया की हालात और ख़राब हो सकती थी। लेकिन उस युवा खिलाडी ने ऐसा होने नहीं दिया और उनकी पारी के बदौलत टीम इंडिया ने मुम्बई के वानखेड़े में 28 साल बाद दोबारा विश्व कप पर कब्ज़ा किया। उस मैच में कप्तान धोनी की नाबाद 91 और गंभीर की 97 के परियों के सामने कोहली के पारी को ज्यादा महत्व नही मिला। अगर दिलशान कमाल का कैच लेकर कोहली को आउट न करते तो कोहली ही मैच जीता दिए रहते। लेखक: पल्लब चटर्जी, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी