22 वर्षीय युवा बल्लेबाज़ पहली बार अपना वर्ल्ड कप फाइनल खेलने के लिए मैदान पर आएं। ये फाइनल मुम्बई में खेला गया। ऊपर से 31 रनों पर दो विकेट गंवा चुकी टीम इंडिया की स्तिथि बेहद ख़राब थी और 31 रनों और दोनों सलामी बल्लेबाज़ वापस लौट गए। 275 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम की हालात नाज़ुक थी और यहाँ पर कोहली और गंभीर ने इसे सहारा दिया। दोनों ने मिलकर 83 रनों की साझेदारी की। उनके 35 रन काफी कम हैं, लेकिन जिन परिस्तिथियों में ये बने वहां पर बल्लेबाज़ करना मुश्किल था। वहां से एक और विकेट गिरता तो, टीम इंडिया की हालात और ख़राब हो सकती थी। लेकिन उस युवा खिलाडी ने ऐसा होने नहीं दिया और उनकी पारी के बदौलत टीम इंडिया ने मुम्बई के वानखेड़े में 28 साल बाद दोबारा विश्व कप पर कब्ज़ा किया। उस मैच में कप्तान धोनी की नाबाद 91 और गंभीर की 97 के परियों के सामने कोहली के पारी को ज्यादा महत्व नही मिला। अगर दिलशान कमाल का कैच लेकर कोहली को आउट न करते तो कोहली ही मैच जीता दिए रहते। लेखक: पल्लब चटर्जी, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी