कैरेबियाई दौरे से कोहली एंड कंपनी को क्या सीख मिली ?

विंडीज़ दौरे से पहले टीम इंडिया के कप्तान और कोच अनिल कुंबले के बीच हुए विवाद की ख़बरों ने भारतीय क्रिकेट फ़ैन्स को झकझोर दिया था। जिसके बाद कुंबले ने इस्तीफ़ा दे दिया और बिना कोच के कोहली एंड कंपनी विंडीज़ पहुंची थी। विवाद को क्रिकेट के मैदान से दूर रखते हुए टीम इंडिया ने शुरुआत जीत के साथ की थी। पहला मैच बारिश की भेंट चढ़ा, फिर लगातार दो मैच जीतते हुए भारत ने विंडीज़ पर अपना वर्चस्व बना रखा था। हालांकि चौथे वनडे में जीत के साथ पलटवार करते हुए मेज़बान टीम ने पांचवें और आख़िरी वनडे को रोमांचक ज़रूर बना दिया था, लेकिन कोहली के शतक ने भारत को 3-1 से सीरीज़ पर कब्ज़ा करा दिया। वनडे में भले ही विंडीज़ कमज़ोर मानी जाती है लेकिन टी20 में ये टीम पूरी तरह से बदल जाती है, और हो भी क्यों न क्रिकेट के इस फ़ॉर्मेट में ये कैरेबियाई टीम फ़िलहाल वर्ल्ड चैंपियन है। भारत के ख़िलाफ़ तो विंडीज़ और भी ख़तरनाक हो जाती है, 2014 के बाद से टीम इंडिया ने उन्हें शिकस्त नहीं दी है। इस बार उम्मीद जगी थी कि देश से बाहर पहली बार टी20 में कप्तानी कर रहे कोहली इस सूखे को तोड़ेंगे और जीत भारत की झोली में आएगी। पर क्रिस गल, सुनील नारेन, सैमुअल बद्री, मार्लन सैमुअल्स और कप्तान कार्लोस ब्रैथवेट की वापसी के बाद ये वह टीम नहीं रह गई थी जिन्हें वनडे में हार मिली थी। हालांकि भारत ने 190 रनों का बड़ा स्कोर खड़ा कर विंडीज़ को बैकफ़ुट पर ला दिया था, और जब क्रिस गेल को जल्दी ही पैवेलियन की राह दिखा दी तो लगा कि कैरेबियाई टीम के ख़िलाफ़ जीत का मंत्र मिल गया लेकिन गेल तो गए पर क्रीज़ पर एविन लेविस मौजूद थे जिन्हें जूनियर गेल के नाम से पुकारा जाने लगा है। और उन्होंने इसे साबित करते हुए 62 गेंदो पर 12 छक्कों के साथ 125* रनों की पारी खेलते हुए 9 गेंदो पहले ही 9 विकेट से विडीज़ को जीत दिला दी। यानी एक बार फिर भारत को क्रिकेट के इस सबसे छोटे फ़ॉर्मेट में विंडीज़ का तोड़ नहीं मिल पाया। टी20 में मिली इस हार ने कैरेबियाई धरती पर वनडे में किए गए कमाल की चमक को फीचा कर दिया। कहा जाता है अंत भला तो सब भला, और यहां अंत ही भला न हो सका। इस पूरी सीरीज़ को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो काग़ज़ पर ज़रूर भारत को जीत ज़्यादा मिली लेकिन इसके बावजूद कमियां काफ़ी नज़र आईं। विश्वकप 2019 में अब क़रीब दो सालों से भी कम का समय बचा है ऐसे में अभी से ही हर टीम अपनी बेस्ट कॉम्बिनेशन को खोजने में लगी है। और यहीं टीम इंडिया को विचार करने की ज़रूरत है साथ ही कुछ कड़े और बड़े फ़ैसलों की भी दरकार है। आपको याद होगा 2011 वर्ल्डकप से क़रीब ढाई साल पहले ही महेंद्र सिंह धोनी टीम इंडिया की बेस्ट कॉम्बिनेशन की लाइन अप तैयार करने पर ज़ोर दे दिया था जिसके लिए उन्हें कुछ कड़े फ़ैसलों के लिए आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी थी पर वर्ल्डकप जीतकर उन्होंने अपने फ़ैसलों को साबित कर दिया था। कोहली को भी अगर विराट कप्तान बनना है तो कैरेबियाई दौरे से सीख लेनी चाहिए। टीम इंडिया का बल्लेबाज़ी विभाग तो कमोबेश शानदार दिखाई दे रहा है, जहां रोहित शर्मा और शिखर धवन के साथ साथ अजिंक्य रहाणे भी सलामी बल्लेबाज़ के तौर पर फ़िट नज़र आ रहे हैं। साथ ही साथ लोकेश राहुल भी इस स्थान के लिए लगातार दावेदारी पेश कर रहे हैं, नंबर-3 तो जैसे कोहली के लिए ही बना है। लेकिन नंबर-4 का स्पॉट डामाडोल ज़रूर है और यहां पर कोहली एंड कपंनी को विचार करना होगा, युवराज सिंह का फ़ॉर्म निरंतर नहीं रह पा रहा और एक फ़िल्डर के तौर पर भी वह अब निराश ही कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत को युवराज के विकल्प पर जल्द ही विचार करने की ज़रूरत है, मनीष पांडे और करुण नायर जैसे खिलाड़ियों को अभी से ही तैयार करने की ज़रूरत है। मनीष पांडे ने तो ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ उन्हीं के घर में शतकीय पारी खेलते हुए टीम इंडिया को जीत भी दिलाई थी लेकिन उस पारी का उन्हें इनाम अब तक यही मिला है कि वह टीम से बाहर ही हैं। हालांकि चैंपियंस ट्रॉफ़ी में उन्हें 15 सदस्यीय दल में जगह मिली थी लेकिन चोट की वजह से वह दौरे से बाहर हो गए थे। नंबर-5 और नंबर-6 पर महेंद्र सिंह धोनी और केदार जाधव जैसे दो फ़िनिशर टीम में हैं लेकिन 36 साल को हो चुके धोनी को अगर 2019 वर्ल्डकप टीम में बने रहना है तो प्रदर्शन में निरंतरता दिखानी होगी। नंबर-7 और 8 पर हार्दिक पांड्या और रविंद्र जडेजा उपयोगी साबित हो रहे हैं और आगे भी इनसे उम्मीद की जा सकती है। लेकिन भारत के लिए जो चिंता का विषय है वह है टीम में दूसरा स्पिनर, आर अश्विन टेस्ट में भले ही बेस्ट हैं लेकिन वनडे में और वह भी ख़ास तौर से भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर हमेशा निराश ही कर रहे हैं। और ऐसे में जब वर्ल्डकप इंग्लैंड में होना है तो टीम इंडिया को अश्विन का विपल्प ज़रूर तलाशना होगा, इसमें कोई शक नहीं कि ये बड़ा और कठोर फ़ैसला होगा लेकिन वर्ल्डकप भी 4 साल में एक बार आता है और उसे जीतने के लिए कुछ अलग और बड़ा फ़ैसला लेना पड़ता है। अश्विन की जगह अगर टीम में कुलदीप यादव जैसे चाइनामैन गेंदबाज़ को शामिल किया जाता है तो वह कहीं भी और किसी भी पिच पर अपने मिश्रण से बल्लेबाज़ों को छका सकते हैं। कुलदीप के अलावा टर्बनेटर यानी हरभजन सिंह अभी भी वापसी कर सकते हैं वह एक अच्छे ऑफ़ स्पिनर के साथ साथ वनडे में तेज़ बल्लेबाज़ी भी कर सकते हैं और जब उन्हें विकेट नहीं मिल रही होती या पिच पर स्पिनर्स के लिए कुछ नहीं होता तो अपनी तेज़ ब्लॉकहोल गेंदो से बल्लेबाज़ों को आज़ादी से रन नहीं बनाने देते। हालांकि, कोहली क्या सोचते हैं और टीम इंडिया के नए कोच की राय क्या होती है ये सब उन्हीं पर निर्भर करेगा। लेकिन इतना तो तय है कि कैरेबियाई सीरीज़ ने धुंधली ही सही लेकिन एक तस्वीर ज़रूर दिखा दी है, जिससे जल्द ही सबक़ नहीं लिया गया तो कोहली एंड कंपनी के लिए आगे की राहें मुश्किल हो सकती हैं।